मंच पर एक आम भारतीय परिवार के घर का ताना-बाना सजा हुआ है. ऐसा परिवार जो थोड़ा धार्मिक, थोड़ा सामाजिक, तुलसी के चौरे में जल अर्पित करने वाला, भजनों से दिन की शुरुआत करने वाला, आस्थावान परिवार. इस घर के एक कमरे में बसी हुई बचपन की खिलखिलाहट और उसके साथ हमजोली है एक वृद्धा की निश्छल हंसी. हंसी-खुशी के इस माहौल में ललक उठती है अक्षरज्ञान की. आपके दिल में ये जानकर बड़ा सुकून सा आएगा कि ये ललक उसी वृद्धा की है जो अपनी हमजोली पोती से अक्षर ज्ञान लेना चाहती है.
मंडी हाउस में मौजूद एलटीजी ऑडिटोरियम में सुकून भरी ये बात मंचन के तौर पर सामने आई और जीवंत हो उठी. नाम था 'क से कहानी' जिसने रविवार की उमस से भरी शाम को सुंदर बना दिया. दिल्ली स्थित थिएटर ग्रुप ‘स्टोरी की बोरी’ ने अपनी नवीनतम प्रस्तुति ‘क से कहानी’ को मंच पर उतारा और इस दौरान उन्होंने सुधा मूर्ति की मशहूर लघु कहानी 'हाउ आई टॉट माई ग्रैंडमदर टू रीड' से प्रेरणा लेकर एक खूबसूरत नाटिका का मंचन किया.
कहानी की भावनात्मक यात्रा
यह कहानी सिर्फ एक नाटक नहीं, बल्कि एक ऐसी भावनात्मक यात्रा है जो प्रेम, सीखने की ललक, और पीढ़ियों के बीच के अटूट रिश्ते को खूबसूरती के साथ सेलिब्रेट करती है.
‘क से कहानी’ उत्तर कर्नाटक के एक छोटे से गांव की पृष्ठभूमि में रची गई है, जहां 60 वर्षीय दादी विजया और उनकी नन्हीं पोती सीया की कहानी दर्शकों को एक अनोखी दुनिया में ले जाती है. यह कहानी उस दादी की है, जो उम्र की सीमाओं को तोड़कर पढ़ना चाहती है और फैसला करती है कि उनकी शिक्षिका कोई और नहीं, उनकी अपनी पोती सीया ही बनेगी. जो प्यार और धैर्य के साथ दादी को ‘क’ से ‘ज्ञ’ तक का सफर कराती है.
यह एक ऐसी कहानी है जो गर्मियों की छुट्टियों में शुरू हुई एक साधारण कहानी सुनने की रस्म को आत्म-सम्मान, और आत्म-मूल्य की खोज में बदल देती है. “यह कहानी कोमल है, लेकिन इसका संदेश बेहद शक्तिशाली है,”
सिर्फ मंचन ही नहीं, एक विश्वास का नाम है स्टोरी की बोरी
‘स्टोरी की बोरी’ की संस्थापक श्रद्धा गुप्ता इसे लेकर कहती हैं कि 'हम सिर्फ एक नाटक नहीं प्रस्तुत कर रहे, बल्कि इस विश्वास को जी रहे हैं कि सीखने, सपने देखने, और नई शुरुआत करने की कोई उम्र नहीं होती.' श्रद्धा की यह बातें उस जुनून को दर्शाती हैं, जो उनकी हर प्रस्तुति में झलकता है. 'क से कहानी' को मुनिश शर्मा ने निर्देशित किया है, जो एक अनुभवी थिएटर और फिल्म अभिनेता हैं. इस नाटक में थिएटर, नृत्य और संगीत का ऐसा सुंदर मिश्रण है, जो दर्शकों को कहानी के साथ एक गहरे भावनात्मक स्तर पर जोड़ता है. संवादों की रचना मृणाल माथुर ने की है, जिन्होंने हर पंक्ति में भावनाओं की गहराई को बखूबी उकेरा है.
वहीं, कविता (विश्व शिल्पी आर्ट कंसल्टेशन, बेंगलुरु) ने नाटक को ड्रामाटर्जी के जरिए और भी प्रभावशाली बनाया है. जब मंच पर विजया और सीया की कहानी जीवंत होती है, तो यह सिर्फ एक दादी-पोती का रिश्ता नहीं, बल्कि एक ऐसी प्रेरणा है जो हर दर्शक को यह सोचने पर मजबूर कर देगी कि सपनों को हकीकत में बदलने की शुरुआत कभी भी, कहीं भी हो सकती है.
‘स्टोरी की बोरी’ सिर्फ एक थिएटर समूह नहीं, बल्कि एक ऐसा मंच है जो बच्चों की आवाज को सम्मान देता है, उनकी भावनाओं को समझता है, और उनकी कहानियों को दुनिया के सामने लाता है. 2008 में शुरू हुआ यह सफर आज 11 से अधिक शहरों में फैल चुका है. 50 से अधिक मूल प्रस्तुतियों और 15,500 घंटों से अधिक जीवंत प्रदर्शन के साथ, इस समूह ने 3 से 80 साल तक के दर्शकों के दिलों को छुआ है. श्रद्धा गुप्ता, जिन्होंने इस समूह की स्थापना की, लंदन से लौटने के बाद बच्चों के लिए कुछ अलग करना चाहती थीं.
बच्चे कलाकार भी कथावाचक भी
वह कहती हैं कि 'उस समय बच्चों के लिए मनोरंजन के नाम पर मॉल और कुछ खेल-कूद तक सीमित था. मैं चाहती थी कि बच्चे हमारी समृद्ध संस्कृति और विरासत को जानें, और कहानियों के जरिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करें.' यही वह सपना था जिसने ‘लर्निंग ट्री’ को जन्म दिया, और फिर ‘स्टोरी की बोरी’ ने उस सपने को पंख दिए.
‘स्टोरी की बोरी’ की खासियत है कि यह बच्चों को न केवल एक कलाकार के रूप में देखता है, बल्कि उन्हें एक कथावाचक के रूप में सम्मान देता है. इस समूह ने नन्हें बच्चों से लेकर बड़ों तक को कहानी कहने की कला सिखाई है. चाहे वह रामलीला हो, जिसके 200 से अधिक हाउसफुल शो हो चुके हैं, या रवींद्रनाथ टैगोर की काबुलीवाला जैसी भावनात्मक प्रस्तुति, हर नाटक में हास्य, कल्पना और गहरी भावनाओं का मिश्रण होता है.
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