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'मुझे जहाजों से नफरत है...', आज भी सो नहीं पाती अहमदाबाद विमान हादसे में मरे 16 साल के आकाश की मां   

अहमदाबाद विमान हादसे को छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन 16 वर्षीय आकाश पटानी के परिवार के लिए समय मानो थम गया है. चाय की दुकान पर मां को खाना देने गया आकाश विमान क्रैश में जिंदा जल गया. बेटे की मौत के बाद परिवार सदमे में है और अब अहमदाबाद छोड़ने की तैयारी कर रहा है.

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आज भी सो नहीं पाती अहमदाबाद हादसे मारे गए आकाश की मां(Photo: India today)
आज भी सो नहीं पाती अहमदाबाद हादसे मारे गए आकाश की मां(Photo: India today)

12 जून को हुए अहमदाबाद विमान हादसे ने सैकड़ों परिवारों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी. इस दर्दनाक त्रासदी में जान गंवाने वालों में 16 वर्षीय आकाश पटानी भी शामिल था, जिसकी मौत ने उसके परिवार को पूरी तरह तोड़ दिया. हादसे के छह महीने बाद भी आकाश के घर में सन्नाटा पसरा है और उसके माता-पिता के लिए जिंदगी आगे बढ़ने का नाम नहीं ले रही.

आकाश अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था और तीन बहनों में सबसे छोटा. हादसे वाले दिन वह रोज की तरह अपनी मां सीताबेन को दोपहर का खाना देने के लिए अहमदाबाद के मेघाणीनगर इलाके में बीजे मेडिकल कॉलेज हॉस्टल के पास स्थित परिवार की चाय की दुकान पर गया था. खाना देने के बाद वह दुकान में ही लेटकर सो गया. उसी दौरान सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरने के कुछ ही पलों बाद एयर इंडिया की फ्लाइट एआई-171 क्रैश हो गई.

लंदन जा रही इस उड़ान के हादसे में कुल 260 लोगों की मौत हुई थी. इनमें विमान में सवार 241 यात्री और क्रैश स्थल पर मौजूद 19 लोग शामिल थे. आकाश उन लोगों में था, जो जमीन पर मौजूद थे और आग की चपेट में आ गए. हादसे के वक्त आकाश की मां भी दुकान में मौजूद थीं और गंभीर रूप से झुलस गई थीं.

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आकाश के पिता सुरेशभाई पटानी ने बताया कि हादसे के बाद से उनका परिवार सामान्य जीवन में लौट ही नहीं पाया है. उन्होंने कहा, “हादसे को सिर्फ छह महीने हुए हैं, लेकिन हमें ऐसा लगता है जैसे छह साल बीत गए हों.” बेटे की मौत के बाद सुरेशभाई ने चाय की दुकान चलाना भी बंद कर दिया है.

आकाश की मां सीताबेन आज भी उस दिन की यादों से बाहर नहीं आ पाई हैं. उनके शरीर पर जलने के निशान अब भी साफ दिखाई देते हैं. उन्होंने भर्राई आवाज में कहा, “मैंने अपने बच्चे को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह नहीं बच सका.” बेटे की यादों के कारण वह अब घर के अंदर सो भी नहीं पातीं और अधिकतर रातें घर के बाहर एक चारपाई पर बिताती हैं.

परिवार लक्ष्मीनगर बस्ती, घोड़ा कैंप इलाके में रहता है, जो हवाई अड्डे से करीब पांच किलोमीटर दूर है. ऊपर से गुजरते विमानों को देखकर सीताबेन नजरें फेर लेती हैं. उन्होंने कहा, “अब मुझे जहाजों से नफरत हो गई है.”

सुरेशभाई ने बताया कि एयर इंडिया और टाटा समूह की ओर से मुआवजे की राशि मिल चुकी है, लेकिन वह इस नुकसान की भरपाई नहीं कर सकती. परिवार अब अहमदाबाद छोड़कर पाटन शिफ्ट होने की तैयारी कर रहा है, ताकि इस शहर और हवाई अड्डे की यादों से दूर रह सके.
 

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