कोरोना का प्रकोप (Corona) एक बार फिर दुनिया में बढ़ता जा रहा है. चीन (China Covid) में तो हालात बेकाबू हो चुके हैं. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक्सपर्ट्स मान रहे हैं अगले 90 दिनों में चीन की 60 फीसदी संक्रमित हो सकती है. लेकिन एक ओर जहां कोरोना का अटैक लगातार बढ़ रहा है, वहीं चीन ने आनन-फानन में लोगों की जान की परवाह किए बगैर सभी तरह की पाबंदियां (Corona Restrictions) हटा दी हैं. सख्त जीरो कोविड पॉलिसी (Zero Covid Policy) लागू करने वाले चीन ने आखिर ऐसा चौंकाने वाला फैसला क्यों लिया? क्या वह भारत से डर रहा है? आइए समझते हैं पूरा माजरा...
कोरोना से चीन में हाल-बेहाल
पड़ोसी देश China का वुहान (Wuhan) आज भी लोगों के जेहन में ताजा है. यहीं से शुरुआत हुई थी कोरोना वायरस (Covid-19 Virus) की और देखते ही देखते पूरी दुनिया चपेट में आ गई...लाखों लोग काल के गाल में समा गए. कोविड-19 की एक के बाद एक लहर ने दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं (Worlds Economy) को ध्वस्त कर दिया था. तमाम देशों में वैक्सीनेशन के रफ्तार तेज होने से इस पर काबू पाने में सफलता मिली ही थी, कि एक बार फिर चीन से कोरोना के नए वेरिएंट का प्रकोप शुरू हो गया. फिलहाल, चीन और जापान में तो हालात बुरे हैं ही. इसकी जद में अमेरिका, ताइवान समेत कई देश आ चुके हैं. भारत में भी इस BF7 वेरिएंट के चार केस मिल चुके हैं.
नागरिकों की जान से खिलवाड़
खास बात ये है जब बेकाबू होते Corona को रोकने के लिए चीन को सख्त कदम उठाते हुए आगे बढ़ना चाहिए, ऐसे समय में उसने सभी तरह की पाबंदियों को हटाने का फैसला (China Removes Restrictions) किया. चीन ने ऐलान किया है कि 8 जनवरी 2023 से अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए क्वारंटीन जरूरी नहीं होगा. यानी, चीन आने वाले विदेशी यात्रियों को क्वारंटीन रहने की जरूरत नहीं होगी. इतना ही नहीं, चीन ने अब कोरोना वायरस को बहुत ज्यादा संक्रामक बीमारी भी मानने से कन्नी काट ली है और कोविड को 'A' कैटेगरी से हटाकर 'B' में डाल दिया है.
वहीं सिर्फ दिसंबर 2022 की ही बात करें तो साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने लीक दस्तावेजों का हवाला देते हुए बताया है कि खुद चीन के नेशनल हेल्थ कमिशन का मानना है, '1 से 20 दिसंबर के बीच देश में करीब 25 करोड़ लोग Covid से संक्रमित हो चुके हैं.' क्या उसे अपने नागरिकों की जान की परवाह नहीं है? इसका एक बड़ा कारण आर्थिक पहलू से जुड़ा हुआ भी हो सकता है. चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी है. जिस तरह कोरोना की बीती लहरों के दौरान तमाम देशों में आर्थिक हालात बदतर हुए थे, चीन इस मामले में खुद को पिछड़ता हुआ नहीं देखना चाहता, चाहे इसके एवज में उसे अपने नागरिकों की जान से खिलवाड़ ही क्यों न करना पड़े.
यह रिपोर्ट भले ही चीन के लिए विनाशकारी हो, लेकिन भारत के लिए ये आपदा में अवसर की तरह है. आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक, चीन से जितने निवेशक या कंपनियां बाहर निकलेंगी, भारत का उतना फाइनेंशियल प्रॉफिट होगा और देश की अर्थव्यवस्था और तेजी से आगे बढ़ेगी.
China के लिए ये है सबसे बड़ी चिंता
इस बीच भारत (India) भी चीन की आंख की किरकिरी बना हुआ है, क्योंकि चीन में पहले जीरो कोविड पॉलिसी और फिर वायरस से बिगड़े हालात से हजारों कंपनियां दूसरे देशों का रुख कर रही हैं और उनकी नजर में सबसे अच्छा ठिकाना भारत बना हुआ है. ये आर्थिक तौर पर ये चीन के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है. हालांकि, चीन भले ही ऐसा न होने देने के लिए अपने कदम उठा रहा हो, लेकिन iPhone निर्माता Apple समेत कई कंपनियों का अब वहां से मोहभंग सा हो चुका है. चीन से निकलकर भारत आने को तैयार कंपनियों की लिस्ट में और भी कई नाम शामिल हैं.
सबसे तेजी से बढ़ती Economy भारत
भारत कोरोना से उबरने के मामले में भी दुनिया भर के देशों से आगे रहा और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है. बीते महीनों में ही देश ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बनकर भी उभरा. साफ शब्दों में कहें तो ऐसा भी संभव है कि चीन शायद भारत की इस रफ्तार से घबरा गया है और इसी घबराहट में उसने कोरोना के प्रकोप के बीच अर्थव्यवस्था को सुचारू रखने के मद्देनजर पाबंदियां हटाने का फैसला किया है. चीन से बाहर निकलने वाली विदेशी कंपनियां खासकर यूरोपीय फर्में दूसरे एशियाई देशों का रुख कर रही हैं, जिनमें उनकी फेवरेट लिस्ट में भारत सबसे ऊपर बना हुआ है.
ये एक सुनहरे अवसर की तरह है, जिससे भारत की आर्थिक रफ्तार को और भी तेजी मिलेगी. चीन का खजाना जितना छलकेगा भारत का खजाना उतना भरता जाएगा. ब्लूमबर्ग की पूर्व रिपोर्ट की मानें तो साल 2022 में अब तक 23 फीसदी यूरोपीय कंपनियां चीन से बाहर निकल चुकी हैं. ये कंपनियां बारत के अलावा वियतनाम और इंडोनेशिया की ओर रुख कर रही हैं. यूरोपीय कंपनियां सबसे ज्यादा भारत की ओर आकर्षित हैं, क्योंकि इनको भारत का बड़ा बाजार भी मिल रहा है. चीन से धड़ाधड़ बाहर निकलने की कंपनियों की तैयारी और भारत में इनके द्वारा अगर निवेश किया जाता है, तो फिर भविष्य में भारत दुनिया की नई फैक्टरी बन जाएगा, जो चीन से बेहतर तरीके से काम करेगी.
विदेशी निवेश है चीन की बड़ी ताकत
चीन की अर्थव्यवस्था (China Economy) के लिए कोरोना काल बेहद खराब साबित हुआ है. पिछले साल चीन का रियल एस्टेट सेक्टर भी औंधे मुंह गिर गया, जो इकोनॉमी के लिए बड़ी चोट साबित हुआ. इसकी वजह ये है कि चीन की आर्थिक रफ्तार में रियल एस्टेट की अहम भूमिका होती थी. इस सेक्टर में दिवालिया हो गई एवरग्रांडे कंपनी बड़ा उदाहरण है. इसके अलावा पश्चिमी देशों के साथ बढ़ती टेंशन-जीरो कोविड पॉलिसी ने भी कंपनियों और निवेशकों को चीन से बाहर निकलने की बड़ी वजह दी है. बता दें चीन की अर्थव्यवस्था के उत्थान का असल कारण विदेशी कंपनियों का चीन में भारी निवेश ही है, जो कोरोना काल में बेहाल नजर आ रहा है और चीन के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ा रहा है.
भारत सरकार के उठाए कदमों का असर
भारत सरकार (Indian Government) की विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने की नीतियों का असर दिखाई देने लगा है. आईफोन निर्मात एपल इसका ताजा उदाहरण है. एपल चीन पर अपनी निर्भरता घटा रहा है. उत्पादन घटने की आशंका से फॉक्सकॉन सितंबर 2022 से ही भारत में आईफोन-14 (iPhone-14) बना रही है.
Foxconn और पेगाट्रॉन की तमिलनाडु में उत्पादन इकाई है. विस्ट्रॉन बेंगलुरु में आईफोन बनाती है. कंपनियों के भारत की ओर आकर्षित होने के बड़े कारणों की बात करें तो देश में बड़ी लेबर फोर्स और कम मजदूरी दर इस कोशिश को कामयाब बनाने का दम रखती है. इसके अलावा भारत में जबसे मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए प्रॉडक्शन लिंक्ड इंसेटिव स्कीम (PLI) आई है तबसे शानदार नतीजे देखने को मिले हैं.
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