दुनिया आज उस मोड़ पर खड़ी है जहां जायदाद तो खूब है. लेकिन इसी दुनिया में गैरबराबरी भी भयंकर है. दुनिया की ज्यादा से ज्यादा दौलत कुछ रईसों के हाथ में ही है. विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 का ये खुलासा परेशान करने वाला है. इसके अनुसार धरती की आबादी के महज 0.001 फीसदी सुपर रिच व्यक्तियों के पास दुनिया की सबसे गरीब आधी आबादी के पास जितनी दौलत है उसका तीन गुना धन इन लोगों के पास है.
इसे और आसान भाषा में समझते हैं. दुनिया की 0.001 फीसदी आबादी लगभग 56000 होती है. वहीं अगर दुनिया की कुल जनसंख्या इस वक्त 8 अरब मानें तो, नीचे के जो गरीब 4 अरब लोग हैं उनके पास जितनी दौलत है, उसका तीन गुना इन 56000 लोगों के पास है.
यह रिपोर्ट दर्शाती है कि धन और आय की असमानता न केवल बढ़ रही है, बल्कि यह वैश्विक अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र के लिए खतरा बन चुकी है.
इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दुनिया के लगभग हर इलाके में टॉप 1% लोगों के पास अकेले ही नीचे के 90% लोगों की कुल दौलत से ज़्यादा संपत्ति है.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम में अमीर देशों के पक्ष में हेराफेरी जारी है.
रिपोर्ट के मुख्य लेखक रिकार्डो गोमेज-करेरा ने कहा कि असमानता “तब तक चुप रहती है जब तक कि यह शर्मनाक न हो जाए.”
गोमेज-करेरा ने आगे कहा, “यह रिपोर्ट असमानता को आवाज देती है, और उन अरबों लोगों को जिनके मौके आज के असमान सामाजिक और आर्थिक ढांचों की वजह से खत्म हो रहे हैं.”
टॉप 10% धन कुबेरों के पास 75 फीसदी दौलत
डेटा से जो पहली और सबसे खास बात सामने आती है, वह यह है कि असमानता बहुत ज़्यादा लेवल पर बनी हुई है. आज दुनिया की आबादी के टॉप 10% इनकम कमाने बाकी बचे 90 फीसदी से ज्यादा कमाते हैं.
जबकि दुनिया की सबसे गरीब आधी आबादी दुनिया के कुल कमाई का 10 फीसदी ही कमा पाती है. दुनिया के टॉप 10 प्रतिशत लोगों के पास विश्व में जितनी भी संपत्ति है उसका तीन चौथाई उनके पास है. जबकि कमाई के मामले में फिसड्डी रहने वाले नीचे के आधा लोगों के पास मात्र 2 फीसदी संपत्ति है.
इसे सरल भाषा में कहें तो दुनिया के शीर्ष 10% सबसे अमीर लोगों के पास लगभग 75% वैश्विक संपत्ति है, जबकि नीचे के 50% के हिस्से में महज लगभग 2% संपत्ति है. यानी कि दुनिया के 50 फीसदी सबसे गरीब लोग मात्र 2 फीसदी संपत्ति पर गुजारा करते हैं.
1990 के बाद बढ़ती ही जा रही है अरबपतियों की दौलत
इस, रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि संपत्ति कुछ ही लोगों के हाथ में केंद्रित होती जा रही है. 1990 के दशक से अरबपतियों और करोड़पतियों की दौलत हर साल लगभग 8% की दर से बढ़ी है, जो आबादी के निचले आधे हिस्से की ग्रोथ रेट से लगभग दोगुनी है. यानी कि आबादी के निचले आधे हिस्से की दौलत 4 फीसदी की दर से बढ़ी है और इनकी कमाई 10 फीसदी के दर से बढ़ी है.
गरीब लोगों को थोड़ा फ़ायदा हुआ है, लेकिन सबसे ऊपर के लोगों की ज़बरदस्त कमाई के आगे यह दब सा गया है.
सबसे धनी 10% लोग 77% कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार
इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और उसके असर पर भी बात की गई है. इसमें कहा गया है विश्व के सबसे धनी 10% लोग विश्व में 77% कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. वहीं सबसे निर्धन 50% लोग केवल 3% उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं.
क्या है सुझाव
इस रिपोर्ट में प्रगतिशील कर प्रणाली और कर-न्याय लागू करने की पैरवी की गई है. अरबपतियों पर वैश्विक न्यूनतम कर लागू किया जाए. टैक्स चोरी रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाया जाए. इससे जन-सेवाओं के लिए संसाधन उपलब्ध हो सकेगा और असमानता कम होगी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकसेवाओं में निवेश बढ़ाया जाए जैसे उच्च गुणवत्ता वाली निःशुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य-देखभाल सेवाएं, पोषण और बाल-देखभाल सेवाओं में निवेश बढ़ाया जाए. इससे शुरुआत में ही असमानताओं को कम किया जा सकेगा और अवसर सृजित होंगे.
ये रिपोर्ट कहती है कि पैसे के पुनर्वितरण कार्यक्रम को बढ़ाया जाए. जैसे- नकद अंतरण (कैश ट्रांसफर), पेंशन, और बेरोजगारी भत्तों के माध्यम से संसाधनों को सबसे निर्धन आबादी तक पहुंचाया जाए.
वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2018 में लॉन्च होनी शुरू हुई थी. बुधवार को पब्लिश हुआ तीसरा एडिशन नवंबर में G20 की साउथ अफ्रीका की प्रेसीडेंसी के कॉन्टेक्स्ट में जारी किया गया था, जिसमें दो संकटों पर ज़ोर दिया गया है. ये संकट हैं- ग्लोबल इनइक्वालिटी का बढ़ना और मल्टीलेटरलिज़्म का कमज़ोर होना.
रिपोर्ट 21वीं सदी को बताने वाली इनइक्वालिटी के नए पहलुओं को एक्सप्लोर करती है, जैसे क्लाइमेट, जेंडर इनइक्वालिटी, ह्यूमन कैपिटल और असमान पहुंच. ये फैक्टर लोकतंत्र को नया आकार दे रहे हैं.
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