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मोटापे से चुस्ती तक का सफर

कभी खूबसूरती से जुड़ी समस्या रहा मोटापा अब एक जगजाहिर बीमारी की शक्ल ले चुका है. वजन कम करने की बेताबी दुनिया भर में चिकित्सा क्षेत्र में नई संभावनाओं की राह खोलती जा रही है.

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बात सन्‌ 2000 की है. मुझे सिंगापुर में एक कॉन्फ्रेंस का निमंत्रण मिला था. इसमें दुनिया भर के शीर्ष मेडिकल दिग्गजों को आना था. अमेरिका में मोटापे की महामारी अपने चरम पर थी और कुछ प्रतिष्ठित अमेरिकी सर्जनों ने यह चर्चा की थी कि इससे किस तरह चिकित्सा की दुनिया में नए मोर्चे खुल रहे हैं, जैसे वेट लॉस सर्जरी.

मैं सोच में पड़ गया. मैं वापस लौटा और भारत में मोटापे पर जो भी आंकड़े मिल सकते थे, वह जुटाए. आंकड़े बताते थे कि 1989 से 1999 के बीच देश में मोटे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी. इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह थी कि इतनी ही वृद्धि 1999 से 2001 के तीन साल में हुई थी. मुझे बिल्कुल साफ नजर आ रहा था कि मोटापा खामोशी से भारत पर लगातार हमले कर रहा है.Obesity

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कहीं कुछ गड़बड़ तो थीः भारतीयों की खान-पान की आदतें बदल रही थीं. भारत सरकार ने 1990 में ऐतिहासिक नीतिगत सुधार से अपने दरवाजे दुनिया के लिए खोल दिए थे. उसी साल दिल्ली के कनॉट प्लेस में भारत के पहले विदेशी फास्ट फूड चेन का रेस्तरां खुला था. नए और सुविधाजनक भोजन के उत्साह के पहले झौंके ने हमें यही भुला दिया कि हम हमेशा से क्या खाया करते थे.

हालांकि किसी व्यक्ति का वजन बढ़ने के खतरे को उसके जीन निर्धारित करते है, लेकिन सही वजन कायम रखने के लिए कैलोरी के सेवन का संतुलन अहम होता है. एनर्जी डेंस डाइट-जिसमें कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट, चीनी और सैचुरेटेड फैट ज्‍यादा हो और साथ ही शारीरिक गतिविधियां कम हों-ने इस बढ़ती महामारी में अपना योगदान दिया है.

इस स्थिति को बदलना जरूरी था. उस समय तक हम मोटापे को एक तरह की कॉस्मेटिक समस्या के रूप में देखा करते थे. लेकिन मोटापा बहुत ही मुश्किल और खर्चीली बीमारी है. वास्तव में यह कई रोगों की जड़ है. मैंने अपनी मित्र श्यामा चोना से बात की, जो उस समय दिल्ली के आर.के. पुरम स्थित डीपीएस में प्रिसिंपल थीं, और पहली बार उन्हीं के स्कूल से जागरूकता अभियान शुरू किया.

दिल्ली के संपन्न स्कूलों में स्कूली बच्चों के एक सर्वेक्षण से 2002 में मोटापे की दर 12-13 फीसदी पाई गई. 2006 तक यह दर 30 फीसदी तक पहुंच गई. अब यह लगभग 40 फीसदी है. 2004 में मैंने ओबेसिटी ऐंड मैटाबोलिक सर्जरी सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना की, देश के सारे अहम लोगों के सामने अपनी बात रखी और अंततः दो राष्ट्रपतियों-के.आर. नारायणन और ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के सामने अपनी बात रखी.

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उस समय तक मोटापे की समस्या वैश्विक रूप से तेजी से फैलती जा रही थी, और उसे 'ओबेसिटी' की बजाए 'ग्लोबेसिटी' कहा जाने लगा था. अब यह सिर्फ विकसित देशों की समस्या नहीं था. भारत में कुपोषण के साथ-साथ मौजूद इस समस्या ने चिकित्सा संबंधी आर्थिक बोझ को दोगुना कर दिया था.

मोटापा एक जटिल स्थिति है जिसके गंभीर सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू होते हैं, और जो लगभग सभी आयु वर्गों को प्रभावित करता है. मोटापे से टाइप टू डायबिटीज, हृदय रोग, हाइपरटेंशन और स्ट्रोक, बांझ्पन और कुछ तरह के कैंसर विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है. जो चीज इसे हमारे लिए खतरनाक बना देती है, वह यह है कि कॉकेशियन्‍स (गोरे लोगों) के विपरीत, हम सबसे खतरनाक किस्म का मोटापा पाल लेते हैं: पेट का मोटापा, जो दिल, ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल पर कहर बरपा देता है.

मोटापे की यह सुनामी जल्द ही उन रोगियों में झलकने लगी, जो मुझ तक आते थेः ऐसे लोग जो इतने भारी थे कि वे सांस नहीं ले पाते थे, खड़े नहीं हो पाते थे, बमुश्किल चल पाते थे, व्हीलचेयर पर ही गुजारा करते थे या अपने जूतों के फीते खुद नहीं बांध सकते थे. वे दवाई, खुराक और व्यायाम की हदों से दूर जा चुके थे.

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वेट लॉस (या बेरियाट्रिक) सर्जरी अमेरिका में प्रचलन में आ चुकी थी और नई प्रौद्योगिकी आने लगी थी, ऐसे में हम में से कुछ लोगों ने भारत में सर्जरी की शुरुआत की. यह अंतिम उपाय और उन रोगियों की जान बचाने के तौर पर की जाती थी जो निगरानी में/या बिना निगरानी में वजन घटाने की कई असफल कोशिशें कर चुके थे.

इस तरह की सर्जरी के विभिन्न प्रकार होते हैं: गैस्ट्रिक बैंडिंग, बाइपास या पेट को बांध कर एक छोटा पाउच बना देना, या स्लीव गैस्ट्रेक्टॉमी, या अमाशय का अधिकांश हिस्सा हटाकर बाकी बचे हिस्से को सिर्फ एक पतली ट्यूब में तब्दील कर देना. समय के साथ ऑपरेशनों से जुड़े जोखिम कम हुए हैं.

मरीजों के वजन में औसतन 6-8 किलो प्रति माह की कमी आती है, और इससे इन रोगियों में होने वाले परिवर्तन के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर कहने वाली कोई बात नहीं बचती है. नतीजे असरदार हैं और जीवन बदल रहा है. इसमें मल्टीडिसिप्लिनरी तरीका अपनाया जाता है जिसमें डाइटीशियन, काउंसलर, मनोवैज्ञानिक और मोटापा कम करने में मदद करने वाले कई लोग शामिल होते हैं. आज किसी सर्जन के लिए यह देखना वाकई शानदार अनुभव होता है कि कोई मरीज मोटापे से चुस्ती तक का सफर किस तरह तय कर लेता है.

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वाइस चेयरमैन, चीफ ऑफ सर्जरी और मैक्स हेल्थकेयर में मिनिमल एक्सेस, मैटाबोलिक और बेरियाट्रिक सर्जरी के डायरेक्टर. वे भारत के कई राष्ट्रपतियों और दलाई लामा के सर्जन रह चुके हैं. एशिया में मोटापे की सर्जरी की सुविधा लाने का श्रेय उन्हें ही जाता है.

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