उत्तरी कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाओं को एक दुर्लभ जंगली मशरूम बेचते हुए देखा जाता है. इस मशरूम का वैज्ञानिक नाम जियोपोरा एरेनिकोला और सेपुल्टारिया समनरियाना है. वहीं, स्थानीय लोग इसे कनपापर या शाजकन नाम से जानते हैं. यहां के कई परिवारों के लिए ये जंगली मशरूम जीवनयापन का जरिया है.
कई गरीब परिवारों की कमाई का जरिया है शाजकन
बारामूला कस्बे में शाजकान बेचने वाले बोनियार क्षेत्र के रहने वाले एक बुजुर्ग कहते हैं कि इस बार शाजकान का उत्पादन बढ़िया है. इस उपज से लग रहा है कि हम इस साल अपने परिवार का भरण पोषण सही से कर पाएंगे. वह बेहद गरीब परिवार से आते हैं. मार्च-अप्रैल महीने में उपलब्ध शाजकान उनकी आय का एकमात्र स्रोत है.
शाजकन की तलाश में जंगलों में भटकना पड़ता है
बुजुर्ग बताते हैं कि शाजकान की तलाश में उन्हें कई दिनों तक जंगल में भटकना पड़ता है. वे इस मशरूम को 250 रुपये किलो के हिसाब से बेचते हैं. ये इतना महंगा इसलिए है क्योंकि इसके एक किलो के उत्पादन को हासिल करने में पूरा एक दिन लग जाता है.
सिर्फ एक महीने के लिए उपलब्ध होता है ये मशरूम
जंगली मशरूम विक्रेता मंजूर अहमद खान बताते हैं कि बोनियार और चंदूसा जैसे पहाड़ी इलाकों के गरीब लोग अपने परिवार का पेट भरने के लिए पिछले कई सालों से इस जंगली मशरूम को बेच रहे हैं. यह मशरूम एक महीने के लिए उपलब्ध होता है. साल के बाकी महीनों में हम दूसरे कृषि गतिविधियों में लग जाते हैं. हर साल इस मौसम में हम इस प्राकृतिक फसल को इकट्ठा करने के लिए परिवार के साथ जंगलों का रूख कर लेते हें.
बारामूला के अलावा कहीं और नहीं होती है बिक्री
बारामूला के अलावा कश्मीर के अन्य जिलो में इस शाजकन की बिक्री नहीं होती है. दरअसल, दुर्लभ मशरूम होने के चलते पूरे कश्मीर की मांग को पूरा नहीं किया जा सकता है. हालांकि, इसके स्वाद और स्वास्थ्य लाभ के कारण बाजार में काफी संभवानाएं हैं.
अशरफ वानी