किन्नौर के रॉयल लाल सेब की विदेश में भी डिमांड, ऑर्गेनिक खेती से किसानों को लाभ

Apple Cultivation: हिमाचल प्रदेश में करीब 100000 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब की बागवानी होती है. जिससे साढ़े 5000 करोड़ के आस-पास का सालाना कारोबार होता है. लेकिन इस सब से बढ़कर पूरे राज्य में किन्नौर की हिस्सेदारी सबसे ज़्यादा है. देश-विदेश में भी किन्नौर के सेब की ज़्यादा डिमांड होती है.

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Himachal Pradesh Royal Apple Himachal Pradesh Royal Apple

सतेंदर चौहान

  • शिमला,
  • 15 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 1:29 PM IST

हिमाचल प्रदेश का किन्नौर इलाका सेब की अच्छी पैदावार के लिए दुनिया भर में मशहूर है. किन्नौर में वैसे तो सेब की कई किस्में होती हैं, लेकिन रॉयल लाल और बड़ा सेब देखते ही लोगों का मन ललचाने लगता है. इस बार किन्नौर में सेब की बंपर फसल हुई है. 

कलर के लिए स्प्रे और वैक्स का इस्तेमाल नहीं
सेब को लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह के भ्रम और भ्रांतियां फैलती रही हैं, जिसमें ये भी कहा गया कि सेब को ज़्यादा कलरफुल बनाने के लिए उस पर कई तरह के छिड़काव किए जाते हैं, लेकिन अब किसानों ने ज़्यादातर ऑर्गेनिक सेब (Organic Apply) उगाने शुरू कर दिए हैं. सेब के ऊपर किसी तरह का भी स्प्रे या वैक्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. सेब की ग्रेडिंग करके उसे अलग-अलग कैटेगरी में पेक किया जाता है. उसी के हिसाब से सेब की कीमत तय की जाती है. 

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विदेश में भी किन्नौर के सेब की डिमांड
पूरे राज्य की बात करें तो हिमाचल प्रदेश में करीब 100000 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब की बागवानी होती है. जिससे साढ़े 5000 करोड़ के आस-पास का सालाना कारोबार होता है. लेकिन इस सब से बढ़कर पूरे राज्य में किन्नौर की हिस्सेदारी सबसे ज़्यादा है. देश-विदेश में भी किन्नौर के सेब की ज़्यादा डिमांड होती है. किन्नौर का ज़्यादातर इलाका लाहौल स्पीति और चाइना बॉर्डर के आस-पास लगता है. ऐसे में ज़्यादा ऊंचाई होने के कारण इस इलाके में ठंड अधिक होती है. बर्फ़बारी ज़्यादा होने की वजह से यहां के सेब की क्वालिटी अन्य जगहों के मुकाबले अधिक जूसी और क्रंची होती है.

Apple Farming in Himachal

2 साल में ही पेड़ पर आने लगते हैं फल
किन्नौर में सेब की जो पारंपरिक किस्में होती हैं उनमें रॉयल, गोल्डन, रिचर्ड और रेड शामिल हैं. हालांकि, अब किसानों ने नई तकनीक से सपर वैराइटी भी उगानी शुरू कर दी है. पहले सेब के एक पेड़ पर फल आने में 10 से 12 साल लग जाते थे लेकिन उस दौरान एक पेड़ पर 70 से लेकर 100 पेटियां पैदावार होती थी लेकिन अब लोगों ने जो नई किस्म उगानी शुरू की है उनमें दो साल में ही पेड़ पर फल आने शुरू हो जाते हैं. 

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कहा जा रहा है कि इन पेड़ों की हाइट के हिसाब से पेड़ों के फल की क्वालिटी पर भी असर पड़ता है. ज़्यादातर लोगों ने अब स्प्रे दवाई या कीटनाशक का प्रयोग करना बंद कर दिया है. इससे उनकी लागत एवं खर्च भी कम होता है. साथ ही ऑर्गेनिक सेब की डिमांड बढ़ती है. इसलिए बाज़ार में कीमत भी अच्छी मिलती है. लिहाजा लोग अब ऑर्गेनिक खेती की ओर लौटने लगे हैं. किसान संजय जेंटू ने बताया कि सेब को तोड़ने के बाद सिर्फ उसकी ग्रेडिंग की जाती है. इसके अलावा किसी तरह का स्प्रे या किसी तरह की वैक्स का कोई भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है.


 

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