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Mumbai: अनीस इब्राहिम से कनेक्शन साबित करने में नाकाम क्राइम ब्रांच, 2018 रंगदारी केस में 5 आरोपी बरी

मुंबई की विशेष MCOCA अदालत ने 2018 के रंगदारी मामले में अनीस इब्राहिम के कथित गुर्गों समेत पांच आरोपियों को बरी कर दिया. अदालत ने कहा कि क्राइम ब्रांच आरोप साबित करने में नाकाम रही. सबूतों में तकनीकी खामियां, गवाहियों में विरोधाभास और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की कानूनी कमी के कारण आरोपियों को संदेह का लाभ मिला. सभी को सभी धाराओं से मुक्त कर दिया गया.

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(Representative photo)
(Representative photo)

मुंबई की विशेष मकोका (MCOCA) अदालत ने साल 2018 के एक चर्चित रंगदारी और साजिश के मामले में पांच आरोपियों को बरी कर दिया. इनमें अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के छोटे भाई अनीस इब्राहिम के कथित सहयोगी भी शामिल थे. अदालत ने सबूतों के अभाव और जांच में खामियों का हवाला देते हुए आरोपियों को सभी धाराओं से बरी किया.

मामले में आरोपी रहे रामदास परशुराम रहाणे उर्फ हेमंत उर्फ समीर जगताप, हरीश शामलाल ग्यानचंदानी, दानिश अली जमालुद्दीन अहमद (सरकारी गवाह/अप्रूवर), अजीज अब्दुल उन्नी मोहम्मद उर्फ अज्जू रोलेक्स और मोहम्मद अल्ताफ अब्दुल लतीफ सैयद को 2018 में मालाड के एक होटल मालिक की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया था.

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शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि अनीस इब्राहिम और उसके सहयोगियों ने उससे ₹50 लाख की रंगदारी मांगी और जान से मारने की धमकी दी. कहा गया कि ये धमकियां वॉइस नोट्स और व्हाट्सऐप मैसेज के जरिए भेजी गईं. होटल मालिक ने यह भी दावा किया कि 2000 के दशक की शुरुआत में भी उसे इसी तरह धमकाया गया था, जब उसके दुबई होटल बिजनेस में अली मसकत ने निवेश किया था.

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अभियोजन पक्ष के विशेष लोक अभियोजक जयसिंग देसाई ने अदालत में कहा कि आरोपी अनीस इब्राहिम के गैंग के लिए काम करते थे और डर पैदा करने के लिए अलग-अलग नामों का इस्तेमाल करते थे. उन्होंने मोबाइल रिकॉर्ड, बैंक स्टेटमेंट, व्हाट्सऐप चैट, सरकारी गवाह के बयान और एक आरोपी से हथियार बरामद होने को सबूत के रूप में पेश किया.

वहीं, बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि सबूत महज परिस्थितिजन्य हैं, कबूलनामे अविश्वसनीय या वापस ले लिए गए हैं और आरोपियों का रंगदारी कॉल्स से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है. 

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वहीं, विशेष न्यायाधीश महेश के. जाधव ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा कि आरोपी अनीस इब्राहिम के अपराध सिंडिकेट के सक्रिय सदस्य थे. सरकारी गवाह का बयान अन्य गवाहों के सबूतों से मेल नहीं खाता, इलेक्ट्रॉनिक सबूत प्रमाणित नहीं हैं और हथियार बरामदगी भी सिद्ध नहीं हुई. साथ ही, दो आरोपियों के कबूलनामे एक-दूसरे के खिलाफ हैं, जिससे उनका भरोसेमंद होना संदिग्ध हो जाता है. अदालत ने माना कि जांच में गंभीर खामियां और प्रक्रियात्मक चूक हुईं, जिसके चलते सभी आरोपी बरी कर दिए गए.

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