ईरान और पाकिस्तान के बीच इस समय तनाव चरम पर है. लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब भारत के खिलाफ बिगुल बजाते हुए ईरान ने पाकिस्तान का खुले दिल से स्वागत किया था.
भारत के साथ पाकिस्तान के युद्ध के समय ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी ने कहा था कि ईरान की किसी तरह की आक्रामक मंशा नहीं है लेकिन पाकिस्तान को तबाह करने के किसी भी प्रयास को वे स्वीकार नहीं करेंगे. भारत को हमारे इन इरादों से वाकिफ होना चाहिए. हम ईरान की सीमा पर नया वियतनाम नहीं चाहते.
उनका ये बयान स्वाभाविक रूप से भारत की आलोचना को लेकर है. भारत का ऐतिहासिक रूप से ईरान से संबंध हैं और इस तरह के उकसावे को लेकर उनका कोई लेना-देना नहीं है.
जवाहर लाल नेहरू ने अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में कहा था कि कुछ लोग अपने अस्तित्व को लेकर इतने करीब रहे हैं. ऐतिहासिक संबंधों के अलावा ईरान के शाह का ये बयान पाकिस्तान के साथ ईरान के करीबी संबंधो को बताने के लिए काफी हैं. ईरान न सिर्फ पाकिस्तान के पाले में है बल्कि 1965 और 1971 के युद्ध में भारत के खिलाफ पाकिस्तान को हथियार भी मुहैया कराए थे. ईरान ने पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई की थी और तेल भी बेचा था.
ईरान और पाकिस्तान का हनीमून पीरियड
ईरान और पाकिस्तान संबंधों की नींव पाकिस्तान के गठन के समय ही पड़ गई थी. ईरान पहला ऐसा देश था, जिसने 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान की संप्रभुता को मान्यता दी थी. दोनों देशों के बीच मई 1950 में एक संधि भी हुई थी.
ईरान के शाह रजा पहलवी किसी देश के ऐसे पहले राष्ट्रप्रमुख थे, जिसने 1956 में पाकिस्तान की स्टेट विजिट की थी. इसके तुरंत बाद पाकिस्तान ने ईरान में अपना पहला दूतावास खोल लिया था.
जब भारत ने अरब वर्ल्ड के नेता के तौर पर मिस्र का समर्थन किया था. ईरान इस फैसले से खफा हो गया था. ऐसे समय में पाकिस्तान के तौर पर ईरान को एक दोस्त मिला था.
शीतयुद्ध के दौरान ईरान और पाकिस्तान ने खुद को पश्चिमी खेमे में पाया और वे कम्युनिस्ट विरोधी केंद्रीय संधि संगठन (सेंटो) के संस्थापक सदस्य थे.
ईरान ने 1965 और 1971 में पाकिस्तान को हथियार मुहैया कराए
किसी की दोस्त की परीक्षा शांति के दिनों में नहीं बल्कि युद्ध के समय में ली जाती है. भारत के खिलाफ पाकिस्तान को 1965 और 1971 के युद्ध में हथियार मुहैया कराकर ईरान ने एक विश्वासपात्र दोस्त के रूप में खुद को साबित किया. जब 1965 का युद्ध शुरू हुआ, ईरान के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा था कि हम पाकिस्तान के खिलाफ भारत के इस कदम को लेकर चिंतित हैं.
जब पाकिस्तान को 1965 के युद्ध के बाद हथियारों की खरीद में दिक्कत आने लगी तो ईरान ने जर्मनी के बाजारों से हथियारों को खरीदकर उसे पाकिस्तान को बेचा. जब पाकिस्तान पश्चिमी देशों से सैन्य सामान नहीं खरीद सका तो ईरान ने उन्हें कई एप-86 जेट, हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, गोला-बारूद बेचे. पाकिस्तान को कुछ विमान भी बेचे गए.
संयुक्त राष्ट्र के दस्तावेजों के मुताबिक, 1971 के युद्ध में ईरान ने पाकिस्तान को 12 हेलीकॉप्टर और गोला बारूद जैसे सैन्य उपकरण मुहैया कराए थे. ईरान ने इस दौरान पाकिस्तान को सस्ते दाम पर तेल भी मुहैया कराया था. यह वही समय था, जब ईरान ने पाकिस्तान के खिलाफ इस कदम की आलोचना की थी.
राइटर एलके चौधरी ने अपने लेख 'पाकिस्तान एज अ फैक्टर इन इंडो ईरानियन रिलेशंस' में कहा था कि ईरान के शाह ने उस समय कहा था कि ईरान और पाकिस्तान दो जिस्म एक जान हैं. उन दिनों ईरान और पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में बलोच विद्रोहियों के खिलाफ ज्वॉइंट ऑपरेशन भी शुरू किया था. हालांकि, शाह के कार्यकाल के आखिरी दिनों में दोनों देशों के रिश्तों में खटास भी आनी शुरू हो गई थी.
1974 में शाह ने इस्लामिक कॉन्फ्रेंस के लिए लाहौर का दौरा भी टाल दिया था क्योंकि पाकिस्तान ने लीबिया के नेता गद्दाफी को आमंत्रित किया था.
चीजें कब बिगड़ना शुरू हुईं
1979 में ईरान क्रांति के समय ईरान और पाकिस्तान के बीच खटास आनी शुरू हो गई थी. ईरान ने अपनी विदेश पॉलिसी रातोरात बदलकर पश्चिमी समर्थक से पश्चिमी विरोधी कर दी जबकि भुट्टो के कार्यकाल में पाकिस्तान सुन्नी समर्थक राह पर आगे बढ़ा. तभी से दोनों देशों के संबंधों में तनाव देखने को मिला.
ईरान-पाकिस्तान संबंध गर्त में गए
1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत के हमले के बाद ईरान और पाकिस्तान में सरकारें बदलीं और इस तरह इन देशों की जियोपॉलिटिक्स भी बदली.
ईरान और पाकिस्तान ने शुरुआत में सोवियत के खिलाफ अफगान मुजाहिदीन का समर्थन किया. लेकिन मामला तब बिगड़ा, जब ईरान ने तालिबान के खिलाफ नॉर्दन अलायंस का समर्थन किया. अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व बढ़ने की वजह से ईरान औऱ पाकिस्तान के बीच दरार और बढ़ी.
ईरान और पाकिस्तान के बीच विवाद क्यों?
इस हफ्ते की शुरुआत में ईरान ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर मिसाइलों और ड्रोन से ताबड़तोड़ हमले कर दिए थे. ईरान को ये शक था कि उसका पुराना दुश्मन सऊदी अरब पाकिस्तान की सीमा से उस पर हमला करने वाले आतंकी संगठन जैश-अल-अदल आतंकी गुट को शह दे रहा है.
इस संबंद में ईरान के विदेश मंत्री ने कहा था कि हमारे मिसाइल और ड्रोन हमले से पाकिस्तान में किसी भी नागरिक को निशाना नहीं बनाया गया. पाकिस्तान में जैश अल-अद्ल नाम का एक ईरानी आतंकी संगठन है. इन आतंकियों ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान के कुछ हिस्सों में पनाह ली है.
उन्होंने कहा कि हमने पाकिस्तान में कई अधिकारियों से बात की है. इन आतंकियों ने ईरान में हमारे खिलाफ कुछ ऑपरेशन किए. हमारे सुरक्षाकर्मियों को मार गिराया. हमने उसी के अनुरूप इन पर कार्रवाई की है. हमने पाकिस्तान की जमीं पर सिर्फ ईरान के आतंकियों पर हमला किया है.
उन्होंने कहा कि मैंने पाकिस्तान के हमारे विदेश मंत्री से बात की और उन्हें आश्वासन दिया कि हम पाकिस्तान का सम्मान करते हैं, उनकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हैं. लेकिन हम हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकते. हमारी कुछ आपत्तियां थीं. हमने जो भी किया, वह पाकिस्तान और इराक की सुरक्षा के मद्देनजर ही किया.
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