Why Car Price Hike in January: हर साल दिसंबर आते ही देश के ऑटोमोबाइल बाजार में एक तय स्क्रिप्ट चल पड़ती है. नई कीमतें, नई घोषणाएं और वही पुराना तर्क... इनपुट कॉस्ट बढ़ गई है. लेकिन क्या वाकई गाड़ियों की कीमतें सिर्फ कच्चे माल के महंगे होने से बढ़ती हैं. या फिर इसके पीछे कुछ ऐसे कारण भी हैं, जिनका सीधा असर आप जैसे खरीदारों पर पड़ता है. नए साल से पहले होने वाली इस प्राइस हाइक में बहुत कुछ छिपा होता है, आइये समझते हैं.
आपको याद होगा कि बीते 22 सितंबर को नए जीएसटी रिफॉर्म (GST 2.0) के बाद कार निर्माताओं ने अपने वाहनों के दाम में भारी कटौती का ऐलान किया था. दरअसल, नए नियम के मुताबिक 4 मीटर से कम लंबाई और 1500 सीसी से कम इंजन क्षमता वाली कारों पर अब केवल 18 प्रतिशत ही जीएसटी लागू होता है, जो पहले 28 प्रतिशत हुआ करता था. इस सेग्मेंट में देश की कई कारें आती हैं, जिसके चलते इन गाड़ियों के दाम तेजी से कम हुए थे. लेकिन अब फिर से ये कारें महंगी होने जा रही हैं.
कुछ कार निर्माताओं ने जनवरी से अपने वाहनों की कीमत में बढ़ोतरी का ऐलान भी कर दिया है. जिसमें मर्सिडीज बेंज, जेएसडब्ल्यू एमजी मोटर इंडिया, बीएमडब्ल्यू मोटार्ड (टू-व्हीलर कंपनी), निसान, बीवाईडी, बीएमडब्ल्यू, जैसे ब्रांड्स शामिल हैं. वहीं टाटा मोटर्स ने हाल ही में अपनी अर्निंग्स कॉल में चौथी तिमाही में कीमतों में बढ़ोतरी की योजनाओं की पुष्टि की है.
हालांकि ये भी संभावना है कि, मारुति सुजुकी और महिंद्रा अपने वाहनों के दाम में जनवरी में इजाफा न करें. जो कि इंडियन पैसेंजर व्हीकल मार्केट में तकरीबन 54% हिस्सेदारी रखती हैं. जिसमें मारुति सुजुकी का शेयर 41% और महिंद्रा का योगदान लगभग 13% है. फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि, ये दोनों ब्रांड जनवरी में अपने वाहनों की कीमत में इजाफा नहीं करेंगी.
तो आइये समझते हैं कि, आखिर क्यों बढ़ती है कारों की कीमत-
कीमत बढ़ोतरी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला कारण इनपुट कॉस्ट को बताया जाता है. सच यह है कि कच्चे माल, कंपोनेंट्स और मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी शुरुआती लागत समय के साथ बढ़ती है. हर साल की शुरुआत में कंपनियां नए निवेश, नए मैटेरियल और अपग्रेडेड प्रोसेस की योजना बनाती हैं, जिससे लागत कुछ हद तक बढ़ती है. लेकिन यह पूरी कीमत बढ़ोतरी की कहानी का सिर्फ एक हिस्सा है.
साल के आखिरी महीनों में ऑटोमोबाइल कंपनियां भारी छूट और ईयर-एंड ऑफर्स देती हैं. मकसद होता है कि स्टॉक जमा न हो और बिक्री की रफ्तार बनी रहे. इस प्रक्रिया में कंपनियों को मुनाफे में कटौती सहनी पड़ती है. नए साल की कीमत बढ़ोतरी उसी कटे हुए मुनाफे की भरपाई का एक जरिया बन जाती है, जिसका बोझ अंत में खरीदार पर आता है.
दिसंबर खत्म होते-होते कई कंपनियों के पास पिछले साल की बनी गाड़ियों का स्टॉक बचा रह जाता है. यह अनसोल्ड इन्वेंट्री सीधे-सीधे नुकसान का संकेत होती है. ऐसे घाटे से उबरने के लिए कंपनियां नए साल में मॉडल्स की कीमतें बढ़ाने का फैसला लेती हैं, ताकि पुराने नुकसान की भरपाई की जा सके.
मानें या न मानें, लेकिन खरीदारों की सोच भी कीमत बढ़ोतरी का बड़ा कारण है. नए साल में पिछली मैन्युफैक्चरिंग की गाड़ियां अक्सर भारी छूट पर मिलती हैं. कीमतों का यह अंतर खरीदार के फैसले को प्रभावित करता है. कई बार ग्राहक यह मान लेता है कि ज्यादा कीमत वाला मॉडल ज्यादा बेहतर या अपडेटेड होगा, जबकि कुछ खरीदार डिस्काउंट को प्राथमिकता देते हैं. इसी बदलते व्यवहार को देखकर कंपनियां कीमतों को रिवाइज्ड करती हैं.
कुल मिलाकर, हर साल होने वाली कीमत बढ़ोतरी सिर्फ इनपुट कॉस्ट की मजबूरी नहीं होती. इसके पीछे डिस्काउंट से हुए नुकसान, अनसोल्ड स्टॉक और खरीदारों के व्यवहार जैसे कई फैक्टर काम करते हैं. अगली बार जब नई कीमतों की घोषणा हो, तो समझिए कि कहानी सिर्फ महंगे कच्चे माल तक सीमित नहीं है. आमतौर पर साल की शुरुआत में होने वाली ये प्राइस हाइक कारों के एक्स-शोरूम कीमत पर तकरीबन 3-4% तक असर डालती है.
अश्विन सत्यदेव