संसद का शीतकालीन सत्र जारी है. सोमवार से शुरू हो रहा इस सत्र के दूसरे हफ्ते का पहला दिन काफी हंगामेदार रहने वाला है. वजह है, भारत का राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम्! असल में लोकसभा में पीएम मोदी इस गीत के 150 वर्ष पूरे होने के मौके पर खास चर्चा की शुरुआत करने वाले हैं. इस विषय पर चलने वाली डिबेट 10 घंटे चलेगी और पीएम मोदी लोकसभा में इसके महत्व, सम्मान और आजादी की लड़ाई में इस गीत की महती भूमिका पर प्रकाश डालेंगे.
...लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के इस राष्ट्रीय गीत का इतिहास क्या है और इसकी रचना की वजह क्या थी साथ ही इसे कैसे व क्यों रचा गया था?
इसका जवाब है, वह ब्रिटिश फरमान, जिसमें सरकारी समारोहों में ‘गॉड! सेव द क्वीन’ गीत को अनिवार्य कर दिया गया था.
क्या है फरमान की कहानी...
साल 1870 के दशक में ब्रिटिश हकूमत ने एक तुगलकी फरमान जारी किया. उन्होंने सरकारी समारोहों में ‘गॉड! सेव द क्वीन’ गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था. उस वक्त ब्रिटिश प्रशासनिक सेवा में कई भारतीय अधिकारी भी थे. फरमान बंगाल की जमीन से ही आया था, इसलिए वहां इसे लेकर काफी सख्ती थी. यह बात सबसे अधिक नागवार गुजरी एक डिप्टी कलक्टर को, जो भारतीय था.
अंग्रेजी आदेश के खिलाफ में निकला वंदे मातरम्
अंग्रेजों के इसी आदेश और अनिवार्यता क्षुब्ध वह कलेक्टर उस रोज दफ्तर से निकल आया. सियालदह से ट्रेन ली और नैहाटी पहुंचने तक का सफर इन्ही विचारों से भरा रहा. रेलयात्रा के दौरान उमड़-घुमड़कर आते तमाम विचार शब्द बन गए और कागज-कलम का साथ पाते ही गीत के रूप में उभर आए. इस यात्रा में जो लिखा गया, वह सिर्फ एक गीत नहीं था. वह स्तुति थी, आरती थी, वंदना थी और राष्ट्र का संगठित भावना का मंत्र था. यह गीत वंदे मातरम् था, जो जन्मभूमि को प्रणाम करने और उसके प्रति आभार जताने का जरिया बना और आगे चलकर क्रांति की मशाल बन गया.
वंदे मातरम्, जिसके कुछ हिस्से भुला दिए गए
वह डिप्टी कलक्टर कोई और नहीं, वह थे महान लेखक, विचारक और पत्रकार बंकिम चंद्र चटर्जी. जिनका लिखा वंदे मातरम् गीत ब्रिटिशर्स के 'गॉड सेव द क्वीन का सुरमयी विरोध बना, जिसे अंग्रेजों ने डर के मारे बैन किया और आजाद भारत ने राष्ट्रगीत के तौर पर अपनाया, लेकिन.. विडंबना देखिए विवादों और आपत्तियों से यह गीत भी बच नहीं पाया. समय के साथ इसके दो भाग हो गए. एक जिसे राष्ट्रगीत का दर्जा मिला और दूसरा जो समय की परत के नीचे गुम होता गया और भारत की अधिकांश बड़ी जनसंख्या के स्मृति पटल से भुला दिया गया.
आज आजाद भारत के तमाम नागरिक यह नहीं जानते कि राष्ट्रगीत वंदे मातरम् सिर्फ दो पैराग्राफ तक सीमित नहीं है. इसमें चार अन्य पैराग्राफ भी हैं, जिन्हें राष्ट्रीय समारोहों में नहीं गाया जाता. आखिर इस गीत के बनने के बाद इसके राष्ट्रगीत के तौर पर शामिल होने और फिर इसके कुछ हिस्सों को लेकर क्या और कब से विवाद रहा, इस पर एक नजर डालते हैं.
कैसे लिखा गया था गीत?
बंकिम चंद्र चटर्जी ने यह गीत कब और किस प्रेरणा से लिखा इसका जिक्र उन्होंने आनंद मठ उपन्यास के तीसरे संस्करण में किया था. जहां उन्होंने अपनी इस क्षुब्धता का जिक्र किया था, जो उन्हें अंग्रेजी फरमान 'गॉड सेव द क्वीन की अनिवार्यता से हुई थी. इसीके जवाब में उन्होंने विकल्प के तौर पर संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण से एक नये गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया - ‘वन्दे मातरम्’।
शुरुआत में इसके केवल दो ही पद रचे गये थे जो संस्कृत में थे. इन दोनों पदों में केवल मातृभूमि की वन्दना थी. इसे सबसे पहले उन्होंने अपने ही द्वारा निकाली जाने वाली पत्रिका बंग दर्शन में प्रकाशित किया था. बाद में जब 1882 में आनंद मठ उपन्यास की रचना उन्होंने की थी, तब मातृभूमि के प्रेम से ओतप्रोत इस गीत को भी उसमें शामिल किया था. यह उपन्यास अंग्रेजी शासन, जमींदारों के शोषण व प्राकृतिक प्रकोप (अकाल) में मर रही जनता को जागृत करने हेतु अचानक उठ खड़े हुए संन्यासी विद्रोह पर आधारित था. इस तथ्यात्मक इतिहास का उल्लेख बंकिम चंद्र चटर्जी ने बाद में कुछ अंग्रेजी पत्रिकाओं और पुस्तकों में भी किया था.
यानी यह गीत दो बार और दो बार में लिखा गया. उपन्यास में गीत को जब शामिल किया गया तब पहले दो पदों (पैराग्राफ) के बाद के पैरे उपन्यास की मूल भाषा बांग्ला में ही थे. बाद वाले इन सभी पदों में मातृभूमि की दुर्गा के रूप में स्तुति की गई है. यह गीत रविवार, कार्तिक सुदी नवमी, (अक्षय नवमी) शके 1797 (7 नवम्बर 1875) को लिखा गया था.
यहां देखिए गॉड! सेव द क्वीन की पंक्तियां
God save our gracious Queen,
Long live our noble Queen,
God save the Queen!
Send her victorious,
Happy and Glorious,
Long to reign over us;
God save the Queen!
इसी गीत के जवाब में कवि, लेखक और विचारक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाल की शाक्त परंपरा को ध्यान में रखते हुए वंदे मातरम् गीत की रचना की और गीत के उनवान चढ़ते हुए दुर्गा माता ही भारत माता बन जाती हैं. यही इस गीत की खासियत है, जहां यह बताया जाता है कि अगर भारत माता है तो ही इस देश की परंपराओं और संस्कृति का अस्तित्व है. इसीलिए मातृभूमि सबसे बड़ी है.