अपने वीर राजाओं को 'हिंदू राजन' क्यों कहता है इथियोपिया, 500 साल पुरानी है कहानी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को इथियोपिया की संसद को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए गर्व की बात है. यह मेरा सम्मान नहीं, देश का सम्मान है. इथियोपिया को शेरों की धरती कहा जाता है. यहां आकर मुझे बेहद खुशी हो रही है. मैं यहां बिल्कुल अपने घर जैसा महसूस कर रहा हूं, क्योंकि भारत में मेरा गृह राज्य गुजरात भी शेरों की धरती के रूप में जाना जाता है. पीएम मोदी ने भारत और इथियोपिया के बीच प्राचीन साझा संस्कृति की बात की. आइये इस समझते हैं...
इथियोपिया के सांस्कृतिक दस्तावेज के तौर पर देखा जाने वाला एक ग्रंथ है, 'केब्रा नागस्त'. यह इथियोपिया का मध्यकालीन धार्मिक-राजनीतिक महाकाव्य है, जिसने प्राचीन सोलोमोनिक राजवंश को वैधता दिलाई थी. इस साहित्यिक ग्रंथ का केंद्र यरुशलम, राजा सुलेमान, शेबा की रानी और मेनेलिक फर्स्ट हैं. साथ ही इस ग्रंथ में कहीं-कहीं भारत का भी उल्लेख मिलता है. ग्रंथ में बार-बार 'पूर्व' और 'सुदूर समृद्ध देशों' का उल्लेख मिलता है, जहां से मसाले, सुगंधित पदार्थ और बहुमूल्य वस्तुएं आती हैं. प्राचीन यहूदी-ईसाई और अरबी परंपराओं में भारत को ठीक इसी रूप में देखा जाता था. एक दूरस्थ, समृद्ध और रहस्यमय भूमि के रूप में. इसलिए केब्रा नागस्त में पूर्व की जिन भूमियों की चर्चा है, उनके सांस्कृतिक भूगोल में भारत स्वाभाविक रूप से शामिल है.
समुद्री व्यापार का भी प्राचीन इतिहास
इतिहास के स्तर पर अक्सुम साम्राज्य और भारत के बीच समुद्री व्यापार के भी तथ्य मिलते हैं. लाल सागर और हिंद महासागर के रास्ते भारत से मसाले और वस्त्र आते थे, जबकि अफ्रीका से सोना और हाथीदांत का व्यापार होता था. केब्रा नागस्त में 'दूर देशों से आने वाले व्यापारियों' और 'राजाओं के लिए लाए गए दुर्लभ उपहारों' का उल्लेख भी मिलता है. इसके अलावा पूर्व की भूमि का वर्णन इस तौर पर भी है, जहां गणित, ज्योतिष, औषधि और दर्शन का ज्ञान बिखरा पड़ा है. इस तरह इथियोपिया के साथ भारत की भूमि का परिचय एक बौद्धिक देश के तौर पर होता है.
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट में 'भारत और इथियोपिया के सांस्कृतिक संबंध' में बड़ी ही बारीकी से प्रकाश डाला गया है. इथियोपिया अपने सम्राटों को कभी-कभी 'हिंदू राजन' कहता था. रिपोर्ट के मुताबिक, '16वीं शताब्दी में, पुर्तगालियों ने इथियोपिया पर आक्रमण किया था तब भारत के कालीकट के शासक आदित्य वर्मा प्रथम ने इथियोपिया की मदद की और पुर्तगालियों को हराया. भारत के साहसी राजाओं के कारण इथियोपिया ने अपने वीर राजाओं को 'हिंदू राजन' की उपाधि से नवाजा और जिसका उनके लिए अर्थ होता था 'शेरों की धरती का लड़ाका'. यह उपाधि दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव और इसके महत्व को रेखांकित करती है.
कई विद्वानों के अनुसार भारत और इथियोपिया के बीच संबंध लगभग 2,000 वर्ष पहले से हैं. उस दौर में आधुनिक इथियोपिया के पूर्ववर्ती राज्य अक्सुम (Axum) के लोग लाल सागर पर स्थित अडुलिस बंदरगाह के जरिये भारत के साथ व्यापार करते थे. अक्सुमी व्यापारी भारत से मसाले और रेशम आयात करते थे, जबकि बदले में भारत को सोना और हाथीदांत जैसे मूल्यवान उत्पाद भेजे जाते थे.
आधुनिक काल में, 19वीं शताब्दी के बीतने के दौर में भारतीय शिक्षक और कारोबारी इथियोपिया में आकर बसने लगे. आज वहां भारतीय मूल के लगभग 6 से 8 हजार लोग निवास करते हैं. समय के साथ भारत-इथियोपिया संबंध केवल व्यापार तक सीमित न रहकर राजनीतिक, तकनीकी और सामाजिक-सांस्कृतिक सहयोग तक विस्तारित हो गए हैं.
औपनिवेशिक दौर और स्वतंत्रता का संघर्ष
भारत लगभग दो शताब्दियों तक ब्रिटिश शासन के अधीन रहा, जबकि इथियोपिया को 19वीं शताब्दी के अंत में इटली के उपनिवेशवादी प्रयासों का सामना करना पड़ा, जिन्हें उसने विफल कर दिया.
दोनों देशों के सहयोग का एक ऐतिहासिक पड़ाव 1955 में आयोजित 'बांडुंग सम्मेलन' रहा, जहां भारत और इथियोपिया ने एशियाई-अफ्रीकी देशों के साथ मिलकर 'गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM)' की नींव को मजबूत किया. इस सम्मेलन में एशिया और अफ्रीका के सभी लोगों के 'आत्मनिर्णय के अधिकार' का समर्थन किया गया. साथ ही आर्थिक सहयोग, तकनीकी सहायता, अंतरमहाद्वीपीय व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति बनी. एशिया और अफ्रीका के अधिकांश देशों के उपनिवेशवाद-विरोधी संघर्ष के इतिहास में भारत और इथियोपिया के नेताओं की भूमिका अहम रही है.
1950 में इथियोपिया ने भारत में अपना दूतावास खोला
भारत और इथियोपिया के बीच औपचारिक कूटनीतिक संबंधों की पहल 1948 में हुई और 1950 में इथियोपिया ने भारत में अपना दूतावास खोलकर इसे औपचारिक रूप दिया. इस तरह इथियोपिया नई दिल्ली में दूतावास खोलने वाला पहला अफ्रीकी देश बना. भारत की ओर से सरदार संत सिंह को इथियोपिया का पहला राजदूत नियुक्त किया गया. सम्राट 'हैले सेलासी' (1941-1974) के शासनकाल में दोनों देशों के संबंध बेहद घनिष्ठ रहे. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता बढ़ाने के लिए बड़ी संख्या में भारतीय शिक्षकों को इथियोपिया आमंत्रित किया. 1991 के बाद इथियोपिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था और आर्थिक उदारीकरण के साथ भारत-इथियोपिया संबंध और मजबूत हुए.
इस दौरान कई उच्चस्तरीय दौरे हुए. हैले सेलासी ने 1956, 1959 और 1968 में भारत की यात्रा की. 1983 में इथियोपिया के नेता मेंगिस्तु हैले मरियम भारत आए. भारत की ओर से राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1965 में इथियोपिया का दौरा किया. 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इथियोपिया पहुंचे. दोनों देश नियमित रूप से भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलनों में भाग लेते रहे हैं.
शीत युद्ध के बाद के दौर में दोनों देशों के बीच कई अहम समझौते हुए, जिनमें हवाई सेवा समझौता, व्यापार समझौता, सूक्ष्म बांध और सिंचाई सहयोग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग, विदेश कार्यालय परामर्श और दोहरा कराधान बचाव संधि शामिल हैं. 2018-19 में भारत से इथियोपिया को लगभग 713 मिलियन डॉलर का निर्यात हुआ, जबकि इथियोपिया से भारत को 53.6 मिलियन डॉलर का आयात हुआ.
शिक्षा और सांस्कृतिक सहयोग
2007 में दोनों देशों के बीच शैक्षिक आदान-प्रदान कार्यक्रम पर हस्ताक्षर हुए, जिससे छात्र और शिक्षाविद दोनों ओर आवाजाही कर रहे हैं. सांस्कृतिक स्तर पर भी दोनों देशों के नृत्य और कला समूहों ने एक-दूसरे के यहां प्रस्तुतियां दी हैं. 2013 में नई दिल्ली स्थित इथियोपियाई दूतावास ने सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की, जिसने आपसी सांस्कृतिक समझ को और गहरा किया है.