कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी कहा जाता है. इस दिन को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस तिथि पर आंवला वृक्ष की पूजा और उसके नीचे भोजन करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि यह प्रकृति, स्वास्थ्य और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है.
‘अक्षय’ का अर्थ, जो कभी नष्ट न हो
‘अक्षय’ शब्द का अर्थ होता है, जो कभी क्षय न हो, यानी जो सदा बना रहे. शास्त्रों के अनुसार इस दिन किया गया दान, पूजन और तप अक्षय फलदायी होता है. मान्यता है कि इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा करने, उसके नीचे भोजन करने और ब्राह्मणों को भोजन कराने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है. यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति आंवला नवमी का व्रत करता है, उसे उसी फल की प्राप्ति होती है जो अक्षय तृतीया और देवउठनी एकादशी के व्रत से मिलती है.
पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार, आंवला वृक्ष में भगवान विष्णु का निवास होता है. कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने नाभि कमल से ब्रह्मा जी को उत्पन्न किया था. इसलिए इस वृक्ष को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का प्रतीक माना जाता है. एक कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण स्त्री ने इस दिन आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर श्रद्धा से भोजन किया था. उसके इस कर्म से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने उसे अक्षय लोक का वरदान दिया. तभी से यह परंपरा चलन में आई कि इस दिन परिवार के साथ आंवला वृक्ष के नीचे भोजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है.
पूजा-विधि और परंपराएं
सुबह स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण किए जाते हैं. आंवला वृक्ष के पास जल, दूध और पंचामृत से स्नान कराकर पूजन किया जाता है.फिर हल्दी, कुंकुम, फूल, चावल, दीप और नैवेद्य अर्पित किया जाता है. वृक्ष के चारों ओर मौली (लाल धागा) से सात परिक्रमाएँ करने की परंपरा है. इसके बाद उसी स्थान पर परिवार सहित सात्विक भोजन किया जाता है. ब्राह्मणों को आमंत्रित कर भोजन कराने और दक्षिणा देने की भी परंपरा है. कहा जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि, आरोग्य और सुख-शांति का वास होता है.
बिहार और झारखंड में अक्षय नवमी का उत्सव विशेष श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. गांवों में इस दिन महिलाएं समूह बनाकर आंवला के पेड़ के नीचे पूजा करती हैं. पारंपरिक व्यंजन जैसे खिचड़ी, पूड़ी, तरकारी और मिठाइयां बनाकर वहीं बैठकर भोजन किया जाता है.
स्वास्थ्य वर्धक है आंवला
आंवला को आयुर्वेद में ‘अमृत फल’ कहा गया है. इसमें विटामिन C अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ शरीर को ऊर्जा देता है. यही कारण है कि शास्त्रों में इसे ‘देव वृक्ष’ कहा गया है. इस दिन आंवला का सेवन करने से शरीर शुद्ध होता है और मन शांत. पौराणिक कथाओं में आता है कि “आंवला सेवन से पाप दूर होते हैं, तन स्वस्थ होता है और बुद्धि निर्मल.”
अक्षय नवमी का उत्सव हमें यह भी सिखाता है कि मनुष्य का जीवन प्रकृति से गहराई से जुड़ा है. पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करना केवल एक धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का प्रतीक है. आंवला वृक्ष के नीचे बैठना और सामूहिक भोजन करना समाज में समानता और मिलन का भाव उत्पन्न करता है. यह पर्व यह संदेश देता है कि जब हम प्रकृति की गोद में लौटते हैं, तभी सच्चे अर्थों में अक्षय आनंद का अनुभव करते हैं.
अक्षय नवमी केवल पूजा या व्रत का दिन नहीं, बल्कि यह हमारी सनातन परंपराओं की जड़ में बसे उस विचार का उत्सव है, जो कहता है कि 'धर्म, दान और प्रकृति-संरक्षण से ही जीवन अक्षय बनता है.'
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