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स्किन का रंग देख लाइन में खड़ा किया, टैक्सी ड्राइवर ने वसूले डेढ़ लाख से अधिक, लड़की की कहानी

शख्स ने बताया कि उसकी बहन यूक्रेन में फंस गई थी. बाहर निकलने के दौरान उसने नस्लवाद, चोट, ठंड के मौसम और न जाने किन-किन मुसीबतों को झेला.

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यूक्रेन में फंसी थी महिला (फ़ोटो- ट्विटर)
यूक्रेन में फंसी थी महिला (फ़ोटो- ट्विटर)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बहन कई अन्य लोगों संग यूक्रेन में फंस गई थी
  • बहन ने भाई ने बताई बाहर निकलने की कहानी

Russia-Ukraine Crisis: रूस-यूक्रेन के बीच जंग जारी है. जान बचाने के लिए लोग यूक्रेन से भागकर दूसरे देशों में शरण ले रहे हैं. लेकिन इस सफर के दौरान उन्हें तमाम मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. एक पत्रकार ने अपनी बहन के यूक्रेन से निकलने की कहानी ट्विटर पर शेयर की है, जिसमें उसने बताया कि कैसे भूखे-प्यासे, मुश्किल भरे हालातों में उसकी बहन युद्धग्रस्त देश से निकल पाई. 

CNN के पत्रकार, बिजान हुसैनी (Bijan Hosseini) Twitter पर लिखते हैं- 'मेरी बहन यूक्रेन में फंस गई थी. ये थ्रेड उसके पोलैंड पहुंचने की अविश्वसनीय यात्रा के बारे में है. इस दौरान उसने नस्लवाद, चोट, ठंड के मौसम और नींद की कमी का अनुभव किया. उसकी कहानी केवल उन सैकड़ों हजारों लोगों में से एक है, जो यूक्रेन से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं.'

ऐसे यूक्रेन से पोलैंड भागे 

बिजान हुसैनी बताते हैं कि मूल रूप से मेरी बहन Sierra Leone (अफ्रीकी देश) की रहने वाली हैं. वह यूक्रेन की राजधानी Kyiv में कीव में थी, तभी युद्ध छिड़ गया, जिसके चलते वो वहीं फंस गईं.

Kyiv से लेकर Lviv (पोलैंड बॉर्डर) तक गाड़ियों का लंबा जाम लगा हुआ था. इस बीच उन्हें एक गाड़ी मिल गई. 50 हजार रुपये से अधिक देकर और 7 घंटे का सफर कर वो Dnipro (रूस की सीमा के पास पूर्वी यूक्रेन का एक शहर) पहुंचे. लेकिन यहां उन्हें आगे जाने के लिए कोई गाड़ी नहीं मिली. 

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मायूस होकर उन्होंने Lviv ले चलने के लिए गाड़ी के ड्राइवर से मिन्नतें कीं. लौटने के लिए भी गाड़ी वाले एक लाख से अधिक रुपये लिए. इस छोटी सी गाड़ी में उनकी बहन और अन्य लोगों के साथ 13 महीने का एक बच्चा भी था. सफर के दौरान आठ लोग साथ थे. Lviv पहुंचने के बाद उन्हें पैदल ही बॉर्डर तक पहुंचने की कोशिश करनी पड़ी. भूखे-प्यासे और बिना सोए, बेहद ठंडे तापमान में वो करीब 10 घंटे चले. 

नस्लवाद का शिकार हुई 

बिजान हुसैनी ने अपने ट्वीट में आगे लिखा की जब वे (बहन और उसके साथी) Lviv (पोलैंड बॉर्डर) पहुंचे तो उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया. दो लाइनें बना दी गईं. एक गोरे लोगों के लिए, दूसरी सभी के लिए. केवल यूक्रेनियन को ही बॉर्डर पार जाने दिया जा रहा था. हजारों लोग ठंड में बाहर सोने को मजबूर थे. ऐसे में लोगों को गर्म रखने के लिए आग जलाई गई. 

हुसैनी कहते हैं कि अगली सुबह मेरी बहन बेहोश हो गई. वह चलने-फिरने से थक चुकी थी और उसे ठीक से नींद या भोजन भी नहीं मिल रहा था. एम्बुलेंस से उसे बॉर्डर से 4 मील पूर्व में एक अस्पताल में ले जाया गया. वहां उसे कुछ पेय दिया गया, जिससे अंत में उसे कुछ आराम मिला. 

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फिर से जब वह पोलैंड बॉर्डर पहुंची तो किसी ने घोषणा की कि "सभी अश्वेत" आगे नहीं जा सकते. लेकिन उनकी बहन और उसके दोस्तों ने बहादुरी का परिचय दिया और ऐसा करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि उसके साथ वैसा ही नस्लवादी व्यवहार किया गया जैसा कि हजारों अन्य लोगों ने बताया है. 

पांच घंटे तक बॉर्डर पर बैठने के बाद, उन्हें आखिरकार जाने दिया गया. उनकी 4 दिन से अधिक की यात्रा (108 घंटे) समाप्त हुई. हुसैनी कहते हैं कि मेरी बहन भाग्यशाली है. फिलहाल वह एक होटल में सुरक्षित है. लेकिन उसके जैसे हजारों लोग अभी भी यूक्रेन में फंसे हुए हैं. वो कहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, रूसी आक्रमण के दौरान 50 लाख से अधिक शरणार्थी यूक्रेन से भागे हैं. 

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