नीतीश सरकार ने पूर्व विधायक आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में सही ठहराया है. राज्य सरकार ने एक हलफनामा दाखिल किया है, जिसमें कहा है कि आम जनता या लोक सेवक की हत्या की सजा एक समान है. उम्रकैद की सजा काट रहे दोषी को सिर्फ इसलिए छूट से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि मारा गया पीड़ित एक लोक सेवक था. बिहार सरकार ने कारा अधिनियम में बदलाव करके आनंद मोहन समेत 26 कैदियों को रिहा किया था.
बता दें कि बिहार के गोपालगंज के जिलाधिकारी रहे जी कृष्णैया की 1994 में हत्या कर दी गई थी. जी कृष्णैया जब मुजफ्फरपुर जिले से गुजर रहे थे, तभी भीड़ ने हमला बोल दिया. पिटाई की गई और गोली भी मारी गई थी. आरोप था कि उस भीड़ को बाहुबली आनंद मोहन ने उकसाया था. पुलिस ने आनंद मोहन और उनकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को नामजद किया था. मामले में आनंद मोहन को पहले फांसी और फिर सजा बदलकर उम्रकैद हुई थी. हाल ही में बिहार सरकार ने कानून में संशोधन कर आनंद मोहन को रिहा कर दिया.
रिपोर्ट के आधार पर हुई रिहाई
यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो बिहार सरकार ने हलफनामा दायर किया है. राज्य सरकार के अनुसार, यह पाया गया कि एक लोक सेवक की हत्या के अपराध में कैदी आजीवन कारावास की सजा काट रहा था. उसकी समय पूर्व रिहाई पर विचार किया गया. प्रासंगिक रिपोर्ट अनुकूल होने के बाद आनंद मोहन को रिहा कर दिया गया. पुलिस और राज्य सरकार ने सजा माफी नीति के तहत उसे रिहा किया है.
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जेल में आनंद मोहन ने तीन किताबें लिखीं
नीतीश कुमार की सरकार ने कहा कि आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई के कारण भी विस्तार से बताए. हलफनामे में कहा, दोषी के आचरण, उसके व्यवहार, अपराध की प्रकृति, पृष्ठभूमि और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर विचार किया गया है. मोहन ने अपनी कैद के दौरान तीन किताबें भी लिखी हैं. जेल प्रशासन के सौंपे गए कार्यों में भी भाग लिया. सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई को बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई को लेकर बिहार सरकार से पूरा रिकॉर्ड मांगा था. आनंद मोहन की रिहाई संबंधी सिफारिश की पूरी फाइल तलब की थी.
जी कष्णैया की पत्नी ने SC में दाखिल की याचिका
बताते चलें कि जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी ने सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल की है और आनंद मोहन की रिहाई और कानून बदले जाने को चुनौती दी है. जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन को सजा हुई थी. आनंद मोहन सिंह को 2007 में फांसी की सजा सुनाई गई. 2008 में हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. अब उम्रकैद की सजा काट रहे आनंद मोहन को बिहार सरकार कारा अधिनियम में बदलाव करके जेल से रिहा कर दिया. तेलंगाना में जन्मे आईएएस कृष्णैया अनुसुचित जाति से थे.
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बिहार सरकार ने अधिनियम में किया संशोधन
बिहार सरकार ने कारा हस्तक 2012 के नियम 481 आई में संशोधन किया है. 14 साल की सजा काट चुके आनंद मोहन की तय नियमों की वजह से रिहाई संभव नहीं थी. इसलिए ड्यूटी करते सरकारी सेवक की हत्या अब अपवाद की श्रेणी से हटा दिया गया है. बीते 10 अप्रैल को ही बदलाव की अधिसूचना सरकार ने जारी कर दी थी.
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