पटनदेवी धाम, पाटलिग्राम, कुसुमपुर और अजीमाबाद... पटना के नामों का कैसा रहा है इतिहास 

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो चुका है और आज परिणाम घोषित होने जा रहे हैं. बिहार की राजधानी पटना है और राज्य की राजनीति का केंद्र भी. ऐतिहासिक तौर पर भी राजधानी पटना बहुत महत्वपूर्ण है. पटना का नामकरण देवी दुर्गा के लोकस्वरूप से हुआ है और इसका इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है. पटना को पहले कुसुमपुर, पाटलिग्राम, पाटलिपुत्र आदि नामों से जाना जाता था.

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इतिहास में पटना के अलग-अलग नाम रहे हैं इतिहास में पटना के अलग-अलग नाम रहे हैं

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:16 AM IST

बिहार की राजनीति में आज का दिन महत्वपूर्ण है. ईवीएम में बंद है विधानसभा चुनावों के उम्मीदवारों का भाग्य जो आज खुलने वाला है. थोड़ी देर में फैसला होगा कि आखिर जनता ने सत्ता किसके हाथ सौंपी है और राजधानी पटना किसका स्वागत करने वाली है.

इतिहास के नजरिए से वैसे पूरा बिहार ही अपना अलग महत्व रखता है लेकिन राजधानी पटना का इतिहास भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. इससे भी अधिक महत्व रखता है इस शहर का नाम, जो समय के साथ कई बार बदला गया. कभी यह किसी राजा से प्रभावित रहा, कभी पौराणिक घटनाओं से, कभी स्थानीय भूगोल से तो कभी होने वाली राजनीतिक घटनाओं से... हर बार एक बढ़ते प्रभाव में इस शहर को नया नाम मिला.

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देवी दुर्गा का स्वरूप का पटना से कनेक्शन
राजधानी पटना का वर्तमान नाम देवी दुर्गा के लोकस्वरूप से आया है. जिन्हें पटनदेवी, पटनेश्वरी देवी और पटन भगवती के नाम से जाना जाता है. दुर्गा सप्तशती में भी देवी का एक नाम पाटला और उनकी एक बहन का नाम पाटलावती बताया गया है. 

माना जाता है कि सारा पटना ही देवी का धाम है, इसलिए इस शहर को उनके ही नाम पर पटना कहा जाता है. पटन देवी के दो स्वरूप हैं. बड़ी पटन देवी और छोटी पटन देवी. बड़ी पटन देवी त्रिमूर्ति (ब्रह्माणी, वैष्णवी और उमा) स्वरूप में हैं, जबकि छोटी पटन देवी का स्वरूप कालिका का है. दोनों ही देवियां आपस में बहने हैं और इनके मंदिर एक-दूसरे से लगभग पांच किमी की दूरी पर हैं. 

देवी पटनेश्वरी की कथा, देवी भागवत पुराण की उसी दक्षयज्ञ वाली कथा से जुड़ी है, जिसमें शिव पत्नी सती ने अपना शरीर भस्म कर दिया था. तब उनके शरीर के अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे. इन्हीं अंगों पर देवी के शक्ति पीठ बनें. इन्हीं शक्ति पीठों की संख्या 52 से लेकर 124 तक बताई जाती है, लेकिन मुख्य रूप से यह शक्तिपीठ 52 ही माने जाते हैं. शांत और मंद बहने वाली गंगा के चौड़े फाट के किनारे भूमि पर देवी सती की पीठ के हिस्से गिरे और यहां पटन शक्तिपीठ की स्थापना हुई. इसलिए देवी के नाम पर शक्ति पीठ का नाम पटना कहा जाता है. 

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राजधानी पटना में स्थित बड़ी पटन देवी मंदिर, जिन्हें पटनेश्वरी कहा जाता है

प्राचीन काल में था कुसुमपुर
हालांकि पटना का नाम हमेशा से यही नहीं रहा है. इसे प्राचीन काल में कुसुमपुर भी कहा जाता रहा है. अशोक के मौर्यकाल में यह एक छोटा लेकिन जरूरी और व्यापारिक शहर रहा था. तब इसका नाम कुसुमपुर बताया गया है. इस नाम के साथ पटना का इतिहास ईसा से 490 वर्ष पूर्व से शुरू होता है. इस आधार पर इतिहास कहता है कि मगध के राजाओं ने ही इसे सुगंधित फूलों के सुंदर बगीचों के कारण कुसुमरपुर नाम देकर स्थापित किया था. जब बुद्ध यहां से होकर गुजरे थे तब भी इसके एक हिस्से का नाम कुसुमपुर ही था. 

पाटलि वृक्षों के पेड़ों से नामकरण
आधुनिक पटना के नामकरण में एक वृक्ष का भी बहुत योगदान है. आज का पटना करीब तीन हजार साल पहले जब एक गांव था तो यहां बहुत सारे पाटलि वृक्ष थे. इन पाटलि वृक्षों (औषधीय पौधा) के कारण ही इसका नाम पाटलिग्राम पड़ा था. गंगा नदी का किनारा होने से यह स्थान हमेशा से लुभावना और सबकी नजर में रहा था. यह पाटलि वृक्षों का ग्राम ही आगे पाटलिपुत्र बना. क्योंकि एक राजा की पत्नी का नाम भी पाटलि था. उसका नामकरण इन्हीं वृक्षों के नाम पर किया गया था. राजा के पुत्र ने अपनी मां के नाम पर नगर बसाया और गंगा किनारे विकसित हुए शहर को उसकी मां के नाम पर ही पाटलिपुत्र कहा गया. अब यह एक बड़ा और व्यापारिक हितों को साधने वाला महत्वपूर्ण शहर बन गया. गंगा नदी के किनारे बड़े-बड़े बंदरगाह बने, जिन्हें पत्तन कहा जाता था. इन पत्तन के कारण ही पाटलिपुत्र का नाम आगे चलकर पटना हुआ.

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राजा पत्रक, रानी पाटलि और पाटलिपुत्र
एक लोककथा में ऐसा भी जिक्र आता है कि एक राजा था पत्रक. पत्रक ने अपनी प्यारी रानी पाटलि के लिए एक खुशनुमा, जादुई और फूलों से गुलजार जादुई नगरी का निर्माण किया था. 
हर्यक वंश के राजा अजातशत्रु (492-460 ईसा पूर्व) ने अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र में स्थापित की. वैशाली के लिच्छवी वंश से संघर्ष के दौरान राजगृह की अपेक्षा पाटलिपुत्र सामरिक दृष्टि अधिक रणनीतिक स्थान पर था. यहां उसने गंगा, सोन और पुनपुन नदी से घिरे इस भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जमीन के टुकड़े पर दुर्ग बनवाया. पाटलिपुत्र का असली इतिहास अजातशत्रु के शासनकाल से मिलता है.

जब बुद्ध ने की थी पाटलिपुत्र के विनाश की भविष्यवाणी
मौर्य साम्राज्य के आने के बाद पटना के सारे नाम पीछे रह गए. पाटलि, पाटलिग्राम, कुसुमपुर आदि से आगे बढ़कर यह पाटलिपुत्र के नाम से ही प्रसिद्ध हुआ. चीनी यात्री फाह्यान और यूनानी यात्री मेगस्थनीज ने भी बिहार के इस इलाके को पाटलिपुत्र ही लिखा है.  मौर्य वंश के दौरान ही पाटलिपुत्र एक विकसित शहर की तरह उभरा.

बुद्ध से जुड़ी एक कथा आती है कि महात्मा बुद्ध ने अपने किसी शिष्य के पूछने पर कहा था कि यह शहर बहुत सुंदर है, लेकिन इसका भविष्य विनाश से भरा दिखता है. इसे आग, बाढ़ या तूफान से तो खतरा है, लेकिन वह इतना बड़ा नहीं, जितना कि इस शहर को खतरा इसके लोगों और उनके आपसी संघर्ष से है. आपसी संघर्ष के कारण यह तबाह हो जाएगा. उन्होंने कहा था कि एक महान शहर गंगा के चौड़े किनारों पर उभरेगा, लेकिन यह भी चेतावनी दी थी कि यह आपदाओं और संघर्ष के कारण नष्ट होगा. 

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बुद्ध के वचन कालांतर में धीरे-धीरे सही भी होने लगे. पाटलिपुत्र जो असल में पाटलिपट्टन और पाटलिपत्तन था, व्यापार का बड़ा केंद्र बना. मौर्य वंश के शासन के वक्त जो, गौरव इस शहर को हासिल हुआ, वो फिर बाद में किसी वंश के सत्ता के दौरान नहीं मिला, गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद पाटलिपुत्र का भविष्य अंधकार में रहा और अनिश्चित भी.  12वीं सदी में बख्तियार खिलजी ने बिहार पर हमला बोला और कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को तबाह कर डाला. उसके बाद से देश का सांस्कृतिक केंद्र, व्यापार का उन्नत शहर और राजनीति के लिए महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थल कभी भी उस उन्नति पर नहीं रहा, जिसके लिए यह प्रसिद्ध था.

अब आते हैं आज के पटना पर...
बिहार में जब शेरशाह सूरी का प्रभाव बढ़ रहा था, उस वक्त तक पाटलिपुत्र एक बार फिर नए नाम से जाना जाने लगा था. इसे बंदरगाहों के कारण ही 'पट्टन' कहा जाने लगा और यह पटन हो गया. शेरशाह सूरी ने इस व्यापारिक शहर के महत्व को समझते हुए इसे फिर से आबाद करने की सोच रहा था, लेकिन उसका जीवन भी युद्धों में बीत रहा था, इसलिए वह इस दिशा में कभी भी सफलता पूर्वक नहीं बढ़ पा रहा था. वह एक किला बनवाना चाहता था और इस शहर कि किलेबंदी करके इसे नया रूप देना चाहता था, लेकिन वह सिर्फ यहां एक मस्जिद बनवा सका, जो अफगान शैली में थी और आज भी मौजूद है. 

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मुगलकाल में अजीमाबाद था नाम
आइन-ए-अकबरी लिखने वाले अबुल फजल ने इसका जिक्र पत्थर और शीशे से भरपूर औद्योगिक केंद्र के तौर पर किया है. मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने पोते मोहम्मद अजीम को यहां का सूबेदार बनाया था, जिसने साल 1704 में इसका नाम अजीमाबाद कर दिया था. यानि बहुत थोड़े समय के लिए ही सही आज के पटना को किसी जमाने में अजीमाबाद भी कहा जाता था.

...और अंग्रेजों ने बरकरार रखा पटना
फिर आए अंग्रेज. उनके शुरुआती जमाने में पटना बंगाल के नवाबों के हिस्से में था, लेकिन बंगाल का अंतिम नवाब सिराज उद् दौला अंग्रेजों से हार गया. अंग्रेज इसे पट्टन भी नहीं कह पाते थे. उन्होंने यहां रेशम और कैलिको (सफेद सूती कपड़े) की फैक्ट्री डाली और उनकी बार-बार आवाजाही से प्राचीन पाटलिग्राम, कसुमपुर, पाटलिपुत्र, पट्टन, पटनधााम, अजीमाबाद आखिरकार पटना हो गया. बक्सर के युद्ध (1764) के बाद पटना ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गया, मगर व्यापार का केंद्र बना रहा. 1912 में बंगाल के विभाजन के बाद ओडिशा और बिहार की राजधानी बना. फिर बिहार से अलग कर 1935 में ओडिशा को राज्य बना दिया गया. उसके बाद साल 2000 में बिहार से अलग कर झारखंड राज्य बनाया गया. बिहार की राजधानी पटना बनी रही, जो आज भी मौजूद है. 

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यह है पटना के नाम की कहानी, जो शहर आज एक बार फिर इस इंतजार में है कि उसका भाग्य विधाता कौन होने वाला है.

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