सोशल मीडिया पर वायरल विरोध प्रदर्शन के एक वीडियो के जरिए दावा किया जा रहा है कि न्यूयॉर्क में जोहरान ममदानी के मेयर बनने के बाद वहां के मुस्लिमों का हौसला इतना बढ़ गया कि वे सड़क पर उतरकर अरबी को शहर की आधिकारिक भाषा बनाने की मांग कर रहे हैं.
वीडियो में हाथ में झंडे-पोस्टर लिए हुए कुछ लोगों को देखा जा सकता है. हाथ में माइक थामे हुए एक प्रदर्शनकारी भाषण दे रहा है कि “हमें अंग्रेजी की जरूरत नहीं. ये आप्रवासियों का शहर है, मिडिल ईस्ट के आप्रवासी. हम अरबी को न्यूयॉर्क की आधिकारिक भाषा बनाएंगे.”
वीडियो को एक्स पर शेयर करते हुए एक व्यक्ति ने लिखा, “जेहादी कट्टरपंथ की यही मानसिकता पूरे विश्व के लिए खतरा है. जहाँ इनकी जनसंख्या 10%के नीचे है वहाँ ये शांतिप्रिय हैं, जहाँ 10% से ऊपर हुए, वहाँ मजहब के नाम पर वर्चस्व की बात करते हैं, ये जिहादी सभ्य सभ्यता के लिए शर्मनाक धब्बा हैं. पर इन मजाहबियों को शर्म है ही कहाँ..?”.
हालांकि, आजतक फैक्ट चेक ने पाया कि ये वीडियो किसी असल घटना का नहीं है. इसे AI की मदद से बनाया गया है.
कैसे पता की सच्चाई?
हमें इस घटना से जुड़ी कोई भी पुख्ता न्यूज रिपोर्ट नहीं मिली. इसके अलावा हमें वीडियो में कई गड़बड़ियां भी नजर आईं जिससे ऐसा लगता है कि ये वीडियो AI से बनाया हुआ हो सकता है.
वीडियो को गौर से देखने पर पीछे की ओर दिख रहे फिलिस्तीन के झंडे में गड़बड़ नजर आती है. वीडियो में दिख रहा झंडा फिलिस्तीन के असली झंडे से अलग है और हूबहू मेल नहीं खाता है. इसके अलावा भाषण दे रहे शख्स की उंगलियों का आकार भी पूरे वीडियो में घटता-बढ़ता रहता है. पीछे खड़े लोगों के चेहरे और हाथ भी अटपटे से हैं.

इसके अलावा हमने पोस्टर पर लिखे टेक्स्ट को भी ट्रांसलेट करने की कोशिश की लेकिन गूगल टूल ने कई बार इसका अलग-अलग ट्रांसलेशन किया.
इसके बाद हमने वायरल वीडियो और इसके अलग-अलग फ्रेम्स को AI डिटेक्शन टूल्स की मदद से सर्च किया. ‘Hive Moderation’ और ‘Sightengine’ दोनों ही टूल्स ने वीडियो को 99 फीसदी AI से बना हुआ बताया.

साफ है कि जिस वीडियो को न्यूयॉर्क में मुस्लिम आप्रवासियों के प्रदर्शन का बताकर शेयर किया जा रहा है, उसे असल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से बनाया गया है.