Shatawari Cultivation: भारत में हर क्षेत्र की तरह कृषि क्षेत्र भी बदलाव के दौर से गुजर रहा है. किसानों के अंदर जैसे-जैसे जागरूकता बढ़ रही है, वैसे-वैसे वे नई फसलों की खेती की तरफ बढ़ रहे हैं. यही वजह है कि देश में पिछले कुछ सालों में औषधीय पौधों की खेती की तरफ किसानों का रुझान बेहद तेजी से बढ़ा है. कुछ ऐसे औषधीय पौधे हैं, जिनकी खेती से किसानों को एक एकड़ में 6 लाख रुपए तक की कमाई हो रही है. इसी तरह का एक पौधा है सतावर.
सतावर पौधे को कई तरह के नामों से जाना जाता है. इसे सतावर, शतावरी, सतावरी, सतमूल और सतमूली. इसका वानस्पतिक नाम एस्पेरेगस रेसीमोसम नाम से जाना जाता है. इस पौधे के पत्तियों का ज्यादातर उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में किया जाता है. इसके अलावा इस पौधे में कीट पतंग नहीं लगते हैं. कांटेदार पौधा होने की वजह से इसे जानवर भी इसे खाना पसंद नहीं करते.
सतावर की खेती नर्सरी तकनीक से की जाती है. नर्सरी तैयार करने से पहले खेतों को अच्छी जुताई की जरूरत पड़ती हैं. विशेषज्ञ ज्यादातर इस पौधे की खेती के लिए जैविक खाद्य का उपयोग करने की सलाह देते हैं. इसके अलावा खेतों में पानी निकासी की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए. अन्यथा फसल के खराब होने की संभावना बनी रहती हैं.
रोपाई के बाद तकरीबन 12 से 14 माह बाद इस पौधे के जड़ को परिपक्व होने में लगता है. एक पौधे से करीब 500 से 600 ग्राम जड़ प्राप्त की जा सकती है. एक हेक्टेयर से औसतन 12 हजार से 14 हजार किलो ग्राम ताजी जड़ प्राप्त की जा सकती है. इसे सुखाने के बाद किसानों को 1 हजार से 1200 किलो ग्राम जड़ मिल जाती है. जिसे बाजार में बेचने पर किसानों को एक एकड़ में 5-6 लाख रुपए तक की कमाई होती है.
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