जो भारत पाकिस्तान से चाहता है वही PAK तालिबान से... फिर जंग के खौफ में क्यों विदेश दौड़ पड़े मुनीर-शहबाज-शमशाद

पाकिस्तान के बड़े सैन्य अधिकारियों और नेताओं की ये विदेश यात्राएं पड़ोसी मुल्क की बहु-स्तरीय कूटनीति और क्षेत्रीय समर्थन की खोज को दर्शाती हैं. ये यात्राएं ऐसे समय पर हो रही हैं जब अफगान-पाकिस्तान सीमा पर तनाव चरम पर है. सऊदी अरब के साथ पाकिस्तान ने सुरक्षा समझौता तो कर लिया है लेकिन अफगानिस्तान के साथ टकराव के दौरान तालिबान पर इसका कोई असर देखने को नहीं मिला और अफगान तालिबान ने बेखौफ सीमा पर गोले बरसाए. अब पाकिस्तान किसी भी बड़े संघर्ष या कूटनीतिक अलगाव से खुद को सुरक्षित रखना चाहता है.

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पाकिस्तान का सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व धुआंधार विदेश दौरे पर है. (Photo: ITG) पाकिस्तान का सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व धुआंधार विदेश दौरे पर है. (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 27 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 4:14 PM IST

पाकिस्तान का राजनीतिक नेतृत्व इन दिनों सऊदी अरब में है. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ इस समय वे रियाद में Future Investment Initiative (FII9) सम्मेलन में भाग ले रहे हैं और सऊदी नेतृत्व के साथ कई द्विपक्षीय बैठकें भी कर रहे हैं. सऊदी अरब से ही कुछ सौ मील दूर जॉर्डन है जहां पाकिस्तान के आर्मी चीफ फील्ड मार्शल आसिम मुनीर डेरा डाले हैं. और दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोस बांग्लादेश में पाकिस्तान मिलिट्री के नंबर-2  मिर्जा शमशाद बेग डिप्लोमेसी का खेल खेल रहे हैं. 

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इस इन तीनों अफसरों और नेताओं की नजरें इस्तांबुल में टिकी हुई है. जहां पाकिस्तान अपने रुठे पड़ोसी अफगानिस्तान को मनाने के लिए 2 दिनों से वार्ताएं कर रहे हैं. एक तरह से पाकिस्तान का टॉप लीडरशिप इस वक्त देश से बाहर है. 

अक्तूबर 2025 में अफगानिस्तान-पाकिस्तान तनाव तब चरम पर पहुंच गया जब पाकिस्तान ने काबुल और कंधार में हवाई हमले किए. इसके जवाब में अफगान तालिबान ने सीमा पर पाकिस्तानी चौकियों पर हमला बोला. इससे दर्जनों सैनिक मारे गए. 

आखिरकार कतर और तुर्की की मध्यस्थता से दोनों देशों के बीच नाजुक युद्धविराम हुआ. 

लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव अभी भी बना है और कभी भी युद्ध शुरू हो सकता है. तहरीक-ए-तालिबान ने 2025 में पाकिस्तान पर 600 से ज्यादा हमले किए. जो इस दशक का सबसे खतरनाक स्तर है. 

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यह संघर्ष पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डाल रहा है. इसलिए पाकिस्तान अफगानिस्तान से हर हाल में शांति चाहता है. क्योंकि सोवियत रूस, अमेरिका को नाको चने चबवा चुका तालिबान पाकिस्तान को तहस-नहस करना चाहता है. 

इस पृष्ठभूमि में पाकिस्तान की विदेश नीति मल्टी-फ्रंट बैलेंसिंग पर केंद्रित है. इसमें पश्चिमी सीमा की सुरक्षा मजबूत करना, आर्थिक संकट से निपटना, और दक्षिण एशिया में प्रभाव बढ़ाना शामिल है. पाकिस्तान के हुक्मरानों ये यात्राएं इसी का हिस्सा हैं. पाकिस्तान अफगान तनाव से पैदा हुए अनिश्चितता के बीच वैकल्पिक गठबंधनों को मजबूत करना चाहता है. 

तालिबान पाकिस्तान की शर्तों के आगे राजी नहीं हो रहा है

पाकिस्तान तालिबान से क्या चाहता है

लेकिन तालिबान के सामने झुकने से इनकार कर रहा है. तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में बातचीत की टेबल पर बैठा अफगान तालिबान पाकिस्तान के मनमाने शर्तों को नहीं मान रहा है. डॉन ने लिखा है कि देर रात तक लगभग नौ घंटे की गहन चर्चा के बाद पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारियों ने कहा कि उनके प्रतिनिधिमंडल ने अफगान पक्ष के समक्ष अपनी “अंतिम स्थिति” प्रस्तुत की है, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि तालिबान शासन को “अफगानिस्तान से और उसके अंदर सीमा पार आतंकवाद को खत्म करने के लिए ठोस और सत्यापन योग्य कदम उठाने चाहिए.”

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पाकिस्तान के एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने कहा, "पाकिस्तान ने स्पष्ट कर दिया है कि अफगान तालिबान द्वारा आतंकवादियों को दिया जा रहा संरक्षण अस्वीकार्य है"

लेकिन तालिबान ने पाकिस्तान के इन दावों को साफ खारिज कर दिया है. तालिबान ने अफगानिस्तान के इन दावों को 'अतार्किक और जमीनी हकीकत से परे' कहा है. 

स्पष्ट है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान से चाहता है कि वो अपनी जमीन से पाकिस्तान के खिलाफ कथित रूप से हो रहे आतंकी हमलों पर पूरी तरह से रोक लगाए. 

भारत भी पाकिस्तान से ऐसा ही चाहता है

पाकिस्तान का दावा है कि उसकी जमीन पर ऐसे हमले होते हैं जिसके तार अफगानिस्तान से जुड़े हैं. भारत इन दावों की कतई पुष्टि नहीं करता है. लेकिन पाकिस्तान को जब भारत कहता है कि वो अपनी जमीन से जम्मू-कश्मीर समेत भारत के अन्य भूभाग पर होने वाले आतंकी हमलों पर रोक लगाए तो पाकिस्तान को सांप सूंघ जाता है. भारत अपनी जमीन पर आतंकी हमलों में पाकिस्तान की एजेंसियों की भागीदारी के कई सबूत इस्लामाबाद को दे चुका है. लेकिन पाकिस्तान इसे हमेशा खारिज करता है और कभी इन तत्वों पर कार्रवाई नहीं करता है. 

आतंकी गतिविधियों में पाकिस्तान की भागीदारी के सबूत दुनिया के सामने है. लश्कर सरगना हाफिज सईद को संयुक्त राष्ट्र आतंकी घोषित किए हुए हैं. मौलाना मसूद अजहर की आतंकी गतिविधियां पूरी दुनिया जानती है. लेकिन पाकिस्तान इस पर चुप्पी साध जाता है. 

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अब पाकिस्तान को अफगान तालिबान से अपनी कथित आतंकी हमले की बात मनवाने में उस पीड़ा का एहसास हो रहा है जिसका शिकार भारत वर्षों से है. 

अब पाकिस्तान तालिबान को धमकी दे रहा है कि उसका ये रुख अफगानिस्तान, पाकिस्तान और पूरे दक्षिण एशिया के हित में नहीं है. 

समाधान खुले युद्ध में होगा

पाकिस्तान को साफ नजर आ रहा है कि तालिबान उसकी मनमानी शर्तों पर राजी नहीं होने वाला है. गौरतलब है कि अफगानिस्तान ने भी पाकिस्तान से कहा है कि वो अपनी जमीन से अफगानिस्तान पर होने वाले हमलों पर रोक लगाए.

पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार वजाहत मसूद ने एक्स पर इस शांति वार्ता का भविष्य पहले ही लिख दिया है. उन्होंने लिखा है, "इस्तांबुल में पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच वार्ता की विफलता एक पूर्वनिर्धारित निष्कर्ष है. अफ़गान शासन बस समय का इंतजार कर रहा है. इस संघर्ष का समाधान अंततः खुले युद्ध में होगा और अफगानिस्तान के अजेय होने का मिथक उजागर हो जाएगा."

ऐसी स्थिति में पाकिस्तान सऊदी अरब के चक्कर लगा रहा है जो अरब क्षेत्र में उसका बड़ा पार्टनर है. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ तीन महीने में तीन बार सऊदी अरब जा चुके हैं. वे अगस्त, सितंबर और अक्तूबर तीनों ही महीनों में सऊदी अरब गए हैं. और सऊदी से अपनी सुरक्षा की गारंटी चाहते हैं. 

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इसी समय पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला द्वितीय और संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष मेजर जनरल यूसुफ हुनेती के साथ सैन्य सहयोग पर चर्चा की है. 

कहने को तो दोनों के बीच जॉर्डन और पाकिस्तान के बीच सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई लेकिन दक्षिण एशिया का सामरिक परिदृश्य इस मुलाकात का अहम बिंदू है. 

इसी दौरान पाकिस्तान मिलिट्री के नंबर - 2 जनरल साहिर शमशाद मिर्जा ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस से मुलाकात की है. इस दौरान दोनों नेताओं के बीच रणनीतिक और सामरिक मुद्दों पर चर्चा हुई है.

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