नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की है. वह नौ जून को एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के लिए तैयार हैं. इस बीच देश-दुनिया से उन्हें लगातार बधाई संदेश मिल रहे हैं. ऐसे में ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग ते ने भी मोदी को बधाई दी, जिस पर मोदी ने आभार जताया. लेकिन चीन को चिंग ते और मोदी के बीच का ये संवाद रास नहीं आया.
चीन ने ताइवान के राष्ट्रपति का आभार जताते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया पर कड़ा विरोध जताया है. चीन ने कहा है कि ताइवान एक विद्रोही प्रांत है, जिसका किसी भी कीमत पर मेनलैंड (चाइना) में विलय होगा, फिर चाहे वह बलपूर्वक ही क्यों ना हो.
कहां से शुरू हुआ विवाद?
2024 लोकसभा चुनाव में मोदी की अगुवाई में एनडीए की जीत के बाद ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग ते ने मोदी को बधाई देते हुए सोशल मीडिया पर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी चुनावी जीत पर हार्दिक बधाई. हम तेजी से बढ़ती ताइवान-भारत साझेदारी को और बढ़ाने, व्यापार, प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों में हमारे सहयोग का विस्तार करने के लिए तत्पर हैं ताकि इंडो पैसिफिक में शांति और समृद्धि में योगदान दिया जा सके.
चिंग ते की इसी बधाई पर पीएम मोदी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि आपके गर्मजोशी भरे संदेश के लिए धन्यवाद लाई चिंग ते. मैं पारस्परिक रूप से लाभप्रद आर्थिक और तकनीकी साझेदारी की दिशा में काम करते हुए और भी घनिष्ठ संबंधों की आशा करता हूं.
चीन को दिक्कत क्या है?
चीन ने कहा कि भारत को ताइवान के राजनीतिक तिकड़मबाजी से दूर रहना चाहिए. चीन, ताइवान को विद्रोही प्रांत के तौर पर देखता है, जिसका किसी भी कीमत पर मेनलैंड (चाइना) में विलय होना चाहिए, फिर चाहे वह बलपूर्वक ही क्यों ना हो.
चीन के विदेश मंत्री की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि चीन ने भारत के समक्ष विरोध जताया है. सबसे पहली बात तो ताइवान क्षेत्र का कोई राष्ट्रपति ही नहीं है. चीन ताइवान और अन्य देशों के बीच आधिकारिक संवाद का किसी भी रूप से विरोध करता है. दुनिया में सिर्फ एक ही चीन है और ताइवान, चीन का अभिन्न अंग है. वन चाइना सिद्धांत को सार्वभौमिक रूप से मान्यता मिली हुई है. भारत ने गंभीर राजनीतिक प्रतिबद्धताएं जताई हैं, उन्हें ताइवान की राजनीतिक तिकड़मबाजी से दूर रहना चाहिए. हमने इसे लेकर भारत के समक्ष विरोध जताया है.
चीन के इस विरोध पर क्या बोला अमेरिका?
अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि मैंने इससे जुड़ी हुई रिपोर्ट्स अभी तक नहीं देखी हैं. इसलिए मैं इस पर विस्तार से कुछ नहीं कह पाऊंगा. लेकिन इतना कहूंगा कि इस तरह के बधाई संदेश राजनयिक व्यवहार में सामान्य हैं.
ताइवान की मौजूदा सरकार से खफा है चीन
चीन के भारी विरोध के बावजूद इस साल ताइवान के चुनाव में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीटीपी) सत्ता में आई. इसके बाद लाई चिंग ते ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली. लाई चिंग और उनकी पार्टी डीपीटी को चीन का कट्टर विरोधी माना जाता है.
चीन और ताइवान में अनबन क्यों?
चीन और ताइवान का रिश्ता अलग है. ताइवान चीन के दक्षिण पूर्वी तट से 100 मील यानी लगभग 160 किलोमीटर दूर स्थित छोटा सा द्वीप है. ताइवान 1949 से खुद को आजाद मुल्क मान रहा है. लेकिन अभी तक दुनिया के 14 देशों ने ही उसे आजाद देश के तौर पर मान्यता दी है और उसके साथ डिप्लोमैटिक रिलेशन बनाए हैं. चीन ताइवान को अपना प्रांत मानता है और उसका मानना है कि एक दिन ताइवान उसका हिस्सा बन जाएगा. वहीं, ताइवान खुद को आजाद देश बताता है. उसका अपना संविधान है और वहां चुनी हुई सरकार है.
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