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'यह दिलाता है आपातकाल की याद...', जस्टिस स्वामीनाथन के समर्थन में उतरे 50 से अधिक पूर्व जज, विपक्ष पर बोला तीखा हमला

मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ विपक्ष द्वारा लाए गए महाभियोग प्रस्ताव का 50 से अधिक पूर्व न्यायाधीशों ने विरोध किया है और उनके समर्थन में खुला पत्र लिखा है. सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों ने विपक्ष के इस कदम को न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश बताया है.

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मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन. (Photo: PTI)
मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन. (Photo: PTI)

मद्रास हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव ने देश की न्यायपालिका और राजनीति में हलचल मचा दी है. इस विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट के 50 से अधिक पूर्व न्यायधीशों ने एक संयुक्त बयान जारी कर जस्टिस स्वामीनाथन के प्रति एकजुटता दिखाई है और उनके समर्थन में लिखे खुले पत्र में महाभियोग प्रस्ताव की कड़ी निंदा की है. पूर्व न्यायधीशों का कहना है कि दीपम मामले में दिए गए एक फैसले को आधार बनाकर जस्टिस स्वामीनाथन पर कार्रवाई की कोशिश न्यायिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला है.

पूर्व जजों ने अपने पत्र में लिखा है कि यह सब कुछ आपातकाल की याद दिलाता है, जब संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश की गई थी. पत्र में कहा गया है कि इस तरह के कदम उन जजों को डराने-धमकाने के प्रयास हैं, जो किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा के अनुरूप फैसले नहीं देते. पूर्व जजों ने एक संयुक्त बयान जारी कर विपक्षी इंडिया ब्लॉक के इस महाभियोग प्रस्ताव को न्यायपालिका पर दबाव बनाने की अनुचित और खतरनाक कोशिश बताया है. बयान में कहा गया है, 'राजनीतिक या वैचारिक मतभेद के चलते किसी भी जज को निशाना बनाना गलत और न्याय व्यवस्था के लिए हानिकारक है.'

यह लोकतंत्र की जड़ें काटने का प्रयास

पूर्व जजों ने यह भी याद दिलाया कि पिछले कुछ वर्षों में देश के कई वरिष्ठ न्यायाधीशों, जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस
एस.ए. बोबडे और जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के खिलाफ भी इसी तरह के प्रयास किए जा चुके हैं. ओपन लेटर में लिखा है, 'यह कृत्य न्यायपालिका को दबाव में लाने और उसकी स्वायत्तता कमजोर करने की एक कोशिश है. ऐसी कार्रवाई लोकतंत्र की जड़ों को काटने जैसा है.'

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उनका कहना है कि न्यायाधीशों पर इस तरह का दबाव न केवल न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है बल्कि न्याय के प्रति जनता के विश्वास को भी कमजोर करता है. उन्होंने यह भी कहा कि किसी विवादित राजनीतिक या सामाजिक मामले में दिया गया फैसला यदि किसी पक्ष को असहज करता है तो इसका मतलब यह नहीं कि उस जज पर कार्रवाई की जाए. पूर्व न्यायाधीशों ने स्पष्ट कहा है कि अदालतें राजनीतिक दबाव से मुक्त रहकर ही सही मायनों में न्याय दे सकती हैं.

विपक्ष क्यों लाया है महाभियोग प्रस्ताव?

जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ विपक्षी इंडिया ब्लॉक के 100 से अधिक सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव लाया है. तिरुपरंकुंद्रम दीपम विवाद में उनके 1 दिसंबर, 2025 के फैसले को लेकर विपक्ष ने यह कदम उठाया है. इंडिया ब्लॉक का आरोप है कि जस्टिस स्वामीनाथन के फैसले निष्पक्षता, पारदर्शिता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ हैं और उन्होंने विशेष वकीलों या समुदाय के पक्ष में फेवरिटिज्म दिखाया है.

मुख्य विवाद उसी फैसले से शुरू हुआ जिसमें जस्टिस स्वामीनाथन ने तमिलनाडु के तिरुपरंकुंद्रम की पहाड़ी पर पारंपरिक कार्तिगई दीपम लैंप जलाने की अनुमति दी थी. यह स्थान एक मंदिर और एक दरगाह के पास स्थित है. तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने कानून-व्यवस्था संबंधी चिंताओं और पहाड़ी की दरगाह से निकटता का हवाला देते हुए जस्टिस स्वामीनाथन के इस आदेश का विरोध किया. इंडिया ब्लॉक ने इस फैसले को न्यायिक पक्षपात और धर्मनिरपेक्षता की अवहेलना बताया. 

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