Organic Farming: मुंबई से सटे पालघर जिले के वाडा तहसील में एनशेत गांव में बना फार्म हाउस फिलहाल इस समय काफी चर्चा में है. किसान परिवार में पले-बढ़े रोहन ठाकरे का परिवार पीढ़ियों से पारंपरिक किसान रहा है. जैसे-जैसे रोहन बड़े होते गये वह कुछ अलग करने की कोशिश करने लगे. रोहन ने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने लगे, लेकिन इसी दौरान वह कंपनी के काम के सिलसिले में इजरायल गए, जहां उन्हें जैविक खेती के बारे में जानने का मौका मिला. वहां पर बंजर जमीन पर होने वाली जैविक खेती से काफी प्रभावित हुए. जबकि रोहन को तो पहले से कृषि क्षेत्र ने वास्तव में रुचि थी. उस के बाद रोहन भारत लौटकर जब अपने गांव लौटे तो और कुछ अलग करने की ठानी. रोहन अपने पिता सुधीर ठाकरे के साथ कृषि कार्य में जी-जान से शामिल हो गए. इस प्रकार वह तीसरी पीढ़ी के किसान बन गए.
रोहन ठाकरे ने पहले एक एकड़ जमीन पर जैविक खेती की शुरुआत की और फिर जब इस जैविक खेती से उन्हें अच्छा मुनाफा होने लगा और इस जैविक फसल की मांग बढ़ने लगी तो रोहन ने 9 एकड़ के खेत में जैविक खेती शुरू कर दी. रोहन ने बताया, ''मेरा गांव तीनों तरफ से तीन नदियों से घिरा है. पहले यह गांव पूरी तरह से खेती पर ही निर्भर था. 1985 तक गांव का हर घर खेती से जुड़ा था. यहां के चीकू एक समय में देशभर में मशहूर थे, लेकिन समय के साथ लोग शहरों की तरफ जाने लगे और खेती लगभग बंद हो गई.''
जैविक खेती से बदली किसानों की तकदीर
शहरों में रहने वाले लोगों को गांव के जीवन और जैविक खेती के बारे में जानने की इच्छा होती है. रोहन बताते हैं कि शुरू में तो लोग जैविक खेती को लेकर बहुत इच्छुक नही दिखे. लेकिन जब उन्हें बताया गया कि जैविक खेती में खर्च तो कम आता ही है. साथ ही, खेतों से निकलने वाली फसल भी लोगों के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है. इसके बाद कुछ किसान जैविक खेती को लेकर प्रेरित हुए और उन्होंने धीरे-धीरे ही सही एक नई शुरुआत की है. रोहन ने बताया कि जैविक खेती के बल पर 8 प्रकार के फलों और 12 प्रकार की सब्जियों का उत्पादन किया जा रहा है. जिसकी मुंबई में भारी मांग होती है. रोहन बताते हैं कि जो पर्यटक हमारे फार्म पर आते है उन्हें हम जैविक खेती कैसे की जाती है वह भी सिखाते है.
इजरायल से सीखी जैविक खेती
रोहन ने सिक्योरिटी मैनेजमेंट की पढ़ाई की और शहर में रहकर ही सिक्योरिटी कंपनी चलाने लगे. वह इजरायल की एक टेक्नोलॉजी कंपनी के साथ मिलकर काम कर रहे थे. इसी सिलसिले में वह अक्सर इजरायल जाते भी रहते थे. रोहन ने बताया कि इसी दौरान मुझे जैविक खेती से जुड़ने के लिए प्रेरित किया. गांव में रोहन के पास एक एकड़ पुश्तैनी जमीन थी. इजरायल में जैविक खेती के बारे में जानकारी जुटाने के बाद 2018 में रोहन ने आठ एकड़ और जमीन खरीदी और जैविक तरीके से तरबूज, वाडा कोलम और दूसरी कई फसलें उगाने लगे. गांव के दो और किसान भी उनसे जुड़कर जैविक खेती करने लगे. रोहन की पत्नी वैदेही ठाकरे बताती हैं कि यहां आने वाले लोगों को खेती के गुण के साथ ही सब्जियों को कितने प्रकार से बनाया जाता है यह भी बताते है.
फार्मर हाउस में रुककर लोग सीख रहे खेती किसानी का गुण
रोहन कहते हैं कि मुंबई और नाशिक सहित कई अन्य जगहों से लोग जैविक खेती से उगाई जा रही फसलों को देखने आते थे. खेतों में ही रुकते थे, जिसके बाद खेती के गुण सीखने आने वाले लोगों के लिए खेतों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कॉटेज बनवाएं हैं. दो कॉटेज पूरी तरह बनकर तैयार हैं, जिनका नाम 'फारेस्ट कॉटेज' और 'फार्मर हाउस' रखा गया है. फॉरेस्ट कॉटेज को नेचुरल कूलिंग सिस्टम के आधार पर बनाया है. वहीं, फार्मर हाउस को बांस, गोबर और मिट्टी से तैयार किया गया. इन दिनों वह एक और कॉटेज बना रहे हैं, जिसे चूना, लकड़ी और मिट्टी के इस्तेमाल से तैयार किया जा रहा है. मकान की छत पर कवेलू लगाया गया है और चारों तरफ की दीवार बांस की बनाई गई है. बांस की बनी दीवार को अंदर और बाहर से दोनो तरफ से मिट्टी और गोबर से लीपा गया है. छत को अंदर से लकड़ी लगाई गई है.
(रिपोर्ट- हुसैन खान)
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