चलो भारत... अब चीन को लेकर ना-ना! दुनियाभर में बदलाव के पीछे ये 5 बड़े कारण

चीन में रियल एस्टेट (Real Estate) संकट, पूंजी के आउटफ्लो और आर्थिक चिंताओं का सामना कर रहा है. ऐसे में माना जा रहा ​​है कि भारत चीन का 'वास्तविक' विकल्प बनने का मजबूत दावा पेश कर रहा है.

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आदित्य के. राणा

  • नई दिल्ली,
  • 08 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 5:51 PM IST

दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) अब चीन का विकल्प बनने का भरोसा बढ़ा रही है. इसकी वजह भारत के मजबूत प्रदर्शन के साथ ही चीन की कमजोर परफॉरमेंस भी है. एक तरफ भारत में जहां शेयर बाजार नई ऊंचाई पर पहुंच गए हैं, FDI में तेजी आ रही है और इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने पर जबरदस्त निवेश हो रहा है. वहीं चीन में रियल एस्टेट (Real Estate) संकट, पूंजी के आउटफ्लो और आर्थिक चिंताओं का सामना कर रहा है. ऐसे में माना जा रहा ​​है कि भारत चीन का "वास्तविक" विकल्प बनने का मजबूत दावा पेश कर रहा है. 

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1. भारतीय शेयर बाजार ने दिखाया दमखम!
चीन के शेयर बाजार 2021 में उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद अब गिरावट का सामना कर रहे हैं जिससे शंघाई, शेन्ज़ेन और हांगकांग के बाजारों से 5 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा की मार्केट कैप घट गई है. वहीं पिछले साल आई गिरावट के बाद FDI जनवरी में 2023 के इसी महीने के मुकाबले 12 फीसदी घट गई. जबकि तेज आर्थिक रफ्तार के सहारे भारत का शेयर बाज़ार रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है. 

भारत के शेयर बाजारों में लिस्टेड कंपनियों की वैल्यू पिछले साल के आखिर में 4 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा हो गई है. जेफरीज की रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक भारत का मार्केट कैप दोगुना से ज्यादा होकर 10 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा. इतनी बड़ी मार्केट कैप का मतलब है कि दिग्गज वैश्विक निवेशक भी भारतीय शेयर बाजार को नजरअंदाज नहीं कर पाएंगे.

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2. MSCI इंडेक्स में भारत का दबदबा बढ़ा!
दरअसल, ऐसा भी नहीं है कि केवल भारत ही चीन का विकल्प बन सकता है. कई मोर्चों पर जापान और जर्मनी भी चीन की जगह लेने का दम भर रहे थे. लेकिन इन दोनों ही देशों में छाए आर्थिक संकट और मंदी के हालातों ने इन्हें इस रेस से बाहर करके भारत को ये मौका दे दिया है. 
भारत को एक बड़ी ताकत MSCI के इंडेक्स में वेटेज बढ़ने से भी मिलेगी. MSCI ने फरवरी में कहा था कि वो अपने उभरते बाजारों के इंडेक्स में भारत के वेटेज को 17.98 परसेंट से बढ़ाकर 18.06 फीसदी करेगा जबकि चीन के वेटेज को घटाकर 24.77 फीसदी करेगा. कुछ बरस पहले तक इस इंडेक्स में भारत का वेटेज महज 7 फीसदी था. MSCI के इंडेक्स में अलग अलग देशों की ये वेटेज दुनियाभर के संस्थागत निवेशकों को रकम के आवंटन में मदद करती है.

3. चीन से ज्यादा रहेगी भारत की ग्रोथ!
कुछ यही हाल भारत की विकास दर को लेकर लगाए गए IMF के अनुमानों में भी झलकता है जिसने भारत की विकास दर साढ़े 6 फीसदी और चीन का ग्रोथ रेट 4.6 परसेंट रहने का अनुमान लगाया है. इसके अलावा भारत के पक्ष में बढ़ती युवा आबादी से लेकर बढ़ती फैक्टरियों तक काफी कुछ है जो इसे वाकई चीन के विकल्प के तौर पर स्थापित कर सकता है. लेकिन इसकी आगे की चाल काफी हद तक 2024 के आम चुनाव के बाद बनने वाली स्थिर सरकार तय करेगी. माना जा रहा है कि अगर पीएम मोदी तीसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ वापसी करते हैं तो फिर अगले 5 साल के लिए आर्थिक नीतियों को लेकर दुविधा नहीं रहेगी और निवेशक लॉन्ग टर्म इंवेस्टमेंट की प्लानिंग कर सकते हैं. 

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2027 तक बनेगा भारत तीसरी बड़ी इकॉनमी!
जेफ़रीज़ के विश्लेषकों को उम्मीद है कि भारत 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर पर ठीक उसी तरह से निवेश किया जा रहा है जैसा तीन दशक पहले चीन में शुरु किया गया था. यहां पर अभी इंफ्रास्ट्र्क्चर में बदलाव की शुरुआत हो रही है जिसमें रोड नेटवर्क, पोर्ट्स, एयरपोर्ट्स और रेलवे के निर्माण पर भारी भरकम रकम खर्च की जा रही है. 

4. चीन जैसे दूसरे बाजार की कंपनियों को तलाश!
भारत को एक ब़डा फायदा दुनियाभर की कंपनियों की चीन+1 की नीति से भी मिल रहा है. दरअसल, चीन पर कंपनियों की जरुरत से ज्यादा निर्भरता ने कोविड-19 के दौरान सप्लाई चेन को संकट में डाल दिया था. वहीं चीन के अमेरिका समेत कई देशों के साथ जारी भू-राजनीतिक तनाव ने भी आग में घी का काम किया है. ऐसे में कंपनियां अब सप्लाई चेन के लिए किसी एक देश के भरोसे नहीं रहना चाहती हैं. वो इसका विस्तार कर रही हैं जिसमें अपनी सस्ती लेबर और लागत की वजह से भारत एक प्रमुख विकल्प के तौर पर उभर रहा है. एपल ने तो भारत में अपने कुल आईफोन उत्पादन का 7% बनाना शुरु कर दिया है. कंपनी की वेंडर फॉक्सकॉन और कुछ दूसरी कंपनियां भारत में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स लगा रही हैं. टेस्ला के सीईओ एलन मस्क भी कह चुके हैं कि उनकी कंपनी अतिशीघ्र भारत में निवेश करना चाहती है. 

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5. घरेलू निवेशक बने भारत की सबसे बड़ी ताकत
भारत की क्षमता को लेकर एक सवाल ये भी उठाया जा रहा है कि चीन से आने वाली सारी रकम को भारत में इस्तेमाल करना मुमकिन नहीं है. इसकी एक वजह ये है कि भारत के मुकाबले चीन की इकॉनमी करीब 5 गुना बड़ी है. लेकिन इसके बावजूद भारत की ताकत को कम करके इसलिए भी नही आंका जा सकता है क्योंकि भारत में तेजी आने की बड़ी वजह घरेलू कारण हैं और विदेशी धन पर इसकी निर्भरता कम है. भारत के रिटेल निवेशकों की इक्विटी बाजार में 9 फीसदी हिस्सेदारी है जबकि विदेशी निवेशकों के पास 20 परसेंट से कुछ कम हिस्सेदारी है. हालांकि चुनाव खत्म होने के बाद 2024 की दूसरी छमाही में भारत में विदेशी निवेश बढ़ने का अनुमान लगाया गया है. ऐसे में भारत घरेलू और विदेशी निवेश के मिश्रण से खुद को ज्यादा ताकतवर बनाने में कामयाब हो सकता है.

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