'ये चुनाव जिता सकता है, लेकिन देश...' Freebies को लेकर पूर्व RBI गवर्नर की चेतावनी

RBI के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने हर मुफ्त चीज को राजनीतिक विफलता की स्वीकृति बताया. उन्होंने कहा कि Freebies शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी उन चीजों में निवेश को रोकता है, जो आजीविका में स्थायी रूप से सुधार के लिए जरूरी हैं.

Advertisement
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव (Photo: Reuters) रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव (Photo: Reuters)

आजतक बिजनेस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 30 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:10 PM IST

देश में चुनावों के दौरान 'Freebies' की राजनीति चरम पर रहती है. इसे लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर दुव्वुरी सुब्बाराव (D Subbarao) ने बड़ा चेतावनी दी है. रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा कि मुफ्तखोरी की संस्कृति चुनावी जीत तो दिला सकती है, लेकिन इससे राष्ट्र निर्माण संभव नहीं है. उन्होंने बिहार चुनाव से लेकर आंध्र प्रदेश तक का उदाहरण दिया. सुब्बाराव का कहना है कि इस तरह के अभियान के जरिए राजनीतिक पार्टियां लगातार अवास्तविक नकद वादों के साथ सिर्फ एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगी हुई हैं.

Advertisement

बिहार में चुनावी वादों का किया जिक्र
बिजनेस टुडे पर छपी रिपोर्ट में टीओआई के एक लेख से पूर्व आरबीआई गवर्नर सुब्बाराव के हवाले से कहा गया कि बिहार में एनडीए ने चुनाव प्रचार के दौरान महिलाओं को 10,000 रुपये ट्रांसफर किए, तो वहीं विपक्षी महागठबंधन इससे कहीं ज्यादा आगे निकल गया और राज्य की हर महिला को 30,000 रुपये के साथ ही प्रत्येक परिवार के लिए एक सरकारी नौकरी का बड़ा वादा कर दिया था. सुब्बाराव के मुताबिक, 'इन वादों में अवास्तविकता का भाव था, मानो राजनीतिक वर्ग ने सामूहिक रूप से सभी वित्तीय गणित को स्थगित कर दिया हो.'

वादे पूरा करने के लिए जूझ रही सरकारें
डी सुब्बाराव ने तर्क देते हुए कहा कि मुफ्त चीजें एक-दूसरे को रद्द करती हैं. जब राजनीतिक पार्टियां पैसे बांटती है या बड़ी-बड़ी घोषणाएं करती है, तो हकीकत में उनका असर कम हो जाता है. इनके जरिए भले ही कुछ वोटों को प्रभावित किया जा सके, लेकिन व्यापक प्रतिस्पर्धी वादे एक-दूसरे को बेअसर कर देते हैं. उन्होंने आगे कहा कि जब वादे विश्वसनीयता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए जाते हैं, तो लोग उन पर विश्वास करना बंद कर देते हैं. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि सबसे बड़ी समस्या यही है कि इस तरह की गारंटियों पर चुनी हुई सरकारें अब अपने वादों को पूरा करने में संघर्ष कर रही हैं.

Advertisement

RBI के पूर्व गवर्नर ने आंध्र प्रदेश का जिक्र करते हुए कहा कि इस राज्य को यह एहसास हो रहा है कि उसकी कल्याणकारी योजनाएं कल्पना से कहीं ज्यादा महंगी हैं. वहीं तेलंगाना सालों से भारी-भरकम अनुदान देने के बाद बड़े राजकोषीय घाटे से जूझ रहा है. 

शिक्षा-स्वास्थ्य के निवेश में रोड़ा
सितंबर 2008 से सितंबर 2013 तक आरबीआई गवर्नर रहे सुब्बाराव के मुताबिक, ऐसे देश में जहां लाखों लोग दैनिक आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं, कल्याणकारी खर्च जरूरी हैं, लेकिन नकद ट्रांसफर का अत्यधिक उपयोग, खासतौर पर जब उधार द्वारा वित्तपोषित हो, उन चीजों में निवेश को रोक देता है जो आजीविका में स्थायी रूप से सुधार कर सकते हैं, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पैदा करना.

हर मुफ्त चीज को राजनीतिक विफलता की स्वीकृति बताते हुए उन्होंने चेयरमैन माओ की लिखी पंक्ति का हवाला दिया. जिसमें उन्होंने कहा था कि, 'किसी व्यक्ति को एक मछली दो, और आप उसे एक दिन के लिए खिलाओगे, जबकि उसे मछली पकड़ना सिखाओ, तो आप उसे जीवन भर खिलाओगे.' 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement