'दीपक' की लौ से उदयपुर की इस हवेली में रोशन है राजस्थान की लोक 'धरोहर'

पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के साथ जुड़ी धरोहर संस्था इस पूरे आयोजन की कर्ता-धर्ता है और आज से 25 साल पहले जिसके मन में इस संस्कृति के सुंदर प्रदर्शन का विचार कौंधा उनका नाम है दीपद दीक्षित. प्रसिद्ध रंगमंच कलाकार और कला पारखी दीपक दीक्षित ने राजस्थानी लोक नृत्यों और कलाओं को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

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बागोर की हवेली में लोक कला की विशेष प्रस्तुति के दौरान 'घूमर' नृत्य की प्रस्तुति बागोर की हवेली में लोक कला की विशेष प्रस्तुति के दौरान 'घूमर' नृत्य की प्रस्तुति

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 29 मई 2025,
  • अपडेटेड 6:03 PM IST

धरती धोरां री कहलाने वाली राजस्थान की जमीं भले ही शुष्क, सूखी और तप्त रेत की धरती है, लेकिन यह रेत भी कम रत्नगर्भा नहीं है. इसके कण-कण में कला और संस्कृति के ऐसे-ऐसे मोती बिखरे हैं कि जिनकी चमक से न सिर्फ ये प्रदेश बल्कि भारत भूमि भी दुनिया भर में रौशन है. कहीं कोई खंडहर इतिहास और विकास की कहानी सुनाता मिल जाएगा तो कहीं किसी दरिया की बहती धारा अपने किनारे पनपी सभ्यताओं की कथा कल-कल में समेटे दिखेगी. भारत में राजाओं-रजवाड़ों की विरासत संभाल रहे राजस्थान में ऐसी कई कहानियां हैं जो देश भर से ही नहीं बल्कि विदेशियों तक को अपने आंगन में खींच लाती हैं.

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उदयपुर में मौजूद है बागोर की हवेली
झीलों की नगरी कहलाने वाले उदयपुर में एक ऐसा ही आंगन है जो बीते लगभग 25 सालों से गुलजार है और हर सांझ अपने कला आंगन में मेहमानों और कद्रदानों का स्वागत करता है. यह आंगन पिछोला झील के किनारे बनी बागोर की हवेली में मौजूद है और जब सूरज ढलने की ओर हो तो जो रंग यहां जमता है उसके क्या कहने. दिन का उजाला रात के अंधेरे को जिम्मेदारी सौंप कर जा रहा हो तो इस समय रौशन हो उठती है बागोर की हवेली, जल उठते हैं इसके दीप और इसके आंगन में फिर जी उठती है राजस्थान की लोक संस्कृति.

उदयपुर के प्रमुख आकर्षणों में से एक, बागोर की हवेली एक प्राचीन इमारत है जो पिचोला झील के किनारे गंगोरी घाट पर स्थित है. इस हवेली की शानदार वास्तुकला में नाजुक नक्काशी और उत्कृष्ट कांच का काम देखने को मिलता है. अठारहवीं सदी में इस हवेली का निर्माण श्री अमरचंद बड़वा ने किया था. अमरचंद बड़वा के निधन के बाद यह हवेली मेवाड़ शाही परिवार के कब्जे में आ गई और तत्कालीन महाराणा के रिश्तेदार नाथ सिंह का निवास स्थान बन गई.

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वास्तुकला-शिल्पकला का बेजोड़ नमूना
इसके बाद बागोर के महाराज शक्ति सिंह ने हवेली का विस्तार किया और त्रि-तोरण द्वार बनवाया, जिसके बाद से इसे बागोर की हवेली के नाम से जाना जाता है. 1947 तक यह हवेली मेवाड़ राज्य के कब्जे में रही. जो भी कला प्रेमी राजस्थान की माटी में कला की रंगत को पहचानने और इसे महसूस करने आता है वह इस हवेली की शानदार वास्तुकला और कुशल शिल्पकला के साथ-साथ इसके आंगन में कुछ देर का समय जरूर गुजारता है.

मेवाड़ की अभिजात संस्कृति को दर्शाते हुए, यह हवेली विशाल आंगनों, बालकनियों, झरोखों, सजावटी मेहराबों, गुंबदों और एक फव्वारे का शानदार संयोजन है और इस हवेली का मुख्य आकर्षण है ‘धरोहर नृत्य शो’, जो हर शाम लगभग 7 बजे से शुरू होता है. यह एक घंटे का शो नीम चौक नामक आंगन में आयोजित होता है. नीम चौक की खूबसूरती से रोशन बालकनियाँ हवेली के माहौल को और आकर्षक बनाती हैं, जो पारंपरिक राजस्थानी लोक नृत्य और संगीत के लिए एक मंच तैयार करती हैं.

कला को संजोने का काम कर रहे हैं दीपक
पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के साथ जुड़ी धरोहर संस्था इस पूरे आयोजन की कर्ता-धर्ता है और आज से 25 साल पहले जिसके मन में इस संस्कृति के सुंदर प्रदर्शन का विचार कौंधा उनका नाम है दीपक दीक्षित. प्रसिद्ध रंगमंच कलाकार और कला पारखी दीपक दीक्षित ने राजस्थानी लोक नृत्यों और कलाओं को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. दीपक ही उदयपुर के प्रसिद्ध और अत्यंत लोकप्रिय ‘धरोहर लोक नृत्य शो’ के रचयिता और निर्देशक हैं.

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दीपक बताते हैं कि बचपन से ही उनका रुझान कला की ओर था और उन्होंने स्कूल में नृत्य और नाटकों में अभिनय शुरू किया. कॉलेज में उन्होंने यूथ फेस्टिवल्स में भाग लिया और रंगमंच नाटकों में काम किया. उन्होंने दिशा नाट्य संस्था में शामिल होकर उदयपुर में प्रसिद्ध कलाकार भानु भारती से मुलाकात की और उनके थिएटर ग्रुप के लिए मैनेजर के तौर पर अपनी सेवाएं दीं. उन्होंने विभिन्न स्थानों पर कई प्रदर्शन किए और ‘गवरी’ नृत्य शैली भी सीखी. इसके बाद उन्हें उदयपुर के पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र में शामिल होने का अवसर मिला.

​​​​​​​राजस्थान की लोक संस्कृति को धरोहर के जरिए संभाल रहे हैं दीपक दीक्षित

कई फिल्मों-धारावाहिकों में भी आ चुके हैं नजर
दीपक सिर्फ लोकशैली तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने मायानगरी की ओर भी रुख किया. मुंबई में उन्होंने अपनी पहली बॉलीवुड फिल्म ‘लव 86’ में दोहरी भूमिका निभाई, इसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ तो उनके अभिनय के खाते में ‘पनाह’, ‘बेदर्दी’, ‘खिलाड़ी’, ‘ज़िद’ जैसी कई फिल्में जुड़ गईं. टीवी सीरियल में भी वह चरित्र भूमिकाएं करते रहे, लेकिन इसके बावजूद दीपक के मन में राजस्थान और उदयपुर तो सांस लेता रहा. इसे और खुली हवा देने के लिए ही दीपक ने धरोहर की शुरुआत की थी और 25 सालों के अथक प्रयास में यह शो अब इतना प्रसिद्ध हो चुका है कि बागोर की हवेली के आंगन में जमीन पर बैठे कई विदेशी दिख जाएंगे जो इस कला का रस लेते हैं. इसमें चरी नृत्य, गवरी, तेरह ताली नृत्य समेत विभिन्न लोक कलाएं और कठपुतली प्रदर्शन शामिल हैं.

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लॉकडाउन के दौरान, उन्होंने अपनी पत्नी के साथ कलाकारों के लिए एक ‘लोक धरोहर’ नाम से भी  शो शुरू किया था. यह उस कठिन समय में लोगों संबल देने का बेहतरीन जरिया बना. इस शो की शुरुआत महामारी के कठिन समय में लोक कलाकारों को समर्थन देने के लिए की गई थी. वर्तमान में, 50 से अधिक कलाकार इस शो से जुड़े हैं और लोक कलाओं को बढ़ावा देने के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं. दीपक की पत्नी भी इस पूरे आयोजन में मनोयोग से समर्थन और सहयोग करती हैं.  

शेक्सपियर ने कहा था ‘द शो मस्ट गो ऑन’ दीपक दीक्षित के लिए ये वाक्य वेदवाक्य की तरह है. वह धरोहर को जिंदा रखे हुए हैं.

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