गोरखपुर नगर निगम के तहखाना में आज भी तीन दर्जन से अधिक हैंडकार्ट पड़े हुए हैं, जिसे खरीदने के बाद आज तक उनको इस्तेमाल में ही नहीं लाया गया है और अब तो उनमें से कई सारे खस्ताहाल हो चुके हैं. नगर निगम प्रशासन द्वारा आज से करीब तीन वर्ष पहले लाखों खर्च करके लगभग 100 की संख्या में हैंड कार्ट को खरीदा गया था. जानकारी के मुताबिक एक हैंड कार्ट की कीमत लगभग ₹18000 रुपए पड़ी, खरीदने के बाद आज तक उपयोग में ही नहीं आयी. गौरतलब है कि नगर निगम के तहखाना में आज भी तीन दर्जन से अधिक हैंड कार्ट पड़े हुए हैं जो खस्ता हाल हो चुके हैं. नगर निगम के आयुक्त गौरव सिंह सोगरवाल ने कहा कि फिलहाल इसे OLX पर बेचने का इरादा नहीं है.
इस उद्देश्य से लाया गया था ये हाथगाड़ी
दरअसल आग के तहत कुछ किशोरियों को रोजगार देने और उनके इस्तेमाल करने के लिए इन कार्ट को खरीदा गया था, लेकिन जिस उद्देश्य से खरीदा गया था वह कारगर साबित नहीं हो पाया. सूत्रों की माने तो झारखंड की तर्ज पर कि कैसे वहां की महिलाएं हाथों से ठेला गाड़ी खींचती है और अपना जीवन यापन करती है उसी तर्ज पर गोरखपुर में भी इस प्रोजेक्ट को लाया गया. झारखंड के किशोरियों से प्रेरित होकर ये प्रोजेक्ट गोरखपुर में किशोरियों के लिए लाया गया था. लेकिन यहां कि किशोरी इस काम के लिए फिट नहीं बैठ सकी जिसके बाद ये पूरा प्रोजेक्ट फ्लॉप साबित हुआ.
पार्षदों ने क्या आरोप लगाए?
गोरखपुर नगर निगम क्षेत्र के कई पार्षदों ने इस प्रोजेक्ट पर सवाल उठाया और कहा कि नगर निगम सिर्फ जनता के पैसों की बर्बादी करती है. नगर निगम प्रशासन ने हैंडकार्ट को मंगाकर उसे जर्जर स्थिति में छोड़ दिया है. दरअसल ऐसी सूचना है कि 108 की संख्या में हैंड कार्ट या हाथ ठेला/गाड़ी जिसमें कुल 30 लाख रुपए की लागत आई थी, वर्ष 2021 में मंगाया था. आलम यह है कि गोरखपुर के नगर निगम के तहखाना में तीन दर्जन से अधिक अन्यूज़्ड हैंड कार्ट गाड़ियां पड़ी है और जर्जर की स्थिति में है.
लोगों ने क्या सुझाव दिए?
अगर ऐसे ही पैसे बर्बादी करनी है तो क्यों ना इसे ओएलएक्स पर बेच दिया जाए, क्योंकि नगर निगम गोरखपुर हमेशा कबाड़ से जुगाड़ करने की बात करते हुए नए-नए प्रयोग करता रहता है. तो लोगों ने सुझाव दिया कि क्यों ना इन नए नवेले अनयूज़्ड ठेला गाड़ी जो अब जर्जर की स्थिति में जा चुके है, उसको बेचकर कुछ पैसे ही अर्जित कर ले.
नगर आयुक्त ने क्या कहा?
वही इस मामले में जब नगर निगम के आयुक्त गौरव सिंह सोगरवाल से सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि इन ठेला गाड़ियों को हमने कई ऐसी जगह तैनात किया है जहां पर तंग या सकरी गलियां है. शुरुआत में इस प्रोजेक्ट का लाभ मिला था और हमने कई SAG कार्यक्रम के तहत किशोरियों को इनसे जोड़ा था और उससे अर्जित पैसा उन्हीं लोगों को दिया जाता था. बाक़ी जो ठेला गाड़ी गोडाउन में रखा है वो बफर के तौर पर हुआ है. OLX या किसी भी प्लेटफार्म पर बेचने का अभी कोई इरादा नहीं है.