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रातोंरात कैसे बदले पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के तेवर?: दिन भर, 9 नवंबर

नए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के सामने कौन-कौन सी चुनौतियां होंगी, यूपी उपचुनाव में किसका पलड़ा भारी, 22 सालों में उत्तराखंड ने क्या खोया क्या पाया और रातोंरात कैसे बदले पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के तेवर, सुनिए 'दिनभर' में

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पाक ने निभाया वादा, अब भारत की बारी

क्रिकेट का खेल बड़ा दिलचस्प है. अभी दो हफ़्ते पहले इंडिया और ज़िम्बाब्वे से हारने के बाद लोगों को लगने लगा था कि टी-20 वर्ल्ड कप से पाकिस्तान का बोरिया बिस्तर बंध गया है. लेकिन, फिर क़िस्मत ने करवट ली और साउथ अफ़्रीका, नीदरलैंड से हार गया. नतीजा ये हुआ कि ग्रुप 2 से सेमीफाइनल के लिए पाकिस्तान का रास्ता खुल गया. आज सिडनी में पहला सेमीफाइनल मुक़ाबला था, जिसमें पाकिस्तान ने न्यूजीलैंड को 7 विकेट से हराकर फाइनल में जगह बना लिया. टॉस जीतकर पहले बैटिंग करते हुए न्यूजीलैंड की टीम ने 20 ओवरों में 4 विकेट के नुकसान पर 152 रन बनाये, जवाब में पाकिस्तान ने 3 विकेट खोकर टारगेट अचीव कर लिया. कप्तान बाबर आज़म और मोहम्मद रिज़वान ने ओपनिंग करते हुए फ़िफ्टी प्लस के स्कोर बनाए और पाकिस्तान का काम बना दिया. न्यूजीलैंड की किन ग़लतियों ने पाकिस्तान को दिया फाइनल का टिकट, दिनभर में सुनने के लिए क्लिक करें. 

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कॉलेजियम की रक्षा कौन करेगा!

धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जिन्हें हम डीवाई चंद्रचूड़ के नाम से जानते हैं वो आज ऑफिशियली देश के 50वें चीफ जस्टिस बन गए हैं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई. चंद्रचूड़ ने पूर्व चीफ जस्टिस यूयू ललित की जगह ली जिनका सीजेआई के तौर पर 74 दिनों का छोटा कार्यकाल था. अब जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 तक सीजेआई होंगे. उनके परिचय की शुरुआत यहां से की जा सकती है कि जब वो दिल्ली यूनिवर्सिटी में कानून पढ़ रहे थे, तब उनके पिता वाई वाई चंद्रचूड़ देश के 16वें चीफ जस्टिस थे. देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक चीफ जस्टिस का बेटा चीफ जस्टिस बना. चंद्रचूड़ के नाम अनगिनत ऐतिहासिक फैसले दर्ज है. हाल ही में ट्विन टावर गिराने का फैसला भी इनकी अध्यक्षता में लिया गया था. सुप्रीम कोर्ट से बाहर भी जस्टिस चंद्रचूड़ अपनी टिप्पणियों को लेकर चर्चा में बने रहते हैं. वो लोकतंत्र, असहमति और फ्री स्पीच को बचाने की वकालत करते रहे हैं. हालांकि, सीजेआई के रूप में जस्टिस चंद्रचूड़ के सामने कई चुनौतियां भी होंगी. इन्हीं में से एक कॉलेजियम सिस्टम भी है जिसपर कानून मंत्री किरण रिजिजू ने हाल ही में सवाल उठाए थे और जिसके मेंबर खुद चंद्रचूड़ भी हैं. वो कौन कौन से फैसले रहे जिसके लिए चंद्रचूड़ को जाना जाता है और आने वाले दिनों में चंद्रचूड़ के सामने चैलेंजज क्या क्या रहने वाले हैं? दिनभर में सुनने के लिए क्लिक करें.

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मैनपुरी-रामपुर के चुनावी हाल

पिछले शनिवार चुनाव आयोग ने यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट और रामपुर की विधानसभा सीट पर उपचुनाव की तारीखों का ऐलान किया. दोनों सीटों पर 5 दिसंबर को चुनाव होंगे. मैनपुरी सीट से मुलायम सिंह यादव सांसद थे, उनके निधन के बाद सीट खाली हो गई है. रामपुर से विधायक थे आजम खान. मगर एक विवादित बयान को लेकर उन्हें तीन साल की सजा हुई और विधायकी चली गई. सपा एक ओर जहां दोनों सीटों को अपने पाले में बरकरार रखने की कोशिश में हैं तो वहीं बीजेपी इसे अपनी ओर खींचने की कोशिश में. हलचल तो ये भी है कि रामपुर सीट से बीजेपी मुस्लिम उम्मीदवार भी उतार सकती है.  
वहीं अगर सपा की गठबंधन पर नज़र दौड़ाएं तो रालोद का साथ बरकरार है मगर शिवपाल अभी भी अलग हैं. ऐसे में यादव वोटर्स के बंटने का ख़तरा है. हाल ही में रामपुर और आजमगढ़ में हुए विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी ने बाजी मारी थी जिसके बाद उसके हौसले बुलंद हैं लेकिन बड़ा प्रश्न शिवपाल का है. उनका अखिलेश के साथ न होना क्या सपा के वोट बैंक में सेंधमारी कर सकता है, सपा का जो यादव वोट बैंक है उसे साधने के लिए बीजेपी क्या प्लान कर रही है, दिनभर में सुनने के लिए क्लिक करें.

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उत्तराखंड का 22 साल का सफ़र

उत्तराखंड सांस्कृतिक और भाषाई आधार पर साल 2000 में उत्तराखंड यूपी से अलग हुआ. उस वक्त इसका नाम पड़ा उत्तराचंल. फिर 2007 में नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया. उत्तराखंड जब यूपी का हिस्सा था तो इसके सामने सांस्कृतिक चुनौतियों के अलावा राजनीतिक चुनौतियां भी थी. लोकसभा में केवल 2 सीटें और उत्तर प्रदेश विधानसभा में 15 सीटें ही उत्तराखंड को दी गईं थी. राज्य का दर्जा मिलने के बाद ये शिकायत तो दूर हुई मगर इसके साथ ही कई चुनौतियां भी सिर उठाए खड़ी हुईं. राज्य पर कर्ज का बोझ, नौकरी, पलायन, शिक्षा, आपदा प्रबंधन, पर्यावरण जैसे कई अन्य मुद्दों पर खुद को साबित करने की चुनौती उत्तराखंड के सामने थीं. यहां की राजनीति और भूगोल के जानकार बताते हैं कि 22 सालों में प्रदेश की राजनीति में या फिर किसी भी अन्य पदों पर ठाकुर और ब्राह्मण का वर्चस्व रहा है. इसका कारण ये है कि इस पहाड़ी राज्य में 35 फीसदी मतदाता ठाकुर हैं और 25 फीसदी ब्राह्मण. इसके अलावा देवस्थान बोर्ड को लेकर, ज़िले बढ़ाने को लेकर भी खूब हल्ला कटा. तो  22 सालों में राज्य ने क्या खोया क्या पाया, दिनभर में सुनने के लिए क्लिक करें

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