कार्तिक मास की एकादशी तिथि भगवान के जागरण की तिथि है. पुराणों की मानें तो ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीविष्णु जो कि चार मास से क्षीरसागर में शयन कर रहे थे, वह अपनी योगनिद्रा से जागते हैं और फिर धरती के पालन का कार्यभार संभालते हैं.
जागृति की तिथि है एकादशी
कार्तिक के एकादशी की तिथि जागरण की तिथि होती है और इस दिन देव दीपावली भी मनाई जाती है. मान्यताओं के अनुसार जब भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जाग जाते हैं तब देवी लक्ष्मी भी उनके साथ क्षीरसागर और वैकुंठ लोक में उनके साथ विराजित होती हैं और लक्ष्मी देवी के शुभ आगमन के कारण ही देवता दीपावली मनाते हैं, जिसे देव दीपावली कहा जाता है.
घरों में भी करते हैं देव जागरण के अनुष्ठान
कार्तिक एकादशी पर श्रद्धालु घरों में भी देव जागरण का अनुष्ठान करते हैं. इस दिन विष्णु भगवान की विशेष पूजा की जाती है और कार्तिक का दीपदान करके दीपावली की ही तरह दीपक जलाने चाहिए. स्कंदपुराण में ब्रह्माजी ने खुद देव जागरण अनुष्ठान के महत्व का वर्णन किया है.
स्कंदपुराण के कार्तिक महात्म्य खंड में ब्रह्म देव बताते हैं कि जो पुरुष कार्तिक मास में हर एक दिन पुरुषसूक्तके मंत्रों से या फिर पांच रातों तक विधि के अनुसार भगवान विष्णु का पूजन करता है, वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है. जो कार्तिक में 'ॐ नमो नारायणाय' इस मंत्र से श्रीहरि की आराधना करता है, वह नरक के दुःखों से मुक्त हो, रोग-शोक से छूटकर वैकुण्ठ धाम को प्राप्त होता है.
इस मंत्र का जरूर करें पाठ
कार्तिक मास में जो मनुष्य विष्णुसहस्रनाम तथा गजेन्द्रमोक्षका पाठ करता है, उसका फिर संसारमें जन्म नहीं होता. जो कार्तिक मास में रात्रि के प्रहर में भगवान् की स्तुति का गान करता है, वह पितरों सहित श्वेतद्वीप में निवास करता है. आषाढ के शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया था. इसी दिनसे आरम्भ करके भगवान चार मास तक क्षीरसमुद्र में शयन करते हैं ओर कार्तिक शुक्ला एकादशीको जागते हैं. इस कारण वैष्णवों को एकादशी में इस विशेष मंत्र का उच्चारण करके भगवान् को जगाना चाहिये.
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज,
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमङ्लं कुरु ॥
(हे गोविन्द । उठिये, उठिये, हे गरुडध्वज । उटिये, हे कमलाकान्त! निद्राका त्याग कर तीनां लोकोंका मंगल कीजिये)'
ऐसा कहकर प्रातःकाल शंख ओर नगाड़े आदि बजवावें. वीणा, वेणु ओर मृदंग आदि की मधुर ध्वनि के साथ नृत्य-गीत ओर कर्तन आदि करें. देवेश्वर श्री विष्णुको उठाकर उनकी पूजा करें ओर सायंकाल में तुलसी की वैवाहिक विधि को संपन्न करें.