सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 5 रोहिंग्या नागरिकों की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर कड़ी टिप्पणी की. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि भारत अवैध रूप से प्रवेश करने वालों के लिए रेड कार्पेट नहीं बिछा सकता.
कोर्ट ने पूछा कि क्या राज्य पर यह दायित्व है कि वह अवैध रूप से घुसे लोगों की रक्षा करे और उन्हें देश में बने रहने दे.
सीजेआई ने गृह मंत्रालय के उस आदेश की कॉपी मांगी जो यह निर्धारित करता है कि किन परिस्थितियों में कोई व्यक्ति शरणार्थी माना जा सकता है. उन्होंने कहा, “शरणार्थी एक कानूनी रूप से परिभाषित शब्द है. यह स्पष्ट होना चाहिए कि किन शर्तों पर यह दर्जा दिया जाता है.”
याचिकाकर्ताओं के वकील जे. जो एंटन बेनो ने दलील दी कि उनका विरोध निर्वासन के अधिकार पर नहीं है. मुद्दा यह है कि जिन लोगों को हिरासत में लिया गया, वे कहां हैं, इसका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. उन्होंने कहा, “यह मामला उनकी कानूनी स्थिति का नहीं, बल्कि उनके गायब होने का है. हमें नहीं पता कि उन्हें उठाए जाने के बाद उनका क्या हुआ.”
जवाब में सीजेआई ने पूछा, “अगर कोई अवैध रूप से भारत में प्रवेश करता है तो क्या हम पर उसे यहां रखने का दायित्व है? आप जानबूझकर सीमा पार करते हैं, सुरंग या अवैध रास्ते से प्रवेश करते हैं और फिर कहते हैं कि अब आपको सभी अधिकार मिलें.”
कोर्ट ने सीमा सुरक्षा और उत्तर-पूर्व भारत की संवेदनशीलता का जिक्र करते हुए कहा, “आप जानते हैं कि हमारी सीमा कितनी संवेदनशील है. जब कोई अवैध रूप से आता है और कानून के तहत पकड़ा जाता है, तो आप चाहते हैं कि हम उसके लिए रेड कार्पेट बिछाएं?”
वकील ने तर्क दिया कि उनका उद्देश्य केवल उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करना है और निर्वासन भी कानून के तहत हो. इस पर सीजेआई ने कहा, “कानून सभी पर समान रूप से लागू होगा. यदि हम एक देश के लोगों को विशेष छूट दें, तो इसे दूसरे देशों पर भी लागू करना होगा.”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि याचिका दायर करने वाले एक अजनबी के इशारे पर सरकार से निर्वासन प्रक्रिया, दूतावासों से बातचीत और पहचान संबंधी संवेदनशील डेटा मांगा जा रहा है, जो उचित नहीं है.
अंत में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को जनवरी तक स्थगित करते हुए इसे इसी विषय से संबंधित अन्य याचिकाओं के साथ टैग करने का आदेश दिया.