जिन लोगों ने 'जलवायु परिवर्तन' को हाल ही में जाना है, उनके लिए 'नेट ज़ीरो' एक ऐसा शब्द है जो पर्यावरण जगत में काफी कॉमन हो गया है. 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन जिसे COP26 (UNFCCC के दलों का सम्मेलन) भी कहा जाता है, वहां विश्व नेताओं ने 'नेट ज़ीरो'(Net Zero) और 'ग्लोबल नेट ज़ीरो'(Global Net Zero) के प्रति अपनी वचनबद्धता और प्रतिबद्धता के बारे में बात की. जलवायु आंदोलन के कार्यकर्ताओं की तरफ से, 2030 या 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट ज़ीरो करने की मांग की जा रही है. लेकिन, चीन और भारत जैसे कई विकासशील देशों ने देश के वादों को आगे बढ़ाते हुए, इस लक्ष्य को 2060 और 2070 तक पहुंचा दिया है.
क्या है नेट ज़ीरो?
नेट ज़ीरो इमिशन या शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का मतलब है ग्रीनहाउस गैस की उत्पादित और वातावरण से बाहर की गई मात्रा के बीच संतुलन बनाना. हम नेट ज़ीरो पर तब पहुंचेंगे जब ग्रीनहाउस गैस की उत्पादित मात्रा, बाहर की गई मात्रा से ज़्यादा न हो.
आज हर देश की जिम्मेदारी है कि वह वातावरण से सभी मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करे, ताकि पृथ्वी का कुल जलवायु संतुलन शून्य हो जाए. और इसे हटाना तभी संभव हो सकता है जब कार्बन न्यूट्रल बनने और वैश्विक तापमान को स्थिर करने के लिए, प्राकृतिक और कृत्रिम कार्बन सिंक बनाए जाएं. कुल मिलाकर ये कह सकते हैं कि आप जितना कार्बन पैदा कर रहे हैं, उतना ही उसे एब्जॉर्ब करने का इंतजाम आपके पास होना चाहिए. उदाहरण के तौर पर पेड़-पौधे, जो हवा से कार्बन डाईऑक्साइड एब्जॉर्ब करते हैं.
क्या है निगेटिव इमिशन?
MyClimate.org के अनुसार, "शुद्ध शून्य उत्सर्जन" तक पहुंचने और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए, वातावरण से CO₂ को हटाना और स्थायी रूप से स्टोर करना ज़रूरी है. इसे कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल (CDR) कहा जाता है. चूंकि यह उत्सर्जन के विपरीत है, इसलिए इन प्रक्रियाओं या टेक्नोटॉजी को अक्सर "नकारात्मक उत्सर्जन"(negative emissions) या "सिंक" कहा जाता है. शुद्ध शून्य उत्सर्जन और सीडीआर के बीच एक सीधा समीकरण है- जितना जल्दी शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल किया जाएगा, उतने ही कम सीडीआर की ज़रूरत होगी. इसलिए, 21वीं सदी में अपेक्षित सीडीआर की अनुमानित राशि 100 से 1'000 Gt CO₂ के बीच है.
CDR को तीन मुख्य भागों में बांटा जा सकता है: जैविक, तकनीकी और भू-रासायनिक प्रक्रियाएं. जैविक सीडीआर प्राकृतिक सिंक को बढ़ाता है.
विकसित बनाम विकासशील राष्ट्र
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है, पहले नंबर पर चीन है, फिर अमेरिका. यूरोपीय संघ को एक साथ लेने पर भारत की गिनती चौथे नंबर पर होती है. वर्तमान मानक के अनुसार, चीन सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है, इसके बाद है अमेरिका सबसे ज़्यादा कार्बन उत्सर्जित करता है. यह डेटा ऐतिहासिक रूप से इस बात का विश्लेषण नहीं करता है कि किस देश ने कितना कार्बन उत्सर्जित किया और हर देश की ज़िम्मेदारी क्या है. विकसित राष्ट्र, जो निर्माण और उद्योगों में आगे थे वे विकासशील राष्ट्रों की तुलना में, वैश्विक प्रदूषण फैलाने के ज़्यादा ज़िम्मेदार थे. इसीलिए ‘ग्लोबल नेट ज़ीरो’ का कॉन्सेप्ट सामने आया.
क्या है ‘ग्लोबल नेट ज़ीरो’?
'ग्लोबल नेट जीरो' का कॉन्सेप्ट इसी साल पेश किया गया था. भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच सितंबर में वाशिंगटन डीसी में आयोजित क्वाड बैठक में भारत ने इस अवधारणा का नेतृत्व किया था. इस अवधारणा के तहत, अतीत में बहुत कुछ अर्जित कर चुके विकसित राष्ट्रों को, 'विकासशील' देशों की तुलना में,उत्सर्जन कम करने की दिशा में ज़्यादा ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए, ताकि बाद के राष्ट्रों का भी विकास हो सके.
उदाहरण के लिए, अगर 2030 या 2050 तक, हर देश को कुल 10 वैश्विक कार्बन उत्सर्जन की अनुमति है, लेकिन भारत, चीन जैसे विकासशील देशों को 'विकसित' स्थिति तक पहुंचने के लिए 12 और 13 का उत्सर्जन जारी रखना होगा, ताकि जो देश फायदे में थे, वे बाकी 5 की जिम्मेदारी उठाएं उसे आपस में बांटें और उनके कार्बन उत्सर्जन को कम करें.
अभी के लिए, 'नेट ज़ीरो' पर कोई सहमति नहीं है. 'ग्लोबल नेट ज़ीरो' का लक्ष्य पाना और विकसित देशों को इसके लिए राज़ी करना भी आसान नहीं है.