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घरों-दुकानों के बाहर हर सुबह बनी मिलती है रंगीन आर्ट... महाराष्ट्र के इस शहर में क्या है इस सिलसिले का राज

महाराष्ट्र के कराड शहर में हर सुबह घरों और दुकानों के बाहर एक अनोखी रंगीन दुनिया देखने को मिलती है. गलियों से लेकर व्यस्त दुकानों तक एक रंगोली बनी मिलती है, जो शहरवासियों के चेहरे पर मुस्कान ले आती है. यह रोजाना की कला शहर को सजाती है. दिलों में खुशियों के रंग भर देती है. लेकिन क्या है इस सिलसिले के पीछे का राज, और कैसे एक व्यक्ति अपने जुनून से पूरे शहर को रोज नई ऊर्जा से भर देता है?

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घरों-दुकानों के बाहर बनी मिलती है खूबसूरत चित्रकारी. (Photo: ITG)
घरों-दुकानों के बाहर बनी मिलती है खूबसूरत चित्रकारी. (Photo: ITG)

जिंदगी के जीवट और मुस्कराहट बांटने की ये कहानी महाराष्ट्र के कराड शहर की है. यहां गली-मोहल्लों में रंग भरने वाले शरद काटवटे को शहरवाले प्यार से शरद काका कहते हैं. उनकी उम्र 80 साल है. इस उम्र में वे अपनी कला से शहरवासियों के दिलों को छू रहे हैं. उनका दिन सुबह के छह बजे शुरू होता है और पहली मंजिल होती है जैन मंदिर का दरवाजा, जहां से रंगोली बनाने की शुरुआत होती है.

शरद काका हर दिन रंगोली का डब्बा हाथ में लेकर गली-गली घूमते हैं. घर, दुकानें उनकी रंगोली का हिस्सा बनती हैं. कभी मोर, कभी पोपट, कभी फूलों की कुंडी वाली उनकी रंगोली शहरवासियों के चेहरे पर मुस्कान ले आती है. जो लोग उन्हें रंगोली बनाते देखते हैं, वे अक्सर कह उठते हैं, वाह! कितनी सुंदर! और उस खुशी में शरद काका खुद भी संतुष्टि महसूस करते हैं, यही उनकी असली कमाई है.

घरों-दुकानों के बाहर हर सुबह बनी मिलती है रंगीन आर्ट... महाराष्ट्र के इस शहर में क्या है इस सिलसिले का राज

शरद काका को बचपन से ही चित्रकला में रुचि थी. पहले वे पाटी-पेंसिल लेकर चित्र बनाते थे, लेकिन उम्र के साथ हाथों में थरथराहट होने लगी. तब उन्होंने ठान लिया कि कला को रोकना नहीं है. उन्होंने सोचा कि चित्रकला अब हर घर की दहलीज पर लाऊंगा. रंगोली बनाऊंगा.

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धीरे-धीरे उनकी मेहनत और निष्ठा की पहचान होने लगी. लोग कहते हैं कि हमारे घर के सामने रंगोली बना दीजिए तो दुकानदार भी बोलने लगते हैं कि हमारी दुकान के सामने भी बना दीजिए. आज कराड शहर के लगभग 25 घरों और दुकानों के सामने शरद काका रोज रंगोली बनाते हैं. पैसे? शरद काका कभी पैसे नहीं लेते. जो लोग उनकी कला पसंद करते हैं, वे प्यार से उन्हें फल, चाय या थोड़े-बहुत पैसे देते हैं. उनका मकसद केवल कला को जीवित रखना और शहर में रंग भरना है.

घरों-दुकानों के बाहर हर सुबह बनी मिलती है रंगीन आर्ट... महाराष्ट्र के इस शहर में क्या है इस सिलसिले का राज

उनकी पत्नी उनके साथ हैं, और दोनों का छोटा सा संसार है. उनकी दो बेटियां हैं, जो शादी के बाद अपने-अपने घरों में रहती हैं. परिवार का खर्च उनकी पत्नी रोज गली-गली मटकी बेचकर पूरा करती हैं, जबकि शरद काका रंगोली बनाकर दिन की शुरुआत करते हैं. साल का कोई भी उत्सव, गणेशोत्सव, दिवाली या नवरात्र हो, शरद काका की रंगोली से कराड का सौंदर्य बढ़ जाता है. कमल का फूल हो या मोर, घोड़ा या पोपट, उनकी हर रंगोली जीवंत लगती है.

घरों-दुकानों के बाहर हर सुबह बनी मिलती है रंगीन आर्ट... महाराष्ट्र के इस शहर में क्या है इस सिलसिले का राज

कराड के लोग शरद काका की रंगोली देखकर खुश होते हैं. जीनल ओसवाल कहती हैं कि हमारा दर रोज रंगों से उज्जवल होता है. हमारे परिसर में 80 वर्ष के शरद काका आज भी सुंदर रंगोली बनाते हैं. वहीं नितीन ओसवाल कहते हैं कि जब मैं घर के बाहर आता हूं तो हर दुकान और घर में शरद काका की रंगोली दिखाई देती है. यही उनकी असली कला है. प्रदीप दलवी कहते हैं कि शरद काका हर त्योहार पर नई और आकर्षक रंगोली डिजाइन करते हैं. उनकी मेहनत और कला प्रेरणा देने वाली है.

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घरों-दुकानों के बाहर हर सुबह बनी मिलती है रंगीन आर्ट... महाराष्ट्र के इस शहर में क्या है इस सिलसिले का राज

80 साल की उम्र होने के बावजूद उनका उत्साह किसी युवा से कम नहीं दिखता. शरद काका की रंगोली सिर्फ आर्ट नहीं है, बल्कि यह मैसेज भी है कि उम्र कोई भी हो, प्यार से की जाने वाली कला हमेशा जीवित रहती है. कराड के लोग कहते हैं कि उनकी वजह से हमारे घरों और गलियों में हर दिन रंग छाया रहता है. उनकी कला प्रेरणा देती है कि जीवन में उत्साह और मेहनत कभी कम न हो. कला उम्र की मोहताज नहीं होती. यह निरंतर प्रयास, लगन और दिल से की गई मेहनत का प्रतीक है. और कराड शहर में 80 साल की उम्र में शरद काका ने यह साबित कर दिखाया है.

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रिपोर्ट: सकलेन मुलाणी
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