"अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा." भारतीय जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने 1980 में यानी 43 साल पहले पार्टी की स्थापना के समय ये बात कही थी. शायद उन्होंने यह बात पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए कही होगी लेकिन उस समय शायद ही किसी ने सोचा होगा कि आने वाले दिनों में वाजपेयी की बातें सही साबित होगीं...आज बीजेपी भारत की सबसे अमीर, सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली राजनीतिक पार्टी है. राजनीतिक विश्लेषक जब भी बीजेपी की इस सफलता का आकलन करते हैं, कई कारणों में से एक निर्विवाद कारण निकल के आता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. जो सही भी है- संघ की ग्राउंड पर मजबूत पकड़ बीजेपी को राजनीतिक पार्टियों के टफ मुकाबले में एज दिला देती है. अब जब देश में एक साल रह गए हैं लोकसभा चुनाव को. आरएसएस की हर साल होने वाली अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक चर्चा में है. रविवार से शुरू हुई ये बैठक कल खत्म हुई. तीन दिन की इस बैठक में संघ के नेताओं के अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत कई नेता शामिल हुए. बैठक के समापन पर आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने मीडिया को विस्तार से बैठक के बारे में जानकारी दी.
चुनाव में जब महज एक साल हों तब ऐसी बैठकों की महत्ता और बढ़ जाती है. कुछ रूटीन अनाउंसमेंट जरूर थे लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि ये बैठक कई मायनों में नये फैसले भी ले कर आई है. विस्तार से जानने को कि इस तीन दिन की बैठक के हाइलाइट्स क्या रहे और क्या नया हुआ? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
_______
चुनावों के ही लिहाज से एक और खबर आई देश के दो राज्यों से. आम आदमी पार्टी ने ऐलान किया है कि आने वाले मध्यप्रदेश और राजस्थान के लोकसभा चुनावों में वो सारी सीटों पर लड़ेगी. राजस्थान को लेकर लगभग आम आदमी पार्टी की रणनीति पहले ही क्लियर हो चुकी थी, बचा था मध्यप्रदेश जिसके दौरे पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ पहुंचे थे, वहाँ भी उन्होंने तस्वीर साफ कर दी. इस ऐलान के साथ केजरीवाल ने कल मध्यप्रदेश में वादे भी किए हैं. ये वादे पंजाब, गुजरात जैसे ही हैं. यहाँ भी स्वास्थ्य शिक्षा और बिजली मुफ़्त करने के वादे किए गए हैं. असरदार कितने होंगे ये पता चलने में अभी लंबा वक्त है- लेकिन ये राज्य में दो विकल्पों के अलावा तीसरे विकल्प के तौर पर आम आदमी पार्टी के होने का राज्य की सियासत में किस तरह का असर पड़ेगा? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
________
भारत कृषि प्रधान देश है, ये सुनते सुनते हम बच्चे से बड़े हो गए, कुछ लोग बूढ़े हो गए, कुछ इस दुनिया को अलविदा भी कह गए. लेकिन कृषि की पेशे के तौर पर स्थिति सुधर नहीं सकी. देश में आज भी किसानों की आत्महत्या आम खबर है, आज भी फर्जी किसान फंड डकार रहे हैं और आज भी सरकारी गोदामों की बदहाली कैमरे के लिए आम तस्वीर है. सारी सरकारें कहती हैं सूरत बदलेगी लेकिन सवाल है.. आखिर कितनी बदली है? कल लोकसभा में पेश संसदीय कमेटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ कृषि और किसान कल्याण विभाग ने पिछले तीन सालों के दौरान अपने बजट का 44,015.81 करोड़ रुपये वापस कर दिया, क्योंकि बजट का पूरा यूज नहीं हो सका. रिपोर्ट में आगे कहा गया है, कि 2020-21 में वापस की गई रकम करीब 24 हजार करोड़ थी, 2022-23 में 19,762.05 करोड़ रुपये. इस रिपोर्ट में कमेटी ने इसे रॉग प्रैक्टिस भी कहा है. इसके साथ ही किस तरह से साल दर साल भारत का कृषि बजट घटा है, इसका भी जिक्र है. क्या कारण रहे इसके असल में? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.