'EMI आपकी आजादी छीन लेगी...' एक्सपर्ट की चेतावनी- मिडिल क्लास 'कर्ज के जाल' में फंसा

अक्सर लोगों को इस बात की कन्फ्यूजन रहती है कि वो अपना घर खरीदें या किराये पर रहें. खास तौर पर मेट्रो सिटीज में लोेगों को यही सलाह दी जाती है कि महंगे किराये से अच्छा है घर ले लो, लेकिन क्या ये इतना आसान है.

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लोन लेकर घर खरीदना कितना सही? (Photo-ITG) लोन लेकर घर खरीदना कितना सही? (Photo-ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 01 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:48 PM IST

मिडिल क्लास लोगों को अक्सर ये सलाह दी जाती है कि ज्यादा किराया देने से अच्छा है अपना घर खरीद लो. लेकिन फाइनेंशियल इन्फ्लुएंसर अक्षत श्रीवास्तव ने भारत के मिडिल क्लास को एक कड़ी चेतावनी दी है. उन्होंने लोगों को उस आम दलील पर जल्दबाजी में घर खरीदने से मना किया है, जिसमें कहा जाता है कि किराया चुकाना EMI चुकाने जैसा ही है.

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उन्होंने X पर एक पोस्ट में तर्क दिया कि यह दिखने में सरल लगने वाला तर्क लोगों को दशकों लंबे वित्तीय बंधन में फंसा सकता है, जबकि वे लंबी अवधि के परिणामों पर पूरी तरह से विचार नहीं करते.

श्रीवास्तव ने समझाया कि जहां बहुत से लोग मानते हैं कि किराए के बजाय EMI देना एक समझदारी भरा वित्तीय कदम है, वहीं हकीकत इससे कहीं ज़्यादा पेचीदा है.

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अक्षत श्रीवास्तव की चेतावनी

उन्होंने एक्स पर लिखा- "आप कई सालों तक EMI चुकाने के बंधन में बंध जाते हैं. यह आपकी वित्तीय आर्थिक स्वतंत्रता को खत्म कर देता है.' उन्होंने यह भी बताया कि जिंदगी में आने वाले बदलाव जैसे नौकरी छूटना, शहर बदलना, या निजी जरूरतों का बदलना लंबे होम लोन को जोखिम भरा बना सकते हैं.

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फाइनेंशियल इन्फ्लुएंसर ने कुछ और चुनौतियां भी बताईं, उन्होंने कहा कि अंडर-कंस्ट्रक्शन घरों में प्रोजेक्ट में देरी हो सकती है, जो आपके समय को खराब कर सकती है, और यह भी संभव है कि रियल एस्टेट एक बढ़ती हुई नहीं, बल्कि घटती हुईसंपत्ति बन जाए. दिल्ली के द्वारका और रोहिणी जैसे इलाकों का उदाहरण देते हुए, उन्होंने बताया कि वहां कई फ्लैट्स की कीमत समय के साथ कम हुई है.

श्रीवास्तव ने लिखा, "सिर्फ 15-20 साल के लोन में खुद को बांधने की बाध्यता ही पागलपन है. " उन्होंने आगे जोड़ा कि जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है, लंबी अवधि की वित्तीय प्रतिबद्धताओं से होने वाले तनाव को कोई भी स्प्रेडशीट सही मायने में नहीं माप सकता. जो लोग 30 की उम्र में घर खरीदने के बारे में सोच रहे हैं, श्रीवास्तव ने उन्हें सलाह दी कि वे यह सुनिश्चित करें कि प्रॉपर्टी वास्तव में एक मजबूत निवेश हो, जिसकी कीमत मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद भी बढ़ सके.

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सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस

एक यूजर ने टिप्पणी की- "घर खरीदने की सबसे बड़ी छिपी हुई लागत पैसा नहीं है, बल्कि यह विकल्प चुनने की स्वतंत्रता है. 20 साल की EMI आपके करियर के चुनाव, कहीं भी जाने की आजादी और वित्तीय स्वतंत्रता को बदल देती है."

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दूसरे यूजर ने लिखा: "आपका 'फ्लैट' सिर्फ एक 'फ्लैट' है, यह 'घर' नहीं है. अगर आप जमीन का एक टुकड़ा नहीं खरीद सकते, तो किराए पर रहें." वहीं एक यूजर ने लिखा-  "जब तक ऐसा होता रहेगा, तब तक NRI और पैसा डालेंगे और कुछ ही सालों में 1 करोड़ रुपये के फ्लैट की कीमत बढ़ाकर 2 करोड़ रुपये कर देंगे."

एक यूजर ने कहा- "किराया = EMI. यह फॉर्मूला जोखिम को नजरअंदाज करता है. एक EMI आपको दशकों के लिए बांध देती है, जबकि आपकी नौकरी, शहर और प्रॉपर्टी की कीमत सब बदल सकते हैं. अगर आप पूरी तरह से निश्चित नहीं हैं, तो किराए पर रहना ज़्यादा सुरक्षित और तर्कसंगत विकल्प है. "
 

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