
असम की फिल्मों ने राष्ट्रीय मंच पर कमाल दिखाया है. 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में असम की कहानियों ने खूब सराहना पाई. इस समारोह में असम के फिल्म निर्माताओं, समीक्षकों और कहानीकारों को शीर्ष सम्मान मिला. इनमें सबसे ज्यादा चर्चा फिल्म 'रंगतापु 1982' की रही. इसे सर्वश्रेष्ठ असमिया फीचर फिल्म का पुरस्कार दिया गया है.
फिल्म 'रंगतापु 1982' को मिला अवॉर्ड
ये फिल्म BRC सिने प्रोडक्शन द्वारा बनाई गई है. इसे आदित्यम सैकिया ने निर्देशित किया है. फिल्म 1980 के दशक के असम समाज की भावनाओं और जीवन की गहराई को दर्शाती है. फिल्म 'रंगतापु 1982' के लिए राष्ट्रपति ने प्रोड्यूसर अरुण कुमार राय को पुरस्कार से सम्मानित किया. इस जीत ने असम के सिनेमा को राष्ट्रीय पहचान दिलाई है.
कौन हैं अरुण राय?
अरुण राय के परिवार ने साल 1960 में असम के चाय बागानों से अपने व्यापारिक सफर की शुरुआत की थी. धीरे-धीरे मेहनत और दूरदर्शिता के बल पर उनका बिजनेस अलग-अलग क्षेत्रों तक फैल गया. आज BRC ग्रुप होटल बिजनेस, कंस्ट्रक्शन, आयात-निर्यात और फिल्म निर्माण जैसे कई क्षेत्रों में सक्रिय है. इस समूह की प्रगति में उनके भाई अजय कुमार राय की महत्वपूर्ण भूमिका है, जो वर्तमान में बीआरसी ग्रुप के निदेशक के पद पर कार्यरत हैं. BRC प्रोडक्शन के बैनर तले बनी इस फिल्म ने असमिया सिनेमा को राष्ट्रीय पटल पर नई पहचान दिलाई है. इस उपलब्धि से प्रेरित होकर बीआरसी प्रोडक्शन आने वाले समय में और भी फिल्में बनाने की योजना पर काम कर रहा है.

'रंगतापु 1982' की क्या है कहानी?
फिल्म 'रंगतापु 1982' असम के 80 के दशक की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जब मूल निवासियों और अवैध प्रवासियों के बीच तनाव चरम पर था. निर्देशक आदित्यम सैकिया का कहना है कि ये फिल्म राजनीतिक नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को सामने लाने की कोशिश है.
कहानी का फोकस चार महिलाओं पर है. मोरम (ऐमी बरुआह) एक गर्भवती महिला है, जिसकी बहनें रुपाली (कल्पना कलिता) और माला (अलिश्मिता कलिता) सामूहिक दुष्कर्म की भयावह पीड़ा झेलती हैं. वहीं रफिजा (रिम्पी दास), जो खुद एक अवैध प्रवासी है, अपने ही समुदाय के पुरुषों द्वारा शोषित होती है.
इन चारों की पीड़ा, संघर्ष और मानवीय त्रासदी को फिल्म दिखाती है. ये केवल अतीत की कहानी नहीं, बल्कि आज भी प्रासंगिक सवाल उठाती है कि समाज में महिलाओं की असली सुरक्षा और सम्मान कब सुनिश्चित होगा.