राजधानी दिल्ली में मौजूद त्रिवेणी कला संगम में बीते शुक्रवार को भक्ति, कला और आध्यात्मिक सौंदर्य के संगम का साक्षी बना. शरद की इस सुहानी शाम में मौका था, भरतनाट्यम नृत्यांगना सौम्या लक्ष्मी नारायणन के एकल प्रदर्शन का और इस दौरान पद्मश्री गीता चंद्रन की मेधावी शिष्या सौम्या ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी. उन्होंने अपनी कठिन और कलात्मक गहराई से सजी प्रस्तुति के जरिए शास्त्रीय नृत्य विधा की प्राचीन परंपरा भरतनाट्यम की आध्यात्मिक और सौंदर्यपूर्ण समृद्धि को जीवंत कर दिया.
सम्मानित दर्शकों की मौजूदगी से सजा सभागार प्रदर्शन समाप्त होते ही तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. इस प्रस्तुति को लयबद्ध करने और रागरंग के साथ बांधने में उनकी एक शास्त्र मंडली भी मौजूद रही, जिसमें गुरु गीता चंद्रन (नट्टुवंगम), के. वेंकटेश्वरन (वोकल्स), मनोहर बालचंद्राने (मृदंगम) और जी. राघवेंद्र प्रसात (वायलिन) पर थे. संगीत ने इस कलात्मक प्रदर्शन को बहुआयामी ऊंचाई प्रदान की.
तंजावुर चौकड़ी के सम्मानित कलाकार की रचना पर प्रस्तुति
इस कलात्मक संध्या की शुरुआत राग श्री और आदिताल में सजी पुष्पांजलि से हुई. श्रद्धा और शांति को एक सुर में सजाकर इसके जरिए वातावरण को प्रार्थना के रंग में रंग दिया. इसके बाद राग खमाज में वर्णम "सामी नी राम्मनावे" प्रस्तुत किया गया, जो तंजावुर चौकड़ी के पोनिया पिल्लई द्वारा रचित है.
बता दें कि शास्त्रीय संगीत की विधा मे तंजावुर चौकड़ी का बहुत सम्मानित नाम है. इसे चौकड़ी इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें शास्त्रीय परंपरा को विकसित और समृद्ध करने वाले 19वीं सदी के चार भाई शामिल हैं. इन्हें चिन्नय्या, पोन्नय्या, शिवानंदम और वडिवेलु के नाम से जाना जाता है, जिन्होंने भरतनाट्यम और कर्नाटक संगीत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.
भगवान बृहदेश्वर की समर्पित भक्त नायिका की गाथा
सौम्या ने पोनिया या पोन्नय्या द्वारा रचित वर्णम पर आधारित शुद्ध नृत्य और अभिनय (अभिव्यक्ति) दोनों पर अपनी सुंदर प्रस्तुति दी. इस वर्णम में एक भावपूर्ण कथा भी शामिल है. नायिका अपने ईश्वर भगवान बृहदेश्वर को अपने प्रिय के तौर पर देख रही है, उनकी ही भक्ति और प्रेम में समर्पित है और उनके ही समर्पण का गान कर रही है. यह सुनते और देखते हुए दर्शकों-श्रोताओं को उत्तर भारतीय भक्त संत कवि मीरा की सहज ही याद आ जाती है. जो इसी तरह श्रीकृष्ण की दीवानी थी.
मंच पर सौम्या के रूप में मौजूद नायिका भगवान बृहदेश्वर के साथ मिलन की कामना करती नजर आती है. इस क्रम में जब ठंडी हवा उन्हें छूकर बहती है तो वह इसमें अपने प्रिय भगवान की मौजूदगी और उनके स्पर्श को महसूस करती है. वह उनकी प्रतिमा के सजीव हो उठने की कल्पना करती है और फिर सारा संसार ही उन्हें अपना प्रिय नजर आने लगता है.
इसके बाद प्रस्तुति दी गई राग शुद्ध सारंग में सजी पद्म कि जो अन्नामाचार्य की रचना है. इसमें देवी पद्मावती और उनकी सखी के बीच चंचल सौहार्द को चित्रित किया गया. प्रदर्शन का समापन राग यमन कल्याण और मिश्र ताल में पगी एक रचना से हुआ.
जैसे-जैसे उंगलियां भाव के साथ गति करती जाती थीं, नयन भी उसी का पीछा करते हुए भावों का अनुसरण करते थे और इन दोनों के साथ कदमताल कर रही थी पैरों की थाप. हस्त, नयन और थाप का ये अद्भुत संगम मंच पर किसी दैवीय यंत्र की स्थापना जैसा लग रहा था और इसका सम्मोहन ऐसा था कि दर्शकों की निगाहें एकटक उस ओर बंधी हुई थीं.
दर्शकों का सम्मान प्रस्तुति को निखारने की प्रेरणा- सौम्या
अपनी इस प्रस्तुति को लेकर सौम्या कहती हैं कि "त्रिवेणी कला संगम में प्रदर्शन करना हमेशा एक विशेषाधिकार की तरह रहा है. दर्शकों की प्रशंसा और उनका इस प्रस्तुति को सम्मानित नजरों से देखना हर बार आत्मविश्वास और ऊर्जा से लबरेज कर जाता है. इस मौके पर उनकी गुरु पद्मश्री गीता चंद्रन ने भी कहा कि, सौम्या को मंच पर परिपक्वता, संवेदनशीलता और दृढ़ता के साथ ऊर्जा से भरा प्रदर्शन करते देखना हमेशा आनंदित करता है. ऐसी प्रस्तुतियां विश्वास दिलाती हैं कि परंपरा की बागडोर समृद्ध है और उस विरासत की देखरेख सही हाथों में है.
"दूरदर्शन की सम्मानित कलाकार, संस्कृति मंत्रालय से युवा कलाकार छात्रवृत्ति (2023) प्राप्तकर्ता और स्पिक मैके की पैनल्ड कलाकार सौम्या भारत के प्रमुख मंचों पर अपनी छाप छोड़ रही है. जिसमें मद्रास म्यूजिक अकादमी का स्पिरिट ऑफ यूथ (2024), ब्रह्म गण सभा (2023) और नाट्य वृक्ष डांस कलेक्टिव के साथ विभिन्न प्रतिष्ठित फेस्ट शामिल हैं. त्रिवेणी कला संगम में उनकी प्रस्तुति उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन की ऊंचाई की आभा है, जो भरतनाट्यम के वटवृक्ष को और फैलाव प्रदान करती है.
विकास पोरवाल