गांवों में कैसे फैला कोरोना, कहां चूक गईं सरकारें, क्या हैं आगे की तैयारियां-चुनौतियां?

कोरोना की दूसरी लहर ने अपने पैर पसारने शुरू किए तो इसने ग्रामीण इलाकों में प्रवेश कर लिया है. यही कारण है कि केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार हर कोई चिंतित है और एक्सपर्ट्स लगातार गांवों को बचाने की अपील कर रहे हैं. ऐसे में सरकारों की ओर से अभी तक क्या तैयारियां की गई हैं, क्या किया जा रहा है और कहां पर लापरवाही देखने को मिली है, एक नज़र डालिए...

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गाजियाबाद के एक गांव में होता कोविड मरीज का अंतिम संस्कार (फोटो: PTI) गाजियाबाद के एक गांव में होता कोविड मरीज का अंतिम संस्कार (फोटो: PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 मई 2021,
  • अपडेटेड 2:51 PM IST
  • कोरोना की दूसरी लहर से गांवों में तबाही
  • कई गांवों में कोरोना के केस, सुविधाओं की कमी

कोरोना वायरस से लड़ते हुए भारत को अब डेढ़ साल हो गया है. इस महामारी ने शुरुआत में तो बड़े शहरों में जमकर तबाही मचाई, लेकिन अब जब कोरोना की दूसरी लहर ने अपने पैर पसारने शुरू किए तो इसने ग्रामीण इलाकों में प्रवेश कर लिया है. यही कारण है कि केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार हर कोई चिंतित है और एक्सपर्ट्स लगातार गांवों को बचाने की अपील कर रहे हैं.

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ऐसे में सरकारों की ओर से अभी तक क्या तैयारियां की गई हैं, क्या किया जा रहा है और कहां पर लापरवाही देखने को मिली है, एक नज़र डालिए...

केंद्र ने राज्य सरकारों से की ये अपील...
रविवार को केंद्र सरकार के द्वारा ग्रामीण इलाकों में फैल रहे कोरोना के मामलों को लेकर कुछ निर्देश राज्य सरकारों को दिए गए हैं. केंद्र ने अपील की है कि राज्य सरकारों को इन इलाकों में प्राइमरी हेल्थ सेंटर्स और कम्युनिटी बेस्ड सेंटर्स का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि महामारी को बढ़ने से रोका जा सका. केंद्र ने साथ ही अपील की है कि राज्य सरकारों को अब ग्राउंड लेवल के स्टाफ को रैपिड एंटीजन टेस्टिंग की ट्रेनिंग देनी चाहिए, ताकि अंदरूनी इलाकों में स्क्रीनिंग के वक्त इसका इस्तेमाल हो सके और अधिक से अधिक टेस्टिंग की जा सके. 

दरअसल, रविवार को केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण, नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल की अगुवाई में सभी राज्यों के साथ एक बैठक हुई, जिसमें मौजूदा स्थिति और ग्रामीण इलाकों को लेकर तैयारी पर चर्चा की गई.

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लोकल फोर्स को करना होगा ट्रेन...
केंद्र की ओर से राज्यों को कहा गया है कि ग्राउंड वर्कर्स, मेडिकल ऑफिसर्स, ब्लॉक लेवल के नोडल ऑफिसर्स को कंटेनमेंट जोन बनाने, अंदरूनी इलाके में स्क्रीनिंग, टेस्टिंग करवाने के लिए प्रयोग में लाया जाना चाहिए. इसके अलावा ग्रामीण इलाकों को लेकर हर दिन रिव्यू बैठक होनी चाहिए, जिसमें ताजा हालात की जानकारी ली जा सके. इसके अलावा आशा वर्कर्स, पंचायतों के सदस्यों, कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर्स को कोविड के बारे में ट्रेनिंग की जानी चाहिए, ताकि उन्हें कोविड के शुरुआती लक्षणों की जानकारी हो.

केंद्र की ओर से सलाह दी गई है कि ग्रामीण इलाकों में कम्युनिटी के जो सेंटर्स हैं, उन्हें ही आइसोलेशन सेंटर्स के तौर पर इस्तेमाल किया जाए. साथ ही ऐसी जगहों पर टेली-मेडिसिन पर ज़ोर दिया जाए, ताकि हर तरह के मामले से निपटा जा सके. लेकिन इस सबके बीच नॉन-कोविड मामलों को लेकर लापरवाही नहीं बरतनी होगी और अन्य बीमारियों को लेकर भी ध्यान देना होगा. 

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कहां हो रही है बार-बार चूक?
ICMR के बलराम भार्गव की ओर से राज्यों से अपील की गई है कि वे अंदरूनी इलाकों में बड़े स्तर पर स्क्रीनिंग करें, इसमें एंटीजन टेस्टिंग का इस्तेमाल व्यापक स्तर पर हो सकता है, क्योंकि इससे कम वक्त में ही रिजल्ट आपके सामने होगा. दूसरी ओर, एम्स डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया का कहना है कि नियमों का पालन करना जरूरी है, वरना ग्रामीण क्षेत्रों में भी बीमारी फैलती ही जाएगी.

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रणदीप गुलेरिया ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में कोरोना पहुंच रहा है, लेकिन उसके बावजूद भी नियमों का पालन नहीं हो रहा है, लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन हो रहा है, जिससे बीमारी फैल रही है. वहीं अस्पतालों को लेकर जो गाइडलाइन्स दी गई हैं, उसे भी लागू ना करने से हेल्थकेयर्स पर ही संकट आ रहा है.  

हालांकि, कई मामले ऐसे भी सामने आए हैं जहां पर ग्रामीणों में अगर बुखार या सर्दी-जुकाम जैसे लक्षण हैं तो वो कोविड टेस्टिंग से बच रहे हैं. और उसे सामान्य मानकर ही अपना इलाज कर रहे हैं. साथ ही ऐसी स्थिति में खुद को आइसोलेट करने की सुविधा नहीं है. 

उत्तर भारत के गांवों में बिगड़ रहे हैं हालात
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जहां अब दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में हालात कुछ सुधरते हुए दिख रहे हैं. वहीं, उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में हालात बिगड़ रहे हैं. राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में गांवों में महामारी का असर तेजी से दिख रहा है. बीते कुछ दिनों में ही अलग-अलग राज्यों के गांवों से बड़ी संख्या में मौतें दर्ज की गई हैं और हर किसी के पीछे कोरोना के शुरुआती लक्षण ही वजह बनते नज़र आ रहे हैं. 

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बिहार के बक्सर में गंगा नदी के किनारे दबाए गए शव (फोटो: PTI)


हरियाणा के बोपाड़ा गांव में दो हफ्ते में 30 मौतें दर्ज की गई, सभी में खांसी, जुकाम और बुखार जैसे लक्षण थे. लेकिन किसी का कोविड टेस्ट नहीं हो पाया था. ऐसा ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में है, जहां मेरठ, बागपत, बिजनौर के गांवों में लोगों को बुखार और जुकाम है, लेकिन टेस्टिंग की कोई सुविधा नहीं हैं. हालात ये भी हैं कि सरकारी अस्पतालों के बाहर घास उग रही है, जो व्यवस्था की पोल खोल रही है.

इससे पहले भी पूर्वांचल के इलाकों में गंगा में बहती हुई लाशें बता चुकी हैं कि गांवों की स्थिति कैसी है. बिहार से लेकर यूपी में गंगा किनारों पर लाशों का अंबार है, भले ही सामान्य दिनों में भी ऐसा होता आया है लेकिन इस बार बहती लाशों और किनारे गढ़ी हुई लाशों की संख्या बहुत ज्यादा है जो ग्रामीण इलाकों में खौफ पैदा कर रही है. सब चिंताओं से इतर गांवों में कोविड टेस्टिंग की सुविधा कम है, लोग अभी भी इसे सामान्य बुखार या सर्दी-जुकाम मानकर अपना इलाज कर रहे हैं. 

 

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