कर्नाटक राज्य के बागलकोट ज़िले में स्थित ऐहोले (Aihole) और पत्तदकल (Pattadakal) भारत की प्राचीन मंदिर वास्तुकला के अत्यंत महत्वपूर्ण केंद्र हैं. ये दोनों स्थल चालुक्य वंश (6वीं–8वीं शताब्दी) से जुड़े हुए हैं और दक्कन क्षेत्र में मंदिर निर्माण की विकास यात्रा को दर्शाते हैं.
ऐहोले को भारतीय मंदिर वास्तुकला की “प्रयोगशाला” (Cradle of Indian Temple Architecture) कहा जाता है. यहां लगभग 125 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें अलग-अलग शैलियों के प्रयोग दिखाई देते हैं. ऐहोले के मंदिरों में हिंदू, जैन और बौद्ध प्रभाव देखने को मिलते हैं. यहां के प्रमुख मंदिरों में दुर्गा मंदिर, लाड़ खान मंदिर, हूच्चिमल्ली मंदिर और मेगुती जैन मंदिर प्रसिद्ध हैं. दुर्गा मंदिर अपने अर्ध-गोलाकार गर्भगृह और स्तंभों के लिए जाना जाता है. ऐहोले में नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों के प्रारंभिक रूप देखने को मिलते हैं.
पत्तदकल, ऐहोले से लगभग 23 किलोमीटर दूर स्थित है और यह स्थल यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है. पत्तदकल को चालुक्य राजाओं का राज्याभिषेक स्थल माना जाता था. यहां मंदिर वास्तुकला की परिपक्व अवस्था दिखाई देती है. पत्तदकल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां नागर (उत्तर भारतीय) और द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) दोनों शैलियों के मंदिर एक साथ देखने को मिलते हैं.
पत्तदकल के प्रमुख मंदिरों में विरुपाक्ष मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर, पापनाथ मंदिर और जैन नारायण मंदिर शामिल हैं. विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण रानी लोकमहादेवी ने किया था और यह द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है. मंदिरों की दीवारों पर रामायण, महाभारत और शिव-पार्वती से जुड़ी सुंदर मूर्तिकला उकेरी गई है.