अगस्त में महंगाई दर के 5 साल के दूसरे न्यूनतम स्तर पर रहने के बावजूद अगले महीने होने वाली RBI मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक में रेपो रेट में कमी का भरोसा नहीं है. गुरुवार को सिंगापुर में आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने संकेत दिया था कि ब्याज दरों में कटौती के लिए अभी जल्दबाजी नहीं की जाएगी.
आरबीआई गवर्नर ने महंगाई दर में जुलाई अगस्त में आई नरमी के बावजूद कहा है कि हमें अभी भी सतर्क रहना होगा. दरअसल, ब्याज दरों में कटौती के रास्ते की सबसे बड़ी विलेन खाद्य मंहगाई दर बनी हुई है जो जुलाई के 5.42 फीसदी से बढ़कर अगस्त में 5.66 फीसदी हो गई है. इसकी वजह बीते महीने सब्जियों की महंगाई में तेजी रही.
खुदरा महंगाई दर काबू में
इसके अलावा, शहरी और ग्रामीण महंगाई दर भी पिछले महीने बढ़ी है. आंकड़ों के मुताबिक शहरी महंगाई मासिक आधार पर 2.98 फीसदी से बढ़कर 3.14 फीसदी हो गई, जबकि ग्रामीण महंगाई 4.10 परसेंट से बढ़कर 4.16 फीसदी पर पहुंच गई. अगस्त 2023 में खाद्य महंगाई 9.94 फीसदी थी जो अब घटकर 5.66 फीसदी रह गई है.
महंगाई के बास्केट में करीब 50 परसेंट योगदान खाने-पीने के सामान का होता है. फूड महंगाई का सीधा असर ब्याज दरों पर पड़ता है, क्योंकि खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से आम आदमी की खर्च करने की क्षमता पर असर पड़ता है. आरबीआई की नजर इन पर रहती है और अगर खाद्य महंगाई दर में तेजी बनी रहती है तो ब्याज दरों को घटाने की संभावना कम हो जाती है.
18 महीनों से रेपो रेट में बदलाव नहीं
आरबीआई ने पिछले 18 महीनों से ब्याज दरों में कोई कमी या बढ़ोतरी नहीं की है और फूड प्राइस की चिंताओं के चलते RBI गवर्नर जल्दबाजी में कटौती के पक्ष में नहीं हैं.
पिछली मॉनटेरी पॉलिसी कमेटी बैठक में RBI गवर्नर ने कहा था कि महंगाई में कमी तो आ रही है. लेकिन इसकी कमी की चाल धीमी और असमान है. हालांकि उन्होंने कहा कि भारत की महंगाई और ग्रोथ ट्रैजेक्टरी संतुलित तरीके से आगे बढ़ रही है. लेकिन ये तय करने के लिए सतर्क रहना जरूरी है कि महंगाई टारगेट के मुताबिक हो.
एक्सपर्ट्स का भी मानना है कि आरबीआई ब्याज दरों में कटौती की दिशा में तेजी से कदम नहीं उठाएगा. हालांकि अगर इस हफ्ते फेडरल रिजर्व अमेरिका में ब्याज दरों का घटाने का फैसला करता है तो फिर संभव है कि भारत में भी अक्टूबर में त्योहारी सीजन के दौरान लोगों को होम लोन की EMI में कमी का तोहफा मिल जाए. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि शहरी कंज्यूमर डिमांड में कमी को देखते हुए ब्याज दरें घटाना जरूरी है.
आदित्य के. राणा