भारतीय स्वाद से भरपूर नमकीन और मिठाई समेत तमाम तरह के पैकेज्ड प्रॉड्क्टस को अब एक नई चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. दरअसल, Food Safety and Standards Authority of India’s (FSSAI) के ड्राफ्ट के मुताबिक अब खाने पीने के पैकेज्ड आइटम्स पर Front-Of-The-Pack Nutritional Labelling (FOPNL) लगाना अनिवार्य किया जा सकता है. इसका मतलब है कि अब खाने पीने के पैकेज्ड आइटम पर लिखा होगा कि इसमें कितना नमक, चीनी और फैट है.
हाई फैट शुगर सॉल्ट (HFSS) की मात्रा के हिसाब से इन सामानों को 1 से लेकर 5 स्टार तक रेटिंग मिलेगी और इस पर 'Good Food' और 'Not Good Food' जैसे लेबल लगे होंगे. FSSAI की इस पहल का मकसद है कि खरीदारों को ये पता रहे कि खाने-पीने का जो सामान वो खरीद रहे हैं उसकी न्यूट्रीशन वैल्यू कितनी है.
FSSAI की पहल का विरोध
FSSAI की इस मुहिम का ट्रेडर्स विरोध कर रहे हैं. इनका कहना है कि एक तरफ तो भारतीय व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिए सरस जैसे फूड फेस्टिवलों का आयोजन होता है तो दूसरी तरफ FOPNL से भारतीय व्यंजनों की लोकप्रियता पर सीधा प्रहार करने की तैयारी है. FSSAI ने हाल ही में FOPNL का ड्राफ्ट जारी किया था. इसके लागू किए जाने के बाद पहले 4 साल तक FOPNL स्वैच्छिक (Voluntary) रहेगा. लेकिन मैन्युफैक्चरर्स का कहना है कि इसके लागू होने से पैकेज्ड फूड मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी MSMEs को सबसे ज्यादा नुकसान होगा. ये लेबल लगने के बाद भारतीय पारंपरिक खानेपीने का सामान 'अनहेल्दी' (Unhealthy) हो जाएगा जबकि पश्चिमी पैकेज्ड सामान भारतीय मार्केट पर कब्जा कर लेंगे. ये विदेशी पैकेज्ड सामान कुछ 'हेल्दी' माने जाने वाले आइटम्स की इस तरह से मिलावट करते हैं कि न्यूट्रीशनल वैल्यू को हाई दिखाकर बेहतर रेटिंग पा लेते हैं.
85% देसी पैकेज्ड खाने का सामान हो जाएगा 'अनहेल्दी'
खाने पीने की मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े कारोबारियों का दावा है कि FOPNL के लागू होने से भारत का 85% पैकेज्ड खाद्य सामान अनहेल्दी (Unhealthy) करार दे दिया जाएगा. इनका आरोप है कि भारत में FOPNL गाइडलाइंस केवल पश्चिमी देशों की स्वैच्छिक गाइडलाइंस का प्रितबिंब हैं और भारतीय माहौल के हिसाब से यहां के खान-पान की कोई वैज्ञानिक स्टडी किए बगैर इनको लागू करने का काम किया जा रहा है.
इंडस्ट्री के लोग मानते हैं कि भारत का पारंपरिक खान-पान सदियों से इसी तरह चला आ रहा है और इसे पश्चिमी देशों की तरह रेटिंग घटाने के लिए नमक, चीनी और फैट के विकल्पों से तैयार नहीं किया जा सकता. इससे इनका मूल स्वाद खत्म हो जाएगा और इनकी बिक्री में बड़ी गिरावट आ सकती है जिसका फायदा पश्चिमी देशों के पैकेज्ड फूड को मिल सकता है. जानकारों का कहना है कि भारतीय पोहा-भुजिया या मिठाइयों के निर्माण का तरीका अगर बदला जाता है तो फिर इनका स्वाद भी बदल जाएगा और ये अपना असली फ्लेवर खोकर बिक्री के लिए संघर्ष करती नजर आएंगी.
विदेशी पैकेज्ड फूड प्रॉडक्ट्स को मिलेगा फायदा!
देसी फूड मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री FOPNL के कई प्रावधानों पर सवाल उठा रही है. इनका कहना है कि बड़े डिस्ट्रीब्यूटर्स MNCs के साथ करार करके उनके पैकेज्ड आइटम्स भारत में आसानी से बेचेंगे. साथ ही बड़ी कंपनियां भी अपने प्रॉडक्ट्स में आसानी से बदलाव कर लेंगी. लेकिन इससे सबसे ज्यादा नुकसान पारंपरिक खानपान से जुड़ी इंडस्ट्री को होगा. Ingredients में फेरबदल करके बाहरी पैकेज्ड फूड तो हेल्दी साबित हो जाएगा जबकि भारतीय खाद्य पदार्थ की रेटिंग खराब हो जाएंगी.
इसके साथ ही इनका आरोप है कि जिस तरह से FOPNL में कुछ ठोस और लिक्विड खाद्य पदार्थों को छूट दी गई है उसका फायदा भी पश्चिमी देशों के प्रॉडक्ट्स को मिलेगा क्योंकि ये वही प्रॉडक्ट्स हैं जो हाई फैट शुगर सॉल्ट (HFSS) की कैटेगरी में आते हैं. लेकिन छूट की इस लिस्ट में भारतीय व्यंजनों को एकदम दरकिनार किया गया है. फूड इंडस्ट्री का कहना है कि भारतीय खानपान अलग अलग क्षेत्रों के मौसम के हिसाब से बनाया गया है और इसको एक ही जैसे रेटिंग सिस्टम में डालकर इसके साथ नाइंसाफी की जा रही है.
पैकेज्ड समोसा हो जाएगा बर्गर से 'अनहेल्दी'
फूड इंडस्ट्री की माने तो अगर ये कदम उठाए गए तो फिर पैकेज्ड तौर पर मिलने वाली नमकीन और छोटे समोसे तो 'अनहेल्दी' करार दिए जाएंगे. जबकि बर्गर जैसे विदेशी सामान मुमकिन हैं कि पैकेज्ड या फ्रोजन फॉर्म में 'हेल्दी' करार दे दिए जाएं. इंडस्ट्री से जुड़े लोग दावा कर रहे हैं कि FSSAI के FOPNL के आने से पश्चिमी क्यूजिन भारतीय व्यंजनों पर भारी पड़ेगी. इससे सबसे ज्यादा नुकसान सेल्फ हेल्प ग्रुप जैसी महिलाओं को ही होगा क्योंकि ये लोग सीधे इस कारोबार से जुड़े हैं. इनका मानना है कि भारतीय व्यंजनों से जुड़ी सारी MSME और रिटेल इंडस्ट्री को FOPNL से जोर का झटका लगेगा. जिस तरह से भारतीय नमकीन अपने नमक और मिठाई अपने चीनी के कंटेंट की वजह से दुनियाभर में लोकप्रिय हैं उनको इस रेटिंग के बाद भारी नुकसान होने का खतरा है.
विदेशों में घट सकती है भारतीय पैकेज्ड फूड की डिमांड
भारत से मिठाइयों का सालाना निर्यात पहले ही महज 2 से 3 हजार करोड़ रुपये का है. इसकी वजह है कि ब्रिटेन, कनाडा और न्यूजीलैंड जैसे देशों को दूध से बनी मिठाइयां भेजने में कई रेगुलेटरी ब्रेकर्स हैं. मिठाई-नमकीन उद्योग सरकार से लगातार मांग करता रहा है कि इन ब्रेकर्स को दूर करने के लिए कदम उठाए जाएं. इससे घरेलू मिठाई निर्माताओं के साथ ही देश के दुग्ध उत्पादक किसानों को भी फायदा मिल सकता है.
लेकिन अब इस रेटिंग के बाद कई देश भारतीय मिठाई-नमकीन को हाई फैट शुगर सॉल्ट (HFSS) की वजह से मिली खराब रेटिंग के आधार पर खारिज कर सकते हैं. फिलहाल काजू कतली जैसी ड्राई-फ्रूट्स से बनी मिठाइयों की खाड़ी देशों में अच्छी-खासी मांग है. इसी तरह इंदौरी नमकीन की भी विदेशों में भी खूब डिमांड है. लेकिन भारतीय माहौल को ध्यान में रखे बगैर दी जाने वाली ये रेटिंग्स यहां की पैकेज्ड फूड मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री के लिए नुकसानदायक साबित होने की आशंका जताई जा रही है.
आदित्य के. राणा