मुंबई में गुरुवार को कुछ घंटे तक तनावपूर्ण माहौल रहा जब 17 बच्चों और 2 बड़ों को एक शख्स ने बंधक बना लिया. फिर पुलिस ने करीब तीन घंटे चली इस पूरी ड्रामेटिक स्थिति को बखूबी संभालते हुए सभी लोगों को सुरक्षित बचा लिया. आरोपी को पुलिस की कार्रवाई के दौरान गोली लगी जिससे उसकी मौत हो गई.
क्या हुआ था पवई में
घटना दोपहर करीब 1:30 बजे की है. पवई पुलिस स्टेशन को सूचना मिली कि एक व्यक्ति ने महावीर क्लासिक बिल्डिंग में स्थित आरए स्टूडियो के अंदर 17 बच्चों को बंधक बना लिया है.ये सभी बच्चे 10 से 12 साल की उम्र के थे और एक वेब सीरीज के ऑडिशन के लिए स्टूडियो आए थे जो पिछले दो दिनों से चल रहा था. पुलिस अधिकारियों के होश उड़ गए.कुछ ही देर में बंधक करने वाले का नाम रोहित आर्य (50 वर्ष) सामने आया. पुलिस अधिकारियों के मुताबिक हाल के वर्षों में ये पहला मौका है जब इतनी बड़ी संख्या में बच्चों को एक साथ बंधक बनाया गया.
मुंबई पहले भी झेल चुकी है 'बंधक' जैसी घटनाएं
मुंबई ऐसी घटनाओं से बिल्कुल अनजान नहीं है. पिछले एक दशक में शहर कई बार ऐसी बंधक स्थितियों से गुजर चुका है जिनमें पुलिस की सूझबूझ की असली परीक्षा हुई. पहली घटना साल 2010 की है. जब एक रिटायर्ड अधिकारी ने 14 साल की लड़की की जान ले ली थी.
लड़की को बनाया था बंधक
घटना के अनुसार मार्च 2010 में हर्ष मरोलिया नाम के एक रिटायर्ड कस्टम अधिकारी ने अंधेरी (वेस्ट) में एक 14 साल की लड़की हिमानी को अपने फ्लैट में बंधक बना लिया था. बताया गया कि मरोलिया का अपने हाउसिंग सोसायटी के कुछ लोगों से झगड़ा हुआ था. गुस्से में उसने पहले हवा में फायरिंग की और फिर लड़की को अपने घर में कैद कर लिया. ये घटना दुखद तरीके से खत्म हुई. पुलिस के रेस्क्यू से पहले मरोलिया ने लड़की की हत्या कर दी और बाद में पुलिस की गोली से वो भी मारा गया.
जब बिहार के लड़के ने पूरी बस को बनाया बंधक
नवंबर 2008 में बिहार के 25 साल के राहुल राज नाम के युवक ने अंधेरी से चल रही एक डबल-डेकर बस को रोककर यात्रियों को बंधक बना लिया था. जब बस कुर्ला के बैल बाजार पहुंची तो लगभग 100 पुलिसकर्मियों ने बस को घेर लिया.राहुल ने पुलिस को आत्मसमर्पण करने के बजाय एक नोट फेंका जिस पर लिखा था कि वह महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे को मारने आया है क्योंकि उनकी पार्टी ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ अभियान चलाया था. आखिर में पुलिस की गोली से राहुल की मौत हो गई और मामला खत्म हुआ.
बंधक स्थिति में सबसे जरूरी है जान बचाना
नागपुर की एसीपी शैलनी शर्मा ने एक न्यूज एजेंसी से बातचीत में कहा कि बंधक जैसी स्थिति में सबसे अहम बात होती है कि किसी की जान न जाए और नुकसान कम से कम हो. हर बातचीत इन्हीं दो लक्ष्यों को ध्यान में रखकर की जाती है.
शैलनी शर्मा मुंबई पुलिस की पहली महिला अधिकारी हैं जिन्हें 26/11 आतंकी हमलों के बाद लंदन में बंधक प्रबंधन की ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था. साल 2022 में उन्हें एनएसजी (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड) कमांडो को ट्रेनिंग देने के लिए भी बुलाया गया था ताकि वे ऐसे हालात को बेहतर तरीके से संभाल सकें. उन्होंने बताया कि जब बातचीत से कोई नतीजा नहीं निकलता तो ऑपरेशन टीम हालात देखकर कार्रवाई का फैसला लेती है.
कई बार लोगों की जान बचाई
2010 के अंधेरी वाले केस में भी शैलनी शर्मा को मरोलिया से बातचीत के लिए बुलाया गया था लेकिन तब तक पुलिस टीम ने अंदर घुसकर कार्रवाई कर दी थी. साल 2013 और 2017 में उन्होंने दो ऐसी महिलाओं की जान बचाई जो खुदकुशी करने वाली थीं. उन्होंने उनसे बात कर उन्हें ऐसा कदम उठाने से रोका. CAA और NRC विरोध प्रदर्शनों के दौरान जब वे नागपाड़ा थाने की सीनियर इंस्पेक्टर थीं, तब उन्होंने भीड़ को बातचीत से शांत किया था.