आजकल शादी-विवाह का मौसम है. शहनाइयां और ढोल बज रहे हैं और इसी के साथ जम रही है महफिल जिसमें 'लिटिल-लिटिल' के दौर भी चल रहे हैं. हालांकि शराब कल्चर को कभी भी मर्यादित नहीं माना गया है. स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह ठीक नहीं कही जाती है. फिर भी शादी जैसे मौकों पर 'थोड़ी तो चलती है' कहकर इसको पीने-पिलाने का क्रेज भी रहता ही है.
सनातन परंपरा में इसे लेकर इतनी मनाही है कि शराब और मद्यपान को अमर्यादित, अहंकार की पोषक, भ्रम पैदा करने वाली और अनजाने ही पाप करवा डालने वाली कहा गया है. वैदिक युग में शराब यानी वारुणि पयं या मदिरा एक पेय के रूप में प्रचलित रही है. हालांकि लोग भ्रम के कारण सोमरस को ही शराब समझते हैं. जबकि सोमरस और वारुणि पयं अलग-अलग पेय हैं. समुद्र मंथन से निकलने वाली वारुणि देवी के हाथ में जो सुराही है, उसमें मदिरा थी. यह मदिरा असुरों को मिली. वारुणि देवी के कारण मदिरा को भी वारुणि ही कहा जाता है.
शराब या मदिरा पीने को लेकर गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण हमेशा से आलोचना करते रहे हैं. गरुड़ पुराण में तो मदिरा पीने वाले सभी लोगों को नर्क गामी बताया गया है. यानी उन्हें नर्क भोगना पड़ता है. स्कंद पुराण कहता है कि मदिरा पान करने से व्यक्ति का धर्म चला जाता है और उसे लक्ष्मी की भी नाराजगी सहनी पड़ती है. इसलिए शराब पीने की सनातन परंपरा में मनाही है.
महाभारत में तो एक जगह खासतौर पर ब्राह्मणों के लिए शराब का निषेध बताया गया है. महाभारत के आदिपर्व में ऐसा जिक्र मिलता है कि असुर गुरु शुक्राचार्य ने खुद ही ब्राह्मणों के लिए शराब न पीने की मर्यादा निर्धारित की थी और शराब पीने पर उसे शाप से बांध दिया था.
आखिर हुआ क्या था?
जब शुक्राचार्य ने भगवान शिव से संजीवनी विद्या सीख ली और उसके प्रभाव से हर युद्ध में असुरों को जीवित करने लगे तब देवताओं में हाहाकार मच गया. शुक्राचार्य असुरों को जीवित करके उन्हें फिर से युद्ध के लिए तैयार कर देते थे. इसी संजीवनी विद्या की काट में समुद्र मंथन हुआ था और देवताओं को अमृत की प्राप्ति हुई थी, लेकिन शुक्राचार्य की संजीवनी विद्या प्रबल थी. उसे सीखना और सीखकर उसकी काट उत्पन्न करना भी जरूरी था.
कच ने सीखी थी शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या
प्रश्न यह था कि शुक्राचार्य से देवताओं के लिए यह विद्या कौन सीखे? और आखिर शुक्राचार्य किसी को यह विद्या देवताओं के लिए सिखाएंगे भी क्यों? इन्हीं प्रश्नों का उत्तर था देवगुरु बृहस्पति का पुत्र कच. देवताओं ने देवगुरु के पुत्र और युवा ऋषि कच को शुक्राचार्य के पास संजीवनी के ज्ञान को सीखने के लिए भेजा.
असुर करते थे कच से घृणा
यह जानते हुए कि कच बृहस्पति के पुत्र हैं, शुक्राचार्य ने हर असुर की अस्वीकृति के बावजूद उन्हें शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया. हालांकि इसके लिए कच को कई बार कठिन परीक्षा देनी पड़ी और समय-समय पर अपनी गुरुभक्ति साबित करनी पड़ी. वह किसी वैरभाव से नहीं बल्कि पूरे समर्पण के साथ देवताओं का शत्रु होते हुए भी शुक्राचार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित रहा. शुक्राचार्य ने कच की योग्यता को देखा और समझा, फिर उसे अपना शिष्य बना लिया. हालांकि कच को संजीवनी विद्या का ज्ञान अभी भी नहीं मिला था.
असुरों ने कच को किया परेशान
इधर असुर कच के प्रतिल जलन और दुश्मनी का भाव रखते थे. इसलिए तरह-तरह से उसे परेशान करते थे ताकि वह शुक्राचार्य को छोड़कर चला जाए, लेकिन कच ने कभी इसका बुरा नहीं माना और असुरों को हमेशा अपना गुरुभाई समझ कर क्षमा करता रहा.
कच से प्रेम करने लगी शुक्राचार्य की पुत्री
शुक्राचार्य की एक पुत्री थी देवयानी. बहुत सुंदर, गुणी और पिता की लाडली कन्या जो अपने आप में कई तंत्रों की जानकार थी. वह भी अपने पिता से विशेष ज्ञान प्राप्त करती रहती थी और साथ ही शुक्राचार्य यज्ञ आदि में बहुत श्रद्धा से सहायता भी करती थी.
जब कच ज्ञान प्राप्त करने शुक्राचार्य के आश्रम पहुंचा तब देवयानी उस सुंदर कुमार युवक को देखकर उस पर मोहित हो गई और कच से प्रेम करने लगी. उधर असुरों ने घृणा के कारण वन से लकड़ियां लाने गए कच को मार डाला. सांझ हो गई, देवयानी ने देखा कि धूल उड़ाते हुए आश्रम की गऊएं भी आ गईं, लेकिन कच नहीं आया. जब देवयानी को कच के बारे में पता चला, तो उसने अपने पिता से बहुत आग्रह करके उनसे कच को जीवित करने की प्रार्थना की. अपनी पुत्री को पीड़ा में देख शुक्राचार्य ने कच को जीवित कर दिया.
असुरों ने कच की हत्या की
असुरों ने कच को जीवित देखा तो बहुत आश्चर्यचकित हुए. उन्होंने समझ लिया कि शुक्राचार्य ने उसे संजीवनी विद्या से जीवित कर दिया है. इसलिए उन्होंने कच से छुटकारा पाने के लिए फिर से एक और चाल चली.
एक दिन असुरों ने मौका पाकर कच को फिर से मार डाला और उसके शव को जंगली कुत्तों और सियारों को खिला दिया. शुक्राचार्य ने कच को आश्रम में नहीं पाया तो वह समझ गए कि असुरों ने फिर से दुस्साहस किया है. इसलिए वह जंगल में वहां गए जहां कच की हत्या हुई थी. शुक्राचार्य ने संजीवनी विद्या का प्रयोग करते हुए कच का आह्वान किया तो वह हिंसक पशुओं के पेट फाड़कर फिर से जीवित होकर सामने आ खड़ा हुआ. असुरों की चाल एक बार और विफल हो गई.
असुरों ने कच को जलाकर मारा और मदिरा में मिला दी राख
असुरों ने अब तीसरी बार दुस्साहस किया. उन्होंने जंगल से फूल और बेलपत्र लेने गए कच को तेज तलवारों से काट डाला और उसके शव के टुकड़े-टुकड़े करके उसे जला दिया. फिर उन्होंने कच के शव की जली हुई राख बटोरी उसे मदिरा में मिलाया और एक पात्र में भर लिया. वह विशेष मदिरा असुरों की राजसभा में लाई गई और उत्सव के नाम पर शुक्राचार्य के ही सामने परोस दी गई. असुर गुरु ने वह मदिरा पी डाली.
इधर, देवयानी ने देखा कि तीन दिन से कच का कहीं पता नहीं है, तब उसने अपने योगबल से सारा रहस्य जान लिया और अपने पिता को बता दिया. देवयानी ने फिर से पिता से अनुरोध किया कि वह कच को जीवित करें, लेकिन कच तो शुक्राचार्य के पेट में मदिरा बनकर पहुंच चुका था. तब शुक्राचार्य को बहुत अफसोस हुआ और उन्होंने क्रोध में आकर ब्राह्मणों के लिए मर्यादा तय की और मदिरा को एक शाप से बांध दिया.
शुक्राचार्य ने मदिरा को शाप की मर्यादा से बांधा
उन्होंने कहा कि- ब्राह्मण कभी भी मदिरा का सेवन नहीं करेंगे. अगर वह ऐसा करेंगे तो जीवित ही नर्क के भागी होंगे और उन्हें तर्पण से भी संतुष्टि नहीं मिलेगी. उन्होंने कहा कि मदिरा पीना ब्राह्मणों द्वारा ब्राह्मण को ही मारने के बराबर का पाप है. जो भी ब्राह्नण मदिरा का सेवन करेगा वह धर्म भ्रष्ट हो जाएगा. ब्राह्मणों-देवताओं और मनु की संतानों! सावधानी से सुन लो...आज से मैंने ब्राह्मणों के लिए यह धर्म मर्यादा सुनिश्चित कर दी है.
कच को पेट में ही सिखाई संजीवनी विद्या
अब शुक्राचार्य ने कच को जीवित करने के लिए उसे अपने ही पेट में संजीवनी विद्या सिखाई. इस तरह कच ने आखिरकार शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या सीख ली. फिर उन्होंने कच को आदेश दिया कि वह उनका पेट फाड़कर निकल आएं. कच ने शुक्राचार्य के ही पेट में संजीवनी विद्या सीखी और शुक्राचार्य का पेट फाड़कर बाहर आ गए.
अब देवताओं ने कच को सुझाव दिया कि वह शुक्राचार्य को मृत ही रहने दे और संजीवनी विद्या के साथ स्वर्ग आ जाए, लेकिन यहां भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा उदाहरण मिलता है और वह यह कि गुरु से कपट नहीं करना चाहिए. कच जिस काम के लिए आया था, वह उसने पूरा कर लिया था, लेकिन फिर भी उसने गुरु से छल करना ठीक नहीं समझा और शुक्राचार्य को उनकी ही सिखाई संजीवनी विद्या से जीवित कर दिया.
कच ने नहीं माना देवयानी का प्रेम प्रस्ताव
इस तरह कच 1000 वर्षों तक शुक्राचार्य के पास रहा और कई विद्याओं को उनसे सीखकर उसका लोक विस्तार भी किया. इसी दौरान देवयानी ने कच से अपने प्रेम का प्रस्ताव देकर उससे विवाह और प्रणय के लिए निवेदन किया. यहां कच ने एक और उदाहरण रखा. उसने कहा- असुर गुरु के सभी शिष्य मेरे गुरुभाई हैं और वह मेरे पिता के समान हैं. आप तो उनकी वास्तविक पुत्री हैं, इसलिए मैं आपसे प्रेम, विवाह और प्रणय के लिए सोच भी नहीं सकता. आप मेरी बहन जैसी हैं, बल्कि बहन ही हैं. इसलिए ऐसा संबंध मेरे साथ न जोड़ें. शुक्राचार्य मेरे गुरु पिता हैं, अभिभावक हैं और पालक भी हैं. इसलिए आपसे प्रेम करके, विवाह करके मैं अपने धर्म से जाऊंगा. मैं इस संबंध को नहीं स्वीकार कर सकता हूं.
इसलिए शराब पीने की है मनाही
देवयानी ने बहुत कहा, बहुत प्रलोभन दिए, सुंदरता का वर्णन किया लेकिन कच टस से मस नहीं हुआ. तब देवयानी ने शाप दिया कि मेरे पिता की सिखाई संजीवनी विद्या तुम भूल जाओगे. कच ने इस शाप को स्वीकार करके वापस स्वर्गलोक चला गया. उधर, तब से ही शुक्राचार्य के शाप के कारण शराब पीने को लेकर सनातन परंपरा में मनाही है.
विकास पोरवाल