महाराष्ट्र के पुणे के येरवड़ा क्षेत्र में स्थित कॉमर्स ज़ोन में एक आईटी कंपनी द्वारा कैंसर पीड़ित कर्मचारी को नौकरी से निकाल देने का मामला सामने आते ही आईटी उद्योग में कर्मचारी सुरक्षा और नैतिक जिम्मेदारियों पर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है. SLB नामक मल्टीनेश्नल आईटी कंपनी में पिछले आठ वर्षों से फैसिलिटी मैनेजर के रूप में कार्यरत संतोष पाटोले ने आरोप लगाया है कि कंपनी ने उन्हें उस समय टर्मिनेट कर दिया, जब वे कैंसर का इलाज करवा रहे थे.
21 वर्ष के पेशेवर अनुभव वाले पाटोले ने बताया कि इस वर्ष अप्रैल में कंपनी द्वारा आयोजित एनुअल हेल्थ चेकअप में उन्हें थायरॉयड नोड्यूल इस्थमस कैंसर की पुष्टि हुई. रिपोर्ट आने के तुरंत बाद उन्होंने मई और जून माह में ऑपरेशन और उपचार के लिए मेडिकल लीव ली. जून तक उनका इलाज कंपनी की ओर से वहन किया जा रहा था. डॉक्टरों ने 1 जुलाई को उन्हें प्रमाणपत्र देकर काम पर लौटने की अनुमति भी दे दी थी.
पाटोले के अनुसार, जब वे जुलाई में नौकरी पर लौटने की तैयारी कर रहे थे, तभी 23 जुलाई को कंपनी ने उन्हें अचानक टर्मिनेशन का पत्र थमा दिया. इससे न केवल उनका रोजगार चला गया, बल्कि आगे के महंगे इलाज की जिम्मेदारी भी सीधे उन पर आ गई. पाटोले का आरोप है कि कंपनी ने टर्मिनेशन का कारण यह बताया कि एक प्रोजेक्ट में उनके एक फैसले से कंपनी को ढाई से तीन करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता था. यह आरोप पूरी तरह गलत और असत्य है, क्योंकि जिस प्रोजेक्ट पर बात हो रही थी, उसका कार्यान्वयन अभी हुआ ही नहीं था.
उन्होंने बताया कि कंपनी ने उनके किसी भी तर्क को सुनने से इनकार कर दिया और बीमारी के बीच ही उन्हें नौकरी से निकाल दिया. इसके बाद से उनका इलाज आर्थिक रूप से कठिन होता जा रहा है. पाटोले ने कहा कि अस्पताल में चल रहा उपचार कंपनी द्वारा वहन करना बंद कर दिया गया, जिससे उनपर मानसिक और आर्थिक दबाव दोनों बढ़ गया है.
मीडिया द्वारा प्रतिक्रिया लेने की कोशिश के बावजूद SLB कंपनी प्रबंधन की ओर से किसी प्रकार की टिप्पणी नहीं की गई. कंपनी पर लगाए गए आरोपों और कर्मचारी के अधिकारों से जुड़े इस गंभीर मामले पर श्रम विभाग और मानवाधिकार संगठनों के ध्यान देने की मांग भी उठ रही है.
Input: आदित्य दीपक भंवर