इजरायल के तमाम वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं. एक में बिना कपड़ों के बैठे प्रदर्शनकारी पर वॉटर कैनन से कुछ इस कदर अटैक किया गया, कि वो अपनी जगह से गिर जाता है. तो एक वीडियो इससे भी ज्यादा हैरानी वाला दिखा, जिसमें कार प्रदर्शनकारियों को रौंदते हुए निकल गई. वहीं लोगों ने इजरायल के कुछ अखबारों के पहले पन्नों की तस्वीर शेयर की हैं, जो काले रंग का है. इस पर कुछ नहीं लिखा. मगर कुछ न लिखकर भी मैसेज दिया जा चुका है. ऐसा कर अखबारों ने बताया है कि वो भी लोगों के साथ विरोध में शामिल हैं.
एक और वीडियो पर नजर पड़ी, जिसमें एक सुरक्षाकर्मी को महिला प्रदर्शनकारी के बाल पकड़कर उसे घसीटते हुए देखा जा सकता है. वो महिला को उठाकर दीवार के दूसरी तरफ फेंक देता है. एक अन्य प्रदर्शनकारी के कपड़े फाड़ दिए गए हैं. बाकियों के साथ भी कुछ यही हो रहा है. मगर जितना लोगों को रोका जा रहा है, वो देश का झंडा हाथ में लिए उतना ही उग्र रूप दिखा रहे हैं. ईरानी खतरे का हवाला देते हुए, पूर्व मोसाद प्रमुख और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के करीबी सहयोगी योसी कोहेन ने भी कानून पर रोक लगाने का आह्वान किया है.
हालात इतने बदतर हैं कि नेतन्याहू की खराब सेहत को भी लोग महज एक नाटक बता रहे हैं. उन्हें विधेयक पर वोटिंग से पहले अस्पताल ले जाया गया. ऑपरेशन के बाद छुट्टी दी गई. प्रदर्शनों में जो एक कॉमन चीज देखने को मिल रही है, वो है, लोगों के हाथ में इजरायल का झंडा. देश के जिस भी हिस्से में प्रदर्शन हो रहे हैं, वहां वहां लोगों के हाथ में देश का झंडा जरूर नजर आ रहा है. प्रदर्शनारियों ने नेतन्याहू सरकार पर लोकतंत्र को खतरे में डालने का आरोप लगाया है.
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आखिर इतना बवाल क्यों?
माजरा ये है कि इजरायल की संसद ने सोमवार को एक विवादास्तपद कानून को मंजूरी दी है. इसे देश की न्याय प्रणाली को फिर से आकार देने की नेतन्याहू की योजना का महत्वपूर्ण हिस्सा बताया जा रहा है. संसद में विधेयक के पक्ष में 64 वोट पड़े, जबकि विरोध में शून्य. विपक्ष ने विरोध जताते हुए मत विभाजन का बहिष्कार किया है.
ये विधेयक सरकार के न्यायिक सुधार में पारित होने वाला प्रमुख विधेयक है. विधेयक में संसोधन की मांग उठी और विपक्ष के साथ व्यापक प्रक्रियात्मक समझौते की भी बात कही गई. लेकिन संसद के भीतर आखिरी वक्त में इन दोनों को लेकर की गई कोशिशें भी विफल रहीं.
कानून को थोड़ा नरम करने के लिए जो विचार रखे गए थे, उन पर पीएम नेतन्याहू और गठबंधन के प्रमुख नेताओं ने चर्चा की थी, लेकिन सब बेनतीजा रहा. इस पर करीब 30 घंटे तक बहस चली. जो रविवार सुबह शुरू हुई थी. बता दें, अभी विधेयक के पहले हिस्से को मंजूरी मिली है. बड़े बिजनेस और यूनियंस स्ट्राइक और बंद की योजना बना रहे हैं.
1100 से अधिक एयर फोर्स रिजर्व के अधिकारियों ने एक लेटर पर साइन किए. इसमें लिखा है, 'वो कानून, जो सरकार को बेहद अनुचित तरीके से काम करने की मंजूरी देता है, इजरायल की सुरक्षा को नुकसान पहुंचाएगा, विश्वास को तोड़ेगा और ज़िंदगियों को खतरे में डालेगा- और बहुत दुख की बात है कि हमारे पास रिजर्व ड्यूटी के लिए स्वेच्छा से काम करने से खुद को रोकने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा.'
इजरायल रक्षा बलों, मोसाद और शिन बेट के पूर्व प्रमुखों सहित दर्जनों पूर्व टॉप सुरक्षा अधिकारियों ने एक लेटर में कहा, 'ये कानून इजरायली समाज की कॉमन नींव को तोड़ रहा है, लोगों को अलग कर रहा है, IDF को खत्म कर रहा है और इजरायल की सुरक्षा को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है.'
नेतन्याहू के लिए क्या कहा जा रहा?
इजरायल की जनता प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ सड़कों पर उतरी है. लोगों में उनके प्रति भारी गुस्सा है. लोगों का कहना है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है. नेतन्याहू के पोस्टर्स के साथ भी लोग विरोध दर्ज कर रहे हैं. नेतन्याहू ने लगातार हो रही इस हिंसा को लेकर ट्वीट कर कहा था कि कृपया हिंसा न करें. हम सब एक ही देश के नागरिक हैं. इस मुद्दे को सुलझाया जा सकता है. जिम्मेदारी से काम लें. ये बयान नेतन्याहू ने खुद पर बढ़े प्रेशर के बाद दिया था. देश में 7 जनवरी, 2023 से लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.
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प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं?
इजरायल में सरकार के न्यायाकि सुधार वाले विवादास्पद कानून के खिलाफ लोग सड़कों पर उतरे हैं. आपको आसान भाषा में ये बता देते हैं. किसी भी लोकतंत्र के तीन अहम पिलर होते हैं. कार्यपालिका, न्यायापालिका और विधायिका. कार्यपालिका का मतलब ये है कि जो कानून बना दिए जाते हैं, उनका पालन हो, ये तय करना इसके अंतर्गत आता है. विधायिका में कानून बनाने की बात होती है, जैसे लोकसभा और राज्यसभा करते हैं. वहीं न्यायपालिका का काम ये देखना है कि कानून ठीक से बन रहे हैं या नहीं. इसे बनाए जाने का प्रोसेस ठीक से फॉलो किया जा रहा है या नहीं.
लोकतंत्र में दिक्कत उस वक्त आ जाती है, जब लोगों का कार्यपालिका पर ये भरोसा उठ जाए. कुछ ऐसा ही इस वक्त इजरायल में देखने को मिल रहा है. ऐसा कहा जा रहा है कि देश में कार्यपालिका की कोशिश बाकी के दो पिलर की पावर को कम कर अपनी पावर को बढ़ाने की है. नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं. वो कई बार अदालत में भी पेश हुए थे. वो नवंबर 2022 में एक बार फिर पीएम बने. तभी से उनकी कोशिश देश के न्यायिक तंत्र को कमजोर करने की रही है.
क्या बदलाव हुए हैं?
अब बात उस कानून की कर लेते हैं, जिसके खिलाफ लोग सड़कों पर उतरे हैं. इसके अनुसार, अदालतों को कैबिनेट और मंत्रियों के फैसलों की तर्कसंगतता पर किसी तरह की जांच पड़ताल करने से प्रतिबंधित किया गया है. सुप्रीम कोर्ट से सरकारी फैसलों को अनुचित घोषित करने की शक्ति छिन गई है. संसद में बहुमत के जरिए कोर्ट के फैसलों को पलटा जा सकेगा. जबकि कोर्ट के पास अहम शक्ति यही थी कि देश की सरकार को निरंकुश बनने से रोका जा सके. मगर सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इजरायल का संविधान लिखित नहीं है. जिसके कारण सरकार कानूनों के साथ जैसे चाहे वैसे खेल सकती है.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट समेत सभी अदालतों में जजों की नियुक्ति में भी सरकार का फैसला ही निर्णायक होगा. जजों को नियुक्त करने वाली कमेटी में सरकार का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा. मंत्रियों के लिए कानूनी सलाहकारों की सलाह मानना जरूरी नहीं रहेगा जबकि कानून के मुताबिक उन्हें सलाह माननी पड़ती है. इससे पहले सरकार द्वारा जारी प्रस्तावित बदलावों में से एक कानून बन चुका था. जिसके तहत अटॉर्नी जनरल के उस अधिकार को निरस्त किया गया है, जिसमें अटॉर्नी जनरल सत्तारुढ़ प्रधानमंत्री को अयोग्य साबित कर सकता था.
हैरानी की बात ये है कि सत्ता में वापसी के कुछ दिन बाद ही नेतन्याहू और उनके धुर दक्षिणपंथी सहयोगियों ने जनवरी में इस योजना की घोषणा की थी. इसके पीछे इन्होंने दावा किया कि विधेयक की जरूरत इसलिए है, ताकि अनिर्वाचित न्यायाधीशों को प्राप्त जरूरत से अधिक शक्तियों पर अंकुश लगाया जा सके.
इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इससे देश में शक्ति संतुलन की व्यवस्था बिगड़ेगी. देश निरंकुश शासन की ओर बढ़ेगा. महीनों से जारी ये प्रदर्शन आगे और बढ़ने के आसार हैं. फलस्तीनियों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट पहले से उनके प्रति भेदभाव वाला रवैया रखता आ रहा है और अब जो थोड़ी बहुत उम्मीद अदालत से थी, वो भी खत्म हो जाएगी.
Shilpa