बिहार में नई एनडीए सरकार के पास राज्य की तकदीर बदलने का सुनहरा मौका है. कृषि उत्पादन बेहतर है मगर प्रोसेसिंग की कमी के कारण किसानों को उनकी मेहनत का सही दाम नहीं मिल पाता. दुखद सच्चाई यह है कि खेत से थाली तक पहुंचने से पहले ही उपज का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है. आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 30-50% पपीते और 25% तक केले बिना इस्तेमाल के सड़ जाते हैं. सिर्फ अनाज खराब होने से ही बिहार को सालाना 4,500 करोड़ रुपये का भारी नुकसान होता है. अगर सरकार फूड प्रोसेसिंग के ढांचे को मजबूत कर दे, तो केवल फल-सब्जियों की बर्बादी रोककर ही 2,000 करोड़ रुपये बचाए जा सकते हैं.
उत्पादन बंपर, प्रोसेसिंग की दरकार
बिहार केवल चावल-गेहूं तक सीमित नहीं, बल्कि मक्का और शहद का भी बड़ा केंद्र बन गया है. समस्तीपुर और खगड़िया मक्का के हब हैं, जहां पैदावार में पिछले तीन सालो में 66% की बढ़ोतरी हुई है. इसी तरह, देश का आधा शहद अकेले बिहार में होता है. कमी बस इतनी है कि प्रोसेसिंग यूनिट्स न होने से कच्चा माल बेचने को मजबूर हैं. अगर यहीं कॉर्नफ्लेक्स बने और शहद की ब्रांडिंग हो, तो सीधा लाभ किसानों को मिलेगा.
वहीं, दूध उत्पादन में भी 65 लाख टन उत्पादन के साथ बिहार बहुत आगे है, लेकिन मात्र 12-13% दूध ही प्रोसेस हो पाता है. इससे पनीर और घी के बाजार में बड़ा अवसर खाली है. वहीं, रोहतास और कैमूर जैसे जिलों में चावल और राइस ब्रान ऑयल की इंडस्ट्री लगाकर खेती को मुनाफे में बदला जा सकता है. बिहार के पास कच्चा माल भरपूर है, बस इंतज़ार उन फैक्ट्रियों का है जो इसे 'ब्रांड' बना सकें.
इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधरेगा, तभी पलायन रुकेगा
नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती कमजोर बुनियादी ढांचा है. फूड प्रोसेसिंग की 'रीढ़' यानी कोल्ड स्टोरेज की हालत चिंताजनक है. राज्य के 120 कोल्ड स्टोरेज बंद पड़े हैं और बांका-मुंगेर जैसे कई जिलों में तो एक भी नहीं है, जिससे किसान अपनी मेहनत की उपज औने-पौने दाम में बेचने को मजबूर हैं. बिजली की समस्या भी उद्योगों की लागत बढ़ा रही है.
विडंबना यह है कि कच्चा माल बिहार में है, लेकिन रोजगार के लिए युवा दूसरे राज्यों में जा रहे हैं. अगर गांवों में ही प्रोसेसिंग यूनिट्स लग जाएं, तो पैकेजिंग और ट्रांसपोर्ट जैसे क्षेत्रों में हजारों नौकरियां पैदा होंगी. इससे न केवल खेती मुनाफे का सौदा बनेगी, बल्कि युवाओं का पलायन भी रुकेगा. इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधरते ही बिहार के विकास की अटकी हुई गाड़ी दौड़ पड़ेगी.