बिहार वोटर लिस्ट विवाद, RJD-AIMIM पहुंची सुप्रीम कोर्ट, समय सीमा बढ़ाने की मांग

बिहार में मतदाता सूची से लाखों नाम हटाए जाने के विवाद के बीच आरजेडी और एआईएमआईएम ने सुप्रीम कोर्ट में समयसीमा बढ़ाने की मांग की है. दोनों दलों का कहना है कि दावे और आपत्तियों की संख्या लगातार बढ़ रही है और बड़ी संख्या में मतदाता अपने नाम वापस जुड़वाना चाहते हैं. कोर्ट ने इस याचिका पर 1 सितंबर को सुनवाई करने का निर्णय लिया है.

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SIR को लेकर फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंची RJD (File Photo: ITG) SIR को लेकर फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंची RJD (File Photo: ITG)

aajtak.in

  • पटना,
  • 29 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 7:51 PM IST

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है. मतदाता सूची से लाखों नाम हटाए जाने और नए दावों-आपत्तियों की भारी संख्या को देखते हुए राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. 

RJD-AIMIM ने सुप्रीम कोर्ट में दी याचिका

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न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों दलों ने अदालत से अपील की है कि दावे और आपत्तियां दाखिल करने की अंतिम तिथि 1 सितंबर से बढ़ाकर कम से कम दो से चार सप्ताह कर दी जाए, ताकि वास्तविक मतदाता अपने अधिकार से वंचित न हों. शुक्रवार को जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई के लिए 1 सितंबर की तारीख तय की है. 

आरजेडी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और शोएब आलम ने दलील दी कि बड़ी संख्या में लोग मतदाता सूची से हटे नामों को वापस जुड़वाने के लिए आवेदन कर रहे हैं. अदालत के 22 अगस्त के आदेश के बाद तो दावों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है.

दोनों पार्टियों ने की समय सीमा बढ़ाने की मांग

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आरजेडी ने अपनी याचिका में बताया कि केवल 22 से 27 अगस्त के बीच करीब 95,000 नए दावे दाखिल किए गए हैं, जिससे साफ है कि मतदाता जागरूकता और राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ी है. पार्टी ने आरोप लगाया कि बूथ लेवल एजेंट्स (BLAs) द्वारा जमा कराए गए कई दावों को निर्वाचन अधिकारियों ने स्वीकार नहीं किया और आधार कार्ड के बजाय अन्य दस्तावेज मांगे, जबकि अदालत ने आधार को वैध दस्तावेज मान लिया था.

एआईएमआईएम की ओर से भी यह दलील दी गई कि निर्वाचन आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 22 अगस्त के बाद से दावों और आपत्तियों में जबरदस्त इजाफा हुआ है. पार्टी का कहना है कि अगर समयसीमा नहीं बढ़ाई गई तो हजारों वैध मतदाता अपने अधिकार से वंचित हो जाएंगे.

65 लाख मतदाताओं की जानकारी सार्वजनिक

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही चुनाव आयोग को आदेश दे चुका है कि वह हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की जानकारी सार्वजनिक करे और ऑनलाइन दावे दाखिल करने की सुविधा दे. बिहार में मतदाता सूची का यह गहन पुनरीक्षण 2003 के बाद पहली बार किया जा रहा है और इसमें कुल मतदाताओं की संख्या 7.9 करोड़ से घटाकर 7.24 करोड़ कर दी गई है. यही वजह है कि इस मुद्दे ने राजनीतिक विवाद का रूप ले लिया है.
 

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