न्यूयॉर्क में हो रही संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में इस बार सबका ध्यान एक अलग ही घटना पर चला गया. फिलिस्तीन के समर्थन में बोलने वाले नेताओं का माइक अचानक बंद हो गया. एक नहीं, दो नहीं बल्कि चार नेताओं को इसका सामना करना पड़ा. इसी वजह से बैठक में मोसाद का नाम चर्चा में आ गया.
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जब गाजा में शांति सेना तैनात करने की बात कर रहे थे तो उनका माइक ऑफ हो गया. ठीक ऐसा ही तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन के साथ हुआ. जब उन्होंने हमास को आतंकी न मानने और फिलिस्तीन के समर्थन की बात की, तो अचानक आवाज गायब हो गई. ट्रांसलेटर को कहना पड़ा, "इनकी आवाज चली गई है."
यह भी पढ़ें: UNGA में एर्दोगन ने फिर उठाया कश्मीर का मुद्दा, गाजा को लेकर इजरायल पर भी हुए हमलावर
यही नहीं, कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने जब फिलिस्तीन और दो-राष्ट्र समाधान पर बात की तो शुरुआत में उनका भाषण सामान्य रहा लेकिन जैसे ही उन्होंने फिलिस्तीन को मान्यता देने की बात छेड़ी, उनका माइक ऑफ हो गया. कुछ मिनट तक हॉल में सन्नाटा छाया रहा.
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा के साथ भी यही घटना घटी. उन्होंने जैसे ही फिलिस्तीन का मुद्दा उठाया, माइक ऑफ हो गया.
यह भी पढ़ें: न्यूयॉर्क में UNGA की बैठकों के बीच सीक्रेट सर्विस का बड़ा एक्शन, टेलीकम्युनिकेशन से जुड़ा बड़ा खतरा किया बेअसर
अब सवाल ये है कि आखिर हर बार फिलिस्तीन के समर्थन पर ही माइक क्यों बंद हुआ? क्या ये केवल तकनीकी खराबी थी, जैसा कि यूएन ने कहा, या फिर इसके पीछे कोई खुफिया दखल था? कई देशों के नेता मानते हैं कि यह संयोग नहीं हो सकता. चूंकि इजरायल फिलिस्तीन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बढ़ते समर्थन को बर्दाश्त नहीं कर सकता, इसलिए शक की सुई उसकी खुफिया एजेंसी मोसाद पर टिक गई है.
फिलहाल, यूएन ने इसे महज तकनीकी समस्या करार दिया है लेकिन बार-बार एक ही पैटर्न दोहराए जाने से यह सवाल और गहरा हो गया है कि क्या वाकई यह सिर्फ "तकनीकी खराबी" थी?
aajtak.in