लाहौर HC के चीफ जस्टिस करेंगे भगत सिंह को बेगुनाह साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई

पाकिस्तान की लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भगत सिंह को एक मामले में बेगुनाह साबित करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करेंगे. एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या के आरोप में दोनों को बेकसूर साबित करना चाहता है याची.

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भगत सिंह की फांसी के 85 साल बाद होगी सुनवाई भगत सिंह की फांसी के 85 साल बाद होगी सुनवाई

मोनिका शर्मा

  • इस्लामाबाद,
  • 03 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 4:56 PM IST

स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को एक ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर की हत्या के मामले में बेकसूर साबित करने के लिए दायर की गई याचिका पर पाकिस्तान की लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुनवाई करेंगे. भगत सिंह को फांसी दिए जाने के 85 साल बाद दायर इस याचिका पर कोई सुनवाई के लिए राजी हो गई है.

पहले इस मामले की सुनवाई तीन सदस्यीय बेंच को करनी थी लेकिन दो सदस्यों वाली बेंच इसपर सुनवाई कर रही थी. अब इस केस को लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को रेफर कर दिया गया है.

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लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अध्यक्षता में एक डिविजन बेंच का गठन किया था, जिसे 3 फरवरी यानि आज से केस की सुनवाई करनी थी. इस याचिका पर आखिरी बार मई 2013 में जस्टिस सुजात अली खान ने की थी और उन्होंने इस मामले को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया था.

भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष और एडवोकेट इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में लाहौर हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए एक याचिका दायर की थी. इस याचिका में कुरैशी ने कहा था कि भगत सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने अविभाजित भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी. ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर जॉन पी सौंडर्स की कथित हत्या के आरोप में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू के खिलाफ केस दर्ज किया गया था.

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ब्रिटिश शासन के समय भगत सिंह को मौत की सजा दी गई थी. 23 मार्च 1931 को 23 साल की उम्र में भगत को सरकार के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में फांसी पर लटका दिया गया था. कुरैशी ने कहा कि भगत सिंह को पहले ताउम्र कैद हुई थी लेकिन बाद में किसी और झूठे मामले में उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई.

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