बिहार में नई मतदाता सूची की समीक्षा को लेकर राजनीतिक दलों के बीच बहस जारी है। राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पार्टी ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि इतने कम समय में मतदाता सूची की समीक्षा करना असंभव है, और यह प्रक्रिया लोगों को मतदान के अधिकार से वंचित कर सकती है। विपक्षी दलों ने आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार न करने पर भी आपत्ति जताई है। उनका आरोप है कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल के इशारे पर काम कर रहा है, क्योंकि चुनाव आयोग के सवालों का जवाब भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता दे रहे हैं। वहीं, भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड ने इन आरोपों को खारिज किया है। उनका कहना है कि चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था है और उसकी निष्ठा पर सवाल उठाना गलत है। सत्तारूढ़ दलों ने यह भी बताया कि 2002 में भी मतदाता सूची की समीक्षा 31 दिनों में ही हुई थी। इस बीच, मुख्य चुनाव आयुक्त ने मतदाता सूची की समीक्षा को लेकर एक बयान जारी किया है। उन्होंने कहा है कि "बिहार में 22 साल पहले 112003 की जो मतदाता सूची है, उसमें जो भी लोग हैं उनको प्राथमिक दृष्टि से संविधान के अनुच्छेद 326 के अंतर्गत पात्र माना जाएगा। अर्थात जिन लोगों का नाम उस सूची में है उनको कोई कागज नहीं देना और अगर जब उनके बच्चों के मतदाता पत्र बनते हैं तो उनको भी अपने माता पिता के लिए कोई कागज नहीं देना।" मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह भी स्पष्ट किया कि इस बार भी समीक्षा 31 दिनों के भीतर ही पूरी की जा रही है, जैसा कि 2002 में हुआ था। उन्होंने विपक्ष के आरोपों को निराधार बताया और कहा कि सही और योग्य मतदाताओं के नाम सूची में शामिल किए जाएंगे।