वाराणसी जिला कोर्ट में शनिवार को ज्ञानवापी को लेकर एक नई याचिका दायर की गई. याचिका में कहा गया है कि नंदी जी महाराज को भगवान शिव की सेवा में रहने का अंतर्निहित अधिकार है, जहां भी भगवान विराजमान हैं. याचिका में कहा गया है कि अभ्यास की बात है, यह सदियों से विकसित हुआ है कि हर शिव मंदिर में नंदी जी को अनिवार्य रूप से स्थापित किया जाता है और यह प्रथा वैदिक सनातन धर्म का अनिवार्य हिस्सा बनें.
याचिका में दावा किया गया है कि श्री आदि विश्वेश्वर का मूल ज्योतिर्लिंग पुराने मंदिर परिसर के भीतर मुसलमानों द्वारा अवैध रूप से और अनधिकृत रूप से बनाए गए अधिरचना के नीचे स्थित है. हिंदू भक्तों को पुराने मंदिर परिसर के भीतर देवता के दर्शन करने की अनुमति नहीं दी जा रही है. नंदीजी की ओर से दायर नई याचिका में मूल शिव मंदिर को "पुनर्स्थापित" करने के लिए अदालत से आदेश देने की मांग की गई है, जहां नंदी "देवता की ओर देख सकें". "औरंगजेब के इंजीनियरों" द्वारा बनाए गए "अवैध अधिरचना" को "तोड़ने" के निर्देश भी मांगे गए हैं.
ज्ञानवापी का भी किया गया ASI सर्वे
वाराणसी के जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने ज्ञानवापी मस्जिद के सील वजूखाने वाले हिस्से को छोड़कर ASI के सर्वे का आदेश दिया था. हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि सर्वे के दौरान शिवलिंग मिला है. जबकि मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया था. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है. ASI सर्वे में सजावटी ईंटें, दरवाजे के टुकड़े, चौखट के अवशेष समेत कुल 250 से ज्यादा सामग्रियां मिली हैं. इन्हें जिला प्रशासन को सौंपा जा गया है. हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मामले में इससे उन्हें काफी मदद मिलेगी.
क्या है ASI?
ASI भारत के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली संस्था है. यह देश में ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण का काम करती है. ASI पुरातात्विक सर्वे, यानी पुरानी चीजों का गहन अध्ययन करती है. ऐतिहासिक इमारतों के रखरखाव, मेंटेनेंस और अन्य जरूरी काम ASI की ही जिम्मेदारी है. - ASI सर्वे के लिए कई वैज्ञानिक तरीकों का सहारा लिया जाता है. इसमें कार्बन डेटिंग, स्ट्रैटिग्राफी, आर्कियोमेट्री, डेंड्रोक्रोनोलॉजी, एथनो क्रोनोलॉजी, आर्कियोलॉजिकल एक्सकैवेशन और अंडरवाटर आर्कियोलॉजी शामिल है.