केरल हाईकोर्ट ने मुण्डक्कई–चूरलमाला आपदा पीड़ितों के बैंक लोन माफ न करने के केंद्र सरकार के रुख पर तीखी नाराजगी जताई है. अदालत ने कहा कि आपदा पीड़ितों के प्रति केंद्र को कंजूसी भरा रवैया नहीं अपनाना चाहिए. अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए पूछा, “केंद्र आखिर किसे बेवकूफ बना रहा है? अगर मदद नहीं करनी है तो जनता को साफ-साफ बता दे.”
हाईकोर्ट ने केंद्र के उस हलफनामे को बचपने भरा और अस्वीकार्य बताया जिसमें कहा गया था कि लोन माफी संभव नहीं है. अदालत ने कहा कि केंद्र यह नहीं कह सकता कि उसके पास लोन माफ करने का अधिकार नहीं है, असली सवाल यह है कि क्या वह ऐसा करना चाहता है या नहीं.
न्यायमूर्ति डॉ. एके जयशंकरन नांबियार और जॉबिन सेबेस्टियन की खंडपीठ ने कहा कि केंद्र आपदा पीड़ितों की मदद करने में नाकाम रहा है. अदालत ने टिप्पणी की, “आपदा पीड़ितों को केंद्र की दया नहीं चाहिए. संविधान पढ़िए, क्या आपने उसे पढ़ा भी है?”
अदालत ने कहा कि अगर केंद्र सरकार मदद नहीं करना चाहती, तो जनता के सामने साफ-साफ कह दे. अदालत ने केंद्र के हलफनामे को बेहद परेशान करने वाला बताया और चेतावनी दी कि यदि यही रवैया जारी रहा, तो अदालत सख्त रुख अपनाएगी.
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में केंद्र ने तुरंत करोड़ों रुपये की मदद मंजूर कर दी, जबकि केरल के आपदा पीड़ितों के साथ यह दोहरा व्यवहार समझ से परे है.
अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह सभी राष्ट्रीयकृत बैंकों की सूची पेश करे और उन बैंकों को भी इस स्वतः संज्ञान (suo motu) मामले में पक्षकार बनाए. जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती, अदालत ने आपदा पीड़ितों के खिलाफ बैंक वसूली की सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी है. यह स्वतः संज्ञान मामला अगले बुधवार को फिर से केरल हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है.